पितृ पक्ष : गया में पूर्ण फल तबतक नहीं मिलता जबतक देवयानी सरोवर में पिंडदान न करें Kanpur News

मूसानगर स्थित पौराणिक देवयानी सरोवर को मातृ गया का दर्जा प्राप्त है।

By AbhishekEdited By: Publish:Mon, 16 Sep 2019 09:52 AM (IST) Updated:Mon, 16 Sep 2019 09:52 AM (IST)
पितृ पक्ष : गया में पूर्ण फल तबतक नहीं मिलता जबतक देवयानी सरोवर में पिंडदान न करें Kanpur News
पितृ पक्ष : गया में पूर्ण फल तबतक नहीं मिलता जबतक देवयानी सरोवर में पिंडदान न करें Kanpur News

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है। पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए लोग पिंडदान से लेकर तर्पण आदि कर रहे हैं। इसके लिए बिहार के गया जिले का महात्म्य सबसे ज्यादा माना गया है। कमोवेश मूसानगर स्थित पौराणिक देवयानी सरोवर का महात्म्य भी गया से कम नहीं है। इसे मातृगया या छोटी गया भी कहा जाता है। मान्यता है कि गया में पिंडदान का पूर्ण फल तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक देवयानी सरोवर में पिंडदान न किया जाए।  

उत्तरगामिनी यमुना में प्रथम पिंडदान विशेष फलदायी

मूसानगर स्थित पौराणिक देवयानी सरोवर को मातृ गया का दर्जा प्राप्त है। यहां यमुना के उत्तरगामिनी होने के कारण प्रथम पिंडदान का विशेष महत्व है। पितृपक्ष के दौरान यहां बड़ी संख्या में लोग पितरों को पिंडदान करने आते हैं। मूसानगर स्थित देवयानी सरोवर से दो किमी दक्षिण में यमुना नदी स्थित है। पितृ पक्ष में गया जाने से पहले लोग मातृ गया में आकर पितरों के लिए प्रथम पिंडदान व श्राद्ध करते हैं।

रूरा के आचार्य पं. सूबेदार शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध करने के लिए मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। परिवार के पुरुष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान कर श्राद्ध कराते हैं। देवयानी सरोवर में पिंडदान कराने वाले फत्तेपुर मूसानगर के आचार्य गुड्डू पाठक ने बताया कि 8 अक्टूबर तक चलने वाले पितृपक्ष के लिए यहां पहले से ही तैयारियां कर ली गईं थीं।

राजा ययाति ने कराया था सरोवर का निर्माण

कानपुर-झांसी राजमार्ग पर स्थित भोगनीपुर चौराहे से मुगल रोड पर 19 किमी दूर मूसानगर कस्बा स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पहले यहां घना जंगल था। एक बार दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा व दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी इस जंगल में घूमने आई थीं। दोनों ने सरोवर में स्नान किया। इस बीच भगवान शंकर को आते देख देवयानी ने जल्दबाजी में शर्मिष्ठा के वस्त्र पहन लिए। इससे क्रोधित होकर शर्मिष्ठा ने देवयानी को कुएं में धक्का दे दिया। इसके पास से निकल रहे जाजमऊ के राजा ययाति ने पुकार सुनकर देवयानी को बाहर निकाला। इसके बाद शुक्राचार्य ने राजा ययाति से देवयानी का विवाह कर दिया। शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनना स्वीकार करना पड़ा। विवाह के बाद राजा ययाति ने सरोवर को भव्य रूप दिया।

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