भ्रष्टाचार की धारा शीर्ष से नीचे की ओर
जागरण संवाददाता, कानपुर : बैंकिंग उद्योग की संरचना ऐसी है कि कोई भी अनियमितता नीचे से होते हुए
जागरण संवाददाता, कानपुर : बैंकिंग उद्योग की संरचना ऐसी है कि कोई भी अनियमितता नीचे से होते हुए ऊपर नहीं जा सकती। जब किसी भी ऋण के लिए रकम के अनुसार अधिकारियों की जिम्मेदारी तय है और उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थों के कार्य का सुपरविजन करने के लिए हैं तो घोटाले या गड़बड़ियां क्यों। यानी भ्रष्टाचार की यह धारा उच्च प्रबंधन से शुरू होकर नीचे तक आती है। इसका एक बड़ा कारण कर्मचारियों को गैर बैंकिंग के कामों में लगाकर उन पर दबाव बनाना और बैंक यूनियन का कमजोर होना है।
यह निष्कर्ष जागरण विमर्श में 'बैंकों में भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार कौन' विषय पर मंथन के बाद निकला। विमर्श में चर्चा के लिए जागरण कार्यालय आए भारतीय स्टेट बैंक स्टाफ यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्र अवस्थी ने कई बिंदु रेखांकित किए। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के दौरान गलत तरीके से नोट बदलने में कर्मचारी इक्का-दुक्का पकड़े गए, जबकि अधिकारी अधिक पकड़े गए। कहा, जब तक बैंक कर्मचारियों पर गैर बैंकिंग कामों के लक्ष्य पूरा करने के आधार पर ट्रांसफर की तलवार लटकेगी, उन्हें दबाव में लिया जाता रहेगा।
निजीकरण से समस्याएं बढ़ेंगी
घोटाला रोकने के लिए निजीकरण समस्या का समाधान नहीं है। 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण इसीलिए किया गया था कि निजी घरानों का बैंकों से कब्जा से हटे और आम आदमी को लाभ मिले। तब सोशल बैंकिंग नहीं थी। फिर निजीकरण हुआ तो सोशल बैंकिंग कौन करेगा।
छिपाया जा रहा एनपीए
अच्छा काम दिखाने के लिए एनपीए छिपाने की मानसिकता भी एनपीए बढ़ा रही है। ऋण एनपीए न हो, इसलिए अधिकारी कर्जदार को फिर कर्ज दे देते हैं लेकिन ये नहीं सोचते कि कम ऋण पर किस्त न दे पाने वाला अधिक ऋण की किस्त कैसे देगा। जांच हो तो ऐसे कई मामले खुल जाएंगे।
ऋण मेले और माफी एनपीए के जिम्मेदार
एनपीए का एक बड़ा कारण ऋण मेला लगाना और उसका लक्ष्य तय करना है। चूंकि लक्ष्य पूरा करने का दबाव रहता है, कागजों में थोड़ी बहुत कमी रहने पर भी लोन हो जाता है। अधिकारी भी इन ऋणों को पास कर देते हैं। इनमें से ही अधिकांश ऋण एनपीए होते हैं। इसके अलावा समय-समय पर ऋण माफी भी एक कारण है। जो समय पर किस्त अदा करते हैं, वह भी बंद कर देते हैं।
ऐसे रोकें एनपीए और घोटाले
-निचले स्तर के कर्मचारी का प्रस्ताव संस्तुत करने वाले उच्चाधिकारी को भी जिम्मेदार बनाया जाए।
-क्रेडिट लिमिट, कारोबार, ऋण लेने की योग्यता की रिपोर्ट पास करने वाले अधिकारी की भी जिम्मेदारी तय हो
-क्रेडिट लिमिट पर मार्जिन मनी तय हो और उसके बिना कोई भी ऋण पास नहीं हो
-कर्मचारी मौखिक आदेश पर नहीं, लिखित आदेश पर काम करें
-बैंकों की बैलेंस शीट जांचने के लिए रिटायर्ड बैंक कर्मचारी न नियुक्त हों, बल्कि स्वतंत्र संस्था ऑडिट करे
-बैंकों को गैर बैंकिंग कार्य, मसलन बीमा उत्पाद बेचने के काम से दूर रखें