कानपुर को चाहिए डॉक्टरों और मेडिकल सुविधाओं का "टॉनिक"

उर्सला मंडलीय चिकित्सालय में इच्छाशक्ति के अभाव की वजह से उपलब्ध सुविधाएं भी दम तोड़ रही हैं।

By Krishan KumarEdited By: Publish:Sat, 14 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 14 Jul 2018 01:08 PM (IST)
कानपुर को चाहिए डॉक्टरों और मेडिकल सुविधाओं का "टॉनिक"

ऋषि दीक्षित, कानपुर 

कानपुर, मतलब प्रदेश का सबसे बड़ा शहर। लगभग 50 लाख की आबादी और साथ में आसपास के दस जिलों की आबादी के इलाज का बोझ भी इसी शहर पर। मगर, इस लिहाज से चिकित्सा सुविधाओं की बात करें तो यह नाकाफी ही है। बेहतर अस्पताल भले ही हों, लेकिन सुविधाएं न होने से आमजन के इलाज की सरकार की ही मंशा पूरी नहीं हो पा रही है।

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आधे-अधूरे संसाधनों के बूते सेहत की घुट्टी पिलाने की कोशिश की जा रही है। हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी न पर्याप्त चिकित्सक और न संसाधन हैं। स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों में बमुश्किल सर्दी-बुखार का ही इलाज मुहैया है, जबकि मेडिकल कॉलेज में किडनी, मूत्र, पेट एवं हार्मोंस से संबंधित बीमारियों का इलाज उपलब्ध नहीं है। ऐसे में मरीजों को जटिलता होने पर लखनऊ, दिल्ली और मुंबई भागना मजबूरी है।

राष्ट्रीय फलक पर कानपुर महानगर राष्ट्रीय राजमार्ग चौराहे के नाम से जाना जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए तत्कालीन बसपा सरकार में रामादेवी स्थित कांशीराम अस्पताल एवं ट्रॉमा सेंटर की स्थापना की नीव वर्ष 2008 में रखी गई। अस्पताल में इलाज वर्ष 2011 से शुरू है, लेकिन सात साल बाद भी ट्रॉमा सेंटर का सपना आज तक पूरा नहीं हो सका। 

इसी तरह कहने के लिए उर्सला मंडलीय चिकित्सालय है, लेकिन यहां के हुक्मरानों में इच्छाशक्ति के अभाव की वजह से उपलब्ध सुविधाएं भी दम तोड़ रही हैं। चार माह से एमआरआइ मशीन खराब है। आइसीयू एवं डायलिसिस यूनिट के लिए अलग से बजट नहीं मिलने से मरीजों को लाभ नहीं मिल रहा है। कमोबेश यही हाल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज का है। यहां आज तक हर विधा का सुपर स्पेशियलिटी इलाज मुहैया नहीं हो सका है। सिर्फ हार्ट, कैंसर और न्यूरो से संबंधित इलाज ही होता है। खासकर किडनी (नेफरोलॉजी), मूत्र रोग (यूरोलॉजी), पेट संबंधी रोग (गेस्ट्रोलॉजी), हार्मोंस संबंधी (एंड्रोक्रायनोलॉजी) एवं प्लास्टिक सर्जरी एवं बच्चों की सर्जरी की सुविधा ही नहीं है।

डॉक्टरों की कमी है समस्या 

शहर में स्वास्थ्य विभाग के चार बड़े अस्पताल उर्सला (स्वीकृत 72, तैनाती 49), डफरिन (स्वीकृत 22, तैनाती 18), केपीएम अस्पताल (स्वीकृत 18, तैनाती 16) एवं कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय (स्वीकृत 37, तैनाती 28) हैं। इन अस्पतालों में स्वीकृत पदों से कम डॉक्टर हैं। यही हाल ग्रामीण क्षेत्रों का है। जिले में 10 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) एवं 43 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं। इनमें डॉक्टरों के स्वीकृत पद 165 और तैनात 125 हैं।

मल्टी सुपर स्पेशियलिटी विंग से आस
केंद्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में 200 करोड़ रुपये से मल्टी सुपर स्पेशियलिटी विंग का निर्माण होना है। जिसमें आठ सुपर स्पेशियलिटी विभाग होंगे और 150 बेड होंगे। इससे जिले ही नहीं, आसपास के जिलों की जनता को सुपर स्पेशियलिटी इलाज मिलने लगेगा।

ट्रॉमा सेंटर भी है प्रस्तावित
जीएसवीएम मेडिकल कालेज में निजी क्षेत्र के सहयोग से 50 बेड के ट्रॉमा सेंटर की स्थापना भी प्रस्तावित है। ट्रॉमा सेंटर के भवन निर्माण के लिए आरएसपीएल कंपनी 5 करोड़ रुपये देने की सहमति दे चुकी है।

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