दुश्मन नहीं अब पर्यावरण की मित्र बनेगी पराली, यूपीटीटीआइ विकसित करेगा तकनीक

प्रदूषित जल को साफ करने का काम करेगी पराली समेत फसलों के अवशेष। यूपीटीटीआइ के विशेषज्ञ विकसित करेंगे तकनीक, राज्य सरकार देगी आर्थिक सहायता।

By AbhishekEdited By: Publish:Sun, 04 Nov 2018 12:15 PM (IST) Updated:Sun, 04 Nov 2018 10:17 PM (IST)
दुश्मन नहीं अब पर्यावरण की मित्र बनेगी पराली, यूपीटीटीआइ विकसित करेगा तकनीक
दुश्मन नहीं अब पर्यावरण की मित्र बनेगी पराली, यूपीटीटीआइ विकसित करेगा तकनीक

कानपुर (शशांक शेखर भारद्वाज)। पंजाब और हरियाणा प्रांत में पराली जलाने से प्रदूषण इस कदर बढ़ जाता है कि दिल्ली में रहने वालों को सांस लेना मुश्किल हो जाता है। बीते कई वर्षों में नई दिल्ली में बढ़े प्रदूषण का कारण आसपास के प्रांतों में पराली जलाया जाना ही रहा है। कोर्ट भी पराली जलाने पर रोक लगाने के साथ सख्ती से अनुपालन का आदेश कर चुका है। वहीं किसानों के लिए भी खेतों की पराली बड़ी समस्या बनी रहती है। हर तरह से दुश्मन बनी यह पराली अब पर्यावरण की दोस्त बनेगी। इसके लिए यूपीटीटीआइ के विशेषज्ञों ने तकनीक विकसित करने पर काम शुरू किया है।

प्रदूषण का बड़ा कारण पराली

कानपुर, आगरा, लखनऊ, वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश के अन्य जिले और एनसीआर वायु प्रदूषण से खतरे से इसलिए अधिक जूझ रहा कि हरियाणा और पंजाब में पराली जाती है। सर्दियों में इन शहरों के वायुमंडल में जहरीली गैसों का घनत्व बढ़ जाता है। कोहरा और धुआं मिलकर स्मॉग (धुंध) पैदा करते हैं। प्रदूषण बढऩे के साथ इसका असर ट्रैफिक, रेलवे और हवाई सेवाओं पर पड़ता है।

फसल का अवशेष निकालेगा पानी का जहर

धुंध और प्रदूषण का कारण पराली अब पर्यावरण की दोस्त बनेगी। जलने के बाद हवा को जहरीली बना रहा धान की फसल का यह अवशेष अब पानी से जहर निकालेगा। इसके लिए खोज में जुटेंगे कानपुर स्थित उत्तर प्रदेश टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (यूपीटीटीआइ) के प्रोफेसर और तीस लाख रुपये की मदद देगी प्रदेश सरकार। संस्थान के टेक्सटाइल और केमिकल इंजीनियङ्क्षरग के वैज्ञानिक पराली, जट्रोफा, सोयाबीन, नीम समेत कई फसलों के अवशेष पर शोध करेंगे। इनमें पाए जाने वाले तत्वों से एडसोरबेंट (अवशोषित करने वाला) तैयार करेंगे। पौधों के बारे में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मदद करेगा।

ऐसे करेंगे काम

गेहूं की डंठल और धान की पराली में ट्रिटिकम एस्टीवम पाया जाता है। सोयाबीन से बायोचार बन सकता है। फसलों के अवशेष से हाइड्रोकार्बन के विभिन्न यौगिक मिलते हैं, जिसमें बेंजीन के भी यौगिक हैं। ये अच्छे अवशोषक हो सकते हैं और पानी में मौजूद भारी तत्व, खासकर डाई और सिंथेटिक यूनिटों से निकलने वाले दूषित उत्प्रवाह में मौजूद हैवी मेटल्स और हानिकारक रसायन को सोख सकते हैं।

हालांकि यह पानी पीने योग्य नहीं होगा लेकिन सिंचाई कर सकेंगे। पानी योग्य बनाने के लिए इसका ट्रीटमेंट करना होगा। यूपीटीटीआइ के निदेशक प्रो. मुकेश कुमार सिंह बताते हंै कि पानी साफ करने की ईको फ्रेंडली तकनीक विकसित करने के लिए प्रदेश सरकार से 30 लाख रुपये का प्रोजेक्ट मिला है। फसलों के अवशेष से एडसोरबेंट तैयार किए जाएंगे।

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