Behmai Kand: फूलन देवी का वो नरसंहार याद कर आज भी सिहर जाते हैं बेहमई गांव के लोग, 6 महीने की बच्ची से भी की थी क्रूरता

Behmai Kand बेहमई गांव में डकैतों की गोलीबारी से तहलका मच गया था। डकैत मान सिंह से आंख मिलने पर उसने जंटर सिंह को भी गोली मार दी थी। हालांकि इलाज के बाद वह बच गए और इस केस में अहम गवाह बने। जंटर सिंह ने दौरान गवाही न्यायालय में बयान दिया था कि घटना के दौरान वह 12वीं के छात्र थे।

By Jagran NewsEdited By: Swati Singh Publish:Thu, 15 Feb 2024 11:07 AM (IST) Updated:Thu, 15 Feb 2024 11:07 AM (IST)
Behmai Kand: फूलन देवी का वो नरसंहार याद कर आज भी सिहर जाते हैं बेहमई गांव के लोग, 6 महीने की बच्ची से भी की थी क्रूरता
फूलन देवी का वो नरसंहार याद कर आज भी सिहर जाते हैं बेहमई गांव के लोग

HighLights

  • बेहमई कांड में 43 साल बाद आया फैसला
  • बेहमई कांड के एक अभियुक्‍त को उम्रकैद
  • फूलन देवी ने दिया था सामूहिक नरसंहार की घटना को अंजाम

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात। बेहमई गांव में डकैतों की गोलीबारी से तहलका मच गया था। डकैत मान सिंह से आंख मिलने पर उसने जंटर सिंह को भी गोली मार दी थी। इलाज के बाद वह स्वस्थ हो गए। वह मामले के मुख्य गवाह बने और वह तारीखों में जाते रहे। वर्ष 2022 में उनका निधन हो गया।

जंटर सिंह ने दौरान गवाही न्यायालय में बयान दिया था कि घटना के दौरान वह 12वीं के छात्र थे। स्कूल से वापस घर लौटा था और लुंगी व बनियान पहनकर घर से निकला ही था कि गांव में हल्ला मच गया। चारों ओर एक ही आवाज आ रही थी कि डकैत आ गए भागो। जब तक कुछ समझ पाता गांव से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को डकैतों ने बंद कर दिया था।

सीने में नाल लगाकर किया था फायर

डकैतों ने इसके बाद लूटपाट शुरू कर दी। इसके बाद गांव से 26 लोगों को लेकर एक जगह एकत्र कर गोलियों की बौछार कर दी। इससे सभी लोग जमीन में गिर गए। उन्होंने बयान दिया था कि वह भी जमीन में गिरे थे, लेकिन जैसे ही आंख खोली तो मान सिंह ने कहा कि आंख मिलाता है इसके बाद सीने में नाल लगाकर फायर कर दिया था। डकैत लालाराम व श्रीराम को शरण दिए जाने से नाराज थे।

बेहमई नरसंहार का अस्ता गांव ने झेला था खामियाजा

बेहमई नरसंहार के बाद पूरा देश हिल गया था। फूलन देवी के इस कृत्य का खामियाजा औरैया के अस्ता गांव को झेलना पड़ा था। यहां लालाराम व कुसुमा नाइन ने मल्लाह बिरादरी के 14 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। इसके बाद गांव में आग लगा दी व लूटपाट की। आग से मां बेटी जिंदा जल गईं थीं।

गिरोह का सक्रिय सदस्य था श्यामबाबू

अभियुक्त श्यामबाबू फूलन देवी गिरोह का सक्रिय सदस्य था। घटनास्थल पर उसकी मौजूदगी की गवाहों ने पुष्टि की थी। इसके चलते ही उसको कोर्ट से सजा मिली। घटना के बाद शिनाख्त परेड हुई थी। उस दौरान वादी राजाराम, गवाह जंटर, वकील ने उसे पहचाना था। इन सभी का कहना था कि वह फूलन देवी के साथ मौजूद था। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रशांत मिश्रा ने बताया कि आरोपित श्यामबाबू केवट फूलन के गिरोह का सक्रिय सदस्य था। उसने गिरोह में अहम भूमिका अदा की थी।

