कानपुरः गरीब बस्तियों में शिक्षा का दीप जला रहे कृष्णमुरारी यादव

समाजशास्त्र में स्नातक कृष्णमुरारी यादव ने पढ़ाई के बाद निजी कंपनी में नौकरी की, लेकिन वहां मन नहीं लगा तो 2010 में नौकरी छोड़कर समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Mon, 23 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Mon, 23 Jul 2018 06:00 AM (IST)
कानपुरः गरीब बस्तियों में शिक्षा का दीप जला रहे कृष्णमुरारी यादव

स्कूल चलें हम, सर्वशिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन... और भी न जाने क्या-क्या। सरकार के यह सारे जतन इसलिए हैं, ताकि शत-प्रतिशत बच्चे शिक्षा से जुड़ें, स्कूल पहुंचें। इसके बावजूद तमाम ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें शिक्षा मुहैया नहीं हो पाती। उनके अभिभावक मजबूर होते हैं या शिक्षा को जरूरी नहीं मानते। ऐसी स्थिति में कुछ अतिरिक्त प्रयास की जरूरत होती है। नवाबगंज निवासी 29 वर्षीय कृष्णमुरारी यादव वही कर रहे हैं। वह मजदूरों के बच्चों की अंधेरी जिंदगी में शिक्षा का दीपक जलाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं।

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समाजशास्त्र में स्नातक कृष्णमुरारी यादव ने पढ़ाई के बाद निजी कंपनी में नौकरी की, लेकिन वहां मन नहीं लगा तो 2010 में नौकरी छोड़कर समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। चौबेपुर के तातियागंज गांव में 2006 से आशा ट्रस्ट के नाम से समाजसेवी संस्था चल रही थी। उसी परिसर में कृष्णमुरारी ने 2013 में सद्भावना आश्रम नाम से अपना सेंटर शुरू कर दिया। मुख्य रूप से ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को वहां पढ़ाते हैं। इसके अलावा गरीब ग्रामीणों के बच्चों को भी निश्शुल्क शिक्षा देते हैं।

भट्ठे पर जाकर ही समझाते हैं शिक्षा का महत्व
ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता। कभी यहां तो कभी वहां। लिहाजा, वह अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं दिखते। ग्रामीण क्षेत्र में केएम भाई के नाम से प्रसिद्ध हो चुके कृष्णमुरारी यादव भट्ठों पर जाकर उन बच्चों के साथ समय बिताते हैं। खेल-खेल में उन्हें पढ़ाना शुरू करते हैं। फिर उनके अभिभावकों को समझाते हैं कि बच्चों का स्कूल में दाखिला कराएं। उन्हें नियमित रूप से पढ़ने भेजें, अन्यथा आपकी तरह उन्हें भी जिंदगी भर मजदूरी ही करनी पड़ेगी। जब वह तैयार हो जाते हैं तो बच्चों को आश्रम लाकर उन्हें पढ़ाना शुरू कर देते हैं।

शिक्षा के साथ तराशते हैं हुनर
सद्भावना आश्रम में सिर्फ शिक्षा ही नहीं दी जा रही। गरीब ग्रामीणों के बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के साथ ही कृष्णमुरारी यादव उन्हें खेल और संगीत के प्रति भी प्रोत्साहित करते हैं। उन्हें संसाधन मुहैया कराने के साथ ही सिखाते हैं और फिर प्रतियोगिताओं में मुकाबले के लिए भेजते हैं।

पढ़ाई बीच में छोड़ने वाली छात्राओं पर भी नजर
शहरी क्षेत्र में यादव झकरकटी बस अड्डे के पीछे स्थित मलिन बस्ती में भी केंद्र चलाते हैं। वह गरीब बच्चियों-युवतियों को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि का प्रशिक्षण दिलाते हैं, ताकि वह आत्मनिर्भर हो सकें। इसके अलावा जाजमऊ क्षेत्र में एक केंद्र खोला है। टेनरी मजदूरों की जो बच्चियां बीच में किन्हीं कारणों से पढ़ाई छोड़ चुकी हैं, उनका फिर से स्कूल-कॉलेजों में दाखिला कराते हैं। फीस, कॉपी-किताब, छात्रवृत्ति आदि की व्यवस्था कराते हैं।

यह हैं चुनौतियां

कृष्णमुरारी यादव कहते हैं कि समाज के सुधार के लिए कोई भी प्रयास किया जाए, कुछ तो परेशानियां जरूर आती हैं। संसाधन सीमित हैं। इसके अलावा मजदूरों को यह समझाना बहुत चुनौती की बात है कि शिक्षा उनके बच्चों के लिए कितनी अहम है।

'समाज में सिर्फ बुरे लोग ही नहीं हैं। अच्छे लोगों की संख्या भी बहुत है। मैंने गरीबों की शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया। अकेले यह कर पाना संभव नहीं था। कई समाजसेवी, शिक्षक और संपन्न क्षेत्रवासी हमें आर्थिक सहयोग देने को हमेशा तैयार रहते हैं। सभी के सहयोग से यह सेवा कार्य चल रहा है।'
- कृष्णमुरारी यादव

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