सांसों का सहारा बनते, दम तोड़ गए जवान पेड़

पर्यावरण की रक्षा करनी है तो पेड़ लगाने हैं, लेकिन अब चुनौती प्रदूषित पर्यावरण से पेड़ों को बचाने की भी है। चाहे भूगर्भ जल में खराबी हो या मिट्टी या हवा में। जो भी हो, लेकिन आइटीआइ परिसर में खड़े-खड़े ऐसे जवान पेड़ सूख गए, जो सांसों का सहारा बन ऑक्सीजन दे रहे थे।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 04 Jun 2018 01:27 AM (IST) Updated:Mon, 04 Jun 2018 01:27 AM (IST)
सांसों का सहारा बनते, दम तोड़ गए जवान पेड़
सांसों का सहारा बनते, दम तोड़ गए जवान पेड़

जागरण संवाददाता, कानपुर : पर्यावरण की रक्षा करनी है तो पेड़ लगाने हैं, लेकिन अब चुनौती प्रदूषित पर्यावरण से पेड़ों को बचाने की भी है। चाहे भूगर्भ जल में खराबी हो या मिट्टी या हवा में। जो भी हो, लेकिन आइटीआइ परिसर में खड़े-खड़े ऐसे जवान पेड़ सूख गए, जो सांसों का सहारा बन ऑक्सीजन दे रहे थे।

नरेंद्र मोहन सेतु के बगल स्थित आइटीआइ कैंपस में बड़ी तादाद में पेड़ लगे हैं। दूर से देखने पर परिसर काफी हरा-भरा नजर आता है, लेकिन थोड़ा नजदीक जाएं तो चिंता की गर्म हवाएं सरसराती महसूस होती हैं। दरअसल, यहां दर्जनों की संख्या में ऐसे पेड़ हैं, जो काफी बड़े होने के बाद सूख गए। कई पेड़ों पर एक भी हरी पत्ती नहीं बची है। मसला सिर्फ इन पेड़ों के सूख जाने का नहीं है। फिक्र इस बात की है कि गंगा हरीतिमा अभियान के तहत करोड़ों पौधे कानपुर में लगवाने का संकल्प जिला प्रशासन, वन विभाग, दैनिक जागरण सहित विभिन्न संस्थाओं ने लिया है। इसमें तय हुआ है कि जनता को तीन साल तक पौधों की रक्षा के लिए प्रेरित किया जाए। अब सवाल उठता है कि जब ऐसे पुराने और बड़े वृक्ष सूख सकते हैं तो पौधों की रक्षा कैसे होगी? पर्यावरण के जानकार मानते हैं कि बड़े पेड़ों के सूखने के चंद प्रमुख कारण हैं। भूगर्भ जल में कोई नुकसानदायक तत्व मिल रहे हों, मिट्टी में हानिकारक तत्व हों या फिर अधिक प्रदूषण भी पेड़ सुखा देता है। ऐसे में चाहिए कि अधिक प्रतिरोधक क्षमता वाले पौधे ही रोपे जाएं।

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छोटी नहीं, बड़ी पौध लगाएं

दयानंद ग‌र्ल्स पीजी कॉलेज में बॉटनी की एसोसिएट प्रोफेसर वंदना निगम बताती हैं कि अमूमन पौधों की अधिक देखभाल तब तक करनी होती है, जब तक उनकी जड़ें जमीन से खुद पानी न लेने लगें। इसके लिए शुरुआती चार-पांच माह पर्याप्त हैं। तीन साल तक पौधों का संरक्षण होगा तो वह जरूर पनप जाएंगे, लेकिन पर्यावरण की जल, मृदा और प्रदूषण के कारकों को देखते हुए अधिक प्रतिरोधक क्षमता वाले पौधे लगाने होंगे। इसके अलावा बेहतर हो कि छोटी पौध की बजाए चार-पांच फीट बड़ी पौध लगाएं। उसे नुकसान कम होता है।

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यह हैं अधिक प्रतिरोधक क्षमता वाले पेड़

नीम, अशोक, पीपल, पलाश, कनेर, बोगनविलिया, बॉटलब्रश, बबूल, गुलमोहर, कैलेंडरा, चितवन, जामुन, अमरूद आदि।

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इनका कहना है

'हमारा परिसर बहुत हरा-भरा है। कुछ पेड़ सूखे दिख रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है। बरसात के बाद पता चलेगा कि यह विलंब का पतझड़ है या वाकई सूख गए हैं। सूखे होंगे तो बाकी पेड़ों को बचाने के लिए जल और मृदा परीक्षण कराएंगे।'

- केएम सिंह

प्रधानाचार्य, आइटीआइ

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