यह भी पढ़ें: Behmai Case: 43 साल बाद बेहमई को मिला न्याय, 1981 में फूलन देवी ने किया था नरसंहार; वादी, गवाह व कई आरोपितों की हो चुकी मौत

शादी के चंद दिनों बाद ही छिन गया था सुहाग

जीवन की एक नई शुरुआत की आस लिए मुन्नी देवी ने बेहमई के लाल सिंह से विवाह किया था। विवाह के बाद पहली बार विदा होकर वह गांव आई थी। लेकिन डकैतों ने ऐसा कहर बरपाया कि उसका सुहाग उजड़ गया था।

रंजिश और मुखबिरी के शक में हुआ था बेहमई कांड बेहमई कांड डकैत श्रीराम व लालाराम की फूलन से रंजिश व मुखबिरी के शक में हुआ था।

डकैत श्रीराम व लालाराम बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज थे। वे फूलन देवी को ही हत्या के लिए जिम्मेदार मानते थे और बदला लेना चाहते थे। उन्होंने फूलन देवी को अगवा कर लिया था, जिसके बाद हुए आतंक ने फूलन को दस्यु सुंदरी बना दिया। फूलन को शक था कि बेहमई गांव के लोग श्रीराम गिरोह को संरक्षण देते हैं व मुखबिरी भी करते हैं। इसी आक्रोश में उसने 20 निर्दोषों की जान ले ली थी।

प्रताड़ित होने से लेकर डाकू बनने तक का फूलन का सफर

डकैत लालाराम व श्रीराम ने विक्रम मल्लाह की हत्या कर फूलन को अगवा किया था, जिसके बाद उसे अपमानित किया गया था। उस समय फूलन की उम्र 18 साल के आसपास थी। वहां से भागकर फूलन डाकुओं के पास मदद मांगने गई और अपना नया गिरोह बनाया। दौरान फूलन को शक हुआ कि बेहमई गांव के लोग श्रीराम गिरोह के खाने पीने व संरक्षण देने के साथ ही उसके लोगों की मुखबिरी भी करते हैं, क्योंकि गांव यमुना किनारे है और डकैतों का आना जाना रहता था। दो समुदायों के मध्य यहीं से खुन्नस हुई।

प्रकाश में आए थे 33 डकैत

बेहमई कांड के ठीक बाद मरजाद की छत पर डकैतों की चिठ्ठी मिली थी। इस चिठ्ठी व छानबीन के आधार पर पुलिस विवेचना में 33 डकैतों के नाम प्रकाश में आए। कोर्ट में मल्लाहनपुरवा, रमपुरा, जालौन के रतीराम, गोहानी गांव, सिकंदरा के शिवपाल, पाता, चुर्खी निवासी माता प्रसाद व बाबूराम अदालत में हाजिर हुए थे। पुलिस ने 11 अन्य डकैतों को गिरफ्तार किया था।

छह माह की बच्ची को झूले से पटका

चर्चा है कि डकैतों ने राजाराम के भाई बनवारी की छह माह की मासूम बेटी को झूले से उठाकर पटक दिया था। बच्ची कमर और पैर से दिव्यांग हो गई। चलने-फिरने से लाचार बच्ची जैसे-तैसे जिंदगी के दिन काटती रही और दस वर्ष की आयु में उसकी मौत हो गई थी। हालांकि पीड़ित परिवार के अलावा किसी ने भी इस बारे में आज तक सहीं नहीं बताया।

यह भी पढ़ें: Behmai Kand: बेहमई कांड में 43 साल बाद फैसला, एक अभियुक्‍त को उम्रकैद; फूलन देवी ने दिया था सामूहिक नरसंहार की घटना को अंजाम

