खाना तो छोड़िए अब देखने को भी नहीं मिलतीं ज्वार-बाजरे की रोटियां

व्यवसायीकरण की होड़ में कमाई प्रधान फसलों को प्राथमिकता

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Sep 2018 01:05 AM (IST) Updated:Mon, 03 Sep 2018 01:05 AM (IST)
खाना तो छोड़िए अब देखने को भी नहीं मिलतीं ज्वार-बाजरे की रोटियां
खाना तो छोड़िए अब देखने को भी नहीं मिलतीं ज्वार-बाजरे की रोटियां

जागरण संवाददाता, कानपुर : पुराने जमाने के खानपान से हृष्ट-पुष्ट यह दो बुजुर्ग तो उदाहरण मात्र हैं। ऐसे ही कई बुजुर्ग हैं जो अधिक उम्र के बावजूद जवानों को मात देते हैं। उनका कहना है कि पहले मौसम के हिसाब से खेती होती थी। उसी तरह खानपान भी था। जाड़े में जरूरी पोषक तत्वों के लिए ज्वार और बाजरे का आटा, उसकी लावा और लड्डू बनाए जाते थे। अलसी के लड्डू बनाते थे। मोटे अनाजों में पौष्टिकता का भंडार था। गर्मी के मौसम में बेझर (जौ और चना) की खेती होती थी। इससे निर्मित रोटी से पेट और दिमाग ठंडा रहता था, क्योंकि फाइबर अधिक होता था। गर्मी में सुबह नाश्ते में चना-जौ का सत्तू खाते और पीते थे इसलिए डॉक्टर की जरूरत नहीं पड़ती थी। अब तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं। बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं।

व्यवसायीकरण के दौर में मोटे अनाज की खेती लगभग बंद हो चुकी है। किसान भी इन अनाजों की खेती से कतराने लगे हैं। खेती में नफा-नुकसान का भी आकलन करने लगे हैं। खेती अब गेहूं और चावल (धान) तक सिमट गई है। (केस- एक)

उत्तरीपूरा निवासी मालती देवी बाजपेई 89 वर्ष की हैं। वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। आंख की रोशनी युवाओं की तरह है। भरा पूरा परिवार है, पर अपने काम स्वयं करती हैं। उस जमाने के खानपान पर चर्चा होने पर कुछ देर तक सोचने के बाद बोलीं, पहले जैसा खानपान अब कहां। ज्वार-बाजरा और बेझर (जौ-चना) की रोटियां देखने तक को नहीं मिलतीं। पहले सर्दियों में ज्वार-बाजरे की रोटियां घी-गुड़ के साथ बच्चों को खिलाई जाती थीं, ताकि सर्दी से बचाव हो सके। उस समय डॉक्टर के पास बच्चे बहुत ही कम जाते थे।

(केस-2)

बर्रा-2 हेमंत विहार निवासी सुषमा त्रिपाठी 77 वर्ष की अवस्था में पूरी रह स्वस्थ हैं। उन्हें याद भी नहीं कि वह आखिरी बार डॉक्टर के पास कब गई थीं। कहती हैं पहले मौसम के हिसाब से खानपान होता था। अब साल भर गेहूं का आटा या मैदा खाया जाता है इसलिए कम उम्र में बीमारियां घेर रही हैं। बच्चे मोटापे या डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं। जरा-जरा सी बात पर डॉक्टर के पास खड़े रहते हैं। मोटे अनाज में पोषक तत्व

बाजरा : आयरन, जिंक, फाइबर, ओमेगा-3 फैटी एसिड।

फायदे : इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जो ब्रेन के विकास में सहायक है। एंटी एलर्जिक होने से अस्थमा एवं पथरी से भी बचाता है। हड्डियों को मजबूती देने के साथ ही आसानी से पचता है। ज्वार : फाइबर, विटमिन, खाने में सुपाच्य, एंटी आक्सीडेंट।

फायदा : ज्वार में एंटी आक्सीडेंट एवं विटामिन होता है। साथ ही डायबिटीज से भी बचाता है। अलसी : विटामिन, मिनरल, हाई क्वालिटी फैट, हाई कैलोरी।

फायदा : अलसी का सेवन फैट, हार्ट अटैक एवं ब्रेन स्ट्रोक से बचाता है। चना-जौ : हाई फाइबर।

फायदा : गर्मी में चने एवं जौ की रोटी एवं सत्तू पेट और दिमाग को ठंडा रखता है। इंफेक्शन से भी बचाता है।

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मोटे अनाज वास्तव में स्वास्थ्य के लिए हितकर और कुपोषण से बचाने का श्रेष्ठ माध्यम हैं। शहरीकरण की होड़ में यह कहीं खो गए और इसीलिए बीमारियों का शिकंजा कस रहा है।- डॉ. यशवंत राव, विभागाध्यक्ष, बाल रोग विभाग।

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