अब जानवरों पर परीक्षण करने से नहीं कृत्रिम त्वचा से तय होगा खूबसूरती का 'राज'

आइआइटी के विशेषज्ञों ने तैयार किया मनुष्य की त्वचा की ऊपरी सतह जैसा थ्री डी पेपर।

By AbhishekEdited By: Publish:Mon, 24 Feb 2020 11:35 AM (IST) Updated:Mon, 24 Feb 2020 11:35 AM (IST)
अब जानवरों पर परीक्षण करने से नहीं कृत्रिम त्वचा से तय होगा खूबसूरती का 'राज'
अब जानवरों पर परीक्षण करने से नहीं कृत्रिम त्वचा से तय होगा खूबसूरती का 'राज'

कानपुर, [शशांक शेखर भारद्वाज]। मनुष्यों की त्वचा के लिए कोई भी सौंदर्य प्रसाधन कितना कारगर होगा, इसका परीक्षण अब बिल्ली, बंदर या खरगोश आदि जानवरों को नुकसान पहुंचाकर नहीं होगा। आइआइटी के विशेषज्ञों ने ऐसा थ्री डी पेपर तैयार कर लिया है जो मनुष्य की त्वचा की ऊपरी सतह जैसा ही है। अब इसी कृत्रिम त्वचा के जरिए आपकी खूबसूरती का 'राज' तय होगा। इसी पर क्रीम, लोशन, दवाओं का परीक्षण होगा। विशेषज्ञों ने शोध को पेटेंट कराया है। आइआइटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने रिसर्च टीम को बधाई दी है।

अभी सौंदर्य प्रसाधन बाजार में लाने से पहले जानवरों पर प्रयोग करतीं कंपनियां

कंपनियां सौंदर्य प्रसाधन और अन्य केमिकल्स बाजार में उतारने से पहले एनिमल मॉडल पर प्रयोग करती हैं। यह कई बार जानवरों के लिए घातक साबित होता है। उन्हें तकलीफों का सामना करना पड़ता है। एनिमल मॉडल के लिए जानवरों की देखभाल का खर्च भी बढ़ जाता है। मनुष्यों के स्किन सेल (कोशिकाएं) जानवरों की त्वचा के सेल से अलग रहती हैं। ऐसे में कुछ मामलों में जानवरों के शरीर पर नुकसान न होने वाले केमिकल्स मनुष्यों के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।

तीन साल की मेहनत कर बनाया मॉडल

केमिकल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के प्रो. श्री शिव कुमार, बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियङ्क्षरग की डॉ. प्रेरणा सिंह, शोधार्थी अहिन कुमार मापारु ने तीन साल मेहनत कर कृत्रिम त्वचा का मॉडल बनाया है। टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज की डॉ. बीना राय ने भी इसमें सहयोग किया। विशेषज्ञों का दावा है कि थ्री डी पेपर पर आधारित आर्टिफिशियल इपीडर्मल स्किन मॉडल के नतीजे एनिमल मॉडल से बेहतर हैं। इसमें सामान्य या फिल्टर पेपर पर नैनो फाइबर (पॉलीमर) की कोटिंग होती है। यह प्रक्रिया इलेक्ट्रो स्पिनिंग मशीन के माध्यम से की जाती है। कोटिंग के बाद पेपर पर नैनो पार्टिकल्स डाले जाते हैं। सब तैयार होने के बाद मनुष्य की बॉडी के तापमान (37 डिग्री सेल्सियस) पर लैब में सेल्स पैदा कराए जाते हैं। करीब 15 से 20 दिन में सेल्स अपने आप कृत्रिम तरह से त्वचा तैयार कर देते हैं।

सभी टेस्ट में हुई पास

कृत्रिम त्वचा केमिकल, फिजिकल और बायोलॉजिकल टेस्ट में पास हो गई है। यह हाइड्रोफोबिक है, जिस पर पानी का असर नहीं होता। विशेषज्ञ ने इस पेपर का परीक्षण कैंसर, जली हुई और खराब त्वचा पर करने की तैयारी में हैं। कई दवा कंपनियों से बात चल रही है।

इनका ये है कहना

आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर व छात्र ऐसे शोध कर रहे हैं, जिनसे आमजन और समाज को लाभ मिले। प्रो. श्री शिव कुमार और उनकी टीम को बधाई। यह रिसर्च मेडिकल क्षेत्र में कामयाबी के रास्ते खोलेगा।

-प्रो. अभय करंदीकर, निदेशक आइआइटी कानपुर  

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