दो घंटे तक किया था तांडव

दोपहर में अचानक शोर उठा। डकैत छतन ते कूद रहे थे। कुछ समझ पाते तब तक कई लोगों को डकैतों ने पकड़ लिया। इसके बाद बाकी के डकैत घरों में लूटपाट करने लगे। यहां से माल समेट कर गांव के किनारे डकैत एकत्र हुए। कुछ छतों पर डटे थे। फूलन व उसके साथियों ने कतार में खड़े लोगों पर एक साथ गोलियों की बौछार कर दी। इसके बाद यमुना के रास्ते सारे डकैत लूटा हुआ माल समेट कर भाग गए।

फैसला आने के बाद चर्चा करते बेहमई गांव के ग्रामीण

कोर्ट के फैसले का हम सम्मान करते हैं लेकिन हमें अधिक खुशी नहीं है बस संतोष हुआ है। एक आरोपित बचा था उसे फांसी मिलनी चाहिए थी। अधिकांश तो पहले ही मर गए बाकी जो फरार हुए उनको पुलिस आज तक पकड़ न सकी। यह कहना था बेहमई गांव के लोगों का। शाम को फैसले का उनको पता चला तो हर घर में चर्चा होने लगी।

फैसले के इंतजार में गुजर गई जिंदगी

गांव के गांधी सिंह का कहना था कि इस फैसले की घड़ी का इंतजार करते करते बुजुर्ग दुनिया से चले गए और जवान बुजुर्ग हो गए। वहीं जो बच्चे थे वह अधेड़ हो गए। हमने 43 वर्ष तक इंतजार किया और सब्र बांधे रहे लेकिन आज जब फैसला आया है तो मन को संतोष है लेकिन जो खुशी होनी चाहिए थी वह नहीं है। बहुत पहले ही इसका फैसला आना चाहिए था। जिससे हमें सही न्याय मिलता।

वादी राजाराम के बयान रहे अहम

घटना के वादी रहे राजाराम के भाई बनवारी की मौत इस घटना में हुई थी। उन्होंने ही फैसला किया था वह मुकदमा लड़ेंगे और न्याय पाकर रहेंगे। उन्होंने बयान दिया था कि फूलन देवी ने उनके 21 साल के भाई बनवारी को पकड़ लिया था और बाल पकड़कर घसीटते हुए घर के बाहर निकाल ले गई थी। इसके बाद गोलियों की ऐसी बौछार हुई कि समझ न आया कि क्या हो गया। कुछ देर बाद देखा कि भाई का शव जमीन पर लहूलुहान हालत में पड़ा था।

राजाराम तो अब दुनिया में रहे नहीं, लेकिन उनके बाद उनके बेटे राजू सिंह मुकदमे की पैरवी करते रहे और जानकारी भी समय समय पर वकील से लेते रहे। उन्होंने बताया कि आज पिता होते तो कुछ तो खुश होते बाकी न्याय मिलने में हम सभी को देरी हुई है। हत्यारों को फांसी पर लटकते हुए पिता की देखने की इच्छा थी। हम लोगों ने बहुत संघर्ष किया है शायद ही इसको कोई समझ सके।

12 फरवरी 1983 को किया था आत्मसमर्पण

फूलन देवी के इतना बड़ा जघन्य हत्याकांड कर दिए जाने से उप्र व मप्र की पुलिस उसे तेजी से खोज रही थी। सरकार ने उससे बात की और 12 फरवरी 1983 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भिंड के एसपी आरके चतुर्वेदी के सामने गिरोह के साथ आत्मसमर्पण किया था। फूलन के साथ मान सिंह, मोहन सिंह, गोविंद, मेंहदी हसन, जीवन व मुन्ना समेत अन्य रहे थे।

chat bot
आपका साथी