शहर में मंदाकिनी दीदी का प्रवचन, जानें क्या बताईं जीवन की मूल बातें

श्रीरामलीला सोसाइटी के तत्वावधान में जेएनके कॉलेज ग्राउंड में श्रीराम कथा का आयोजन। मंदाकिनी दीदी के प्रवचन भक्तों को कर रहे हैं विभोर। मूल बातों को लोग आत्मसात कर रहे हैं।

By AbhishekEdited By: Publish:Wed, 03 Oct 2018 01:01 PM (IST) Updated:Wed, 03 Oct 2018 01:01 PM (IST)
शहर में मंदाकिनी दीदी का प्रवचन, जानें क्या बताईं जीवन की मूल बातें
शहर में मंदाकिनी दीदी का प्रवचन, जानें क्या बताईं जीवन की मूल बातें

कानपुर (जागरण संवाददाता)। श्री रामलीला सोसाइटी द्वारा रामकथा का आयोजन चल रहा है। इसमें मंदाकिनी दीदी के उपदेश सुनकर भक्त भावविभोर हो रहे हैं। रोजाना बड़ी संख्या में भक्त प्रवचन सुनने को पंडाल में पहुंच रहे हैं। जीवन को बेहतर बनाने के लिए मूल बातों को लोग आत्मसात कर रहे हैं। पिछले तीन दिनों से जेएनके कॉलेज ग्राउंड में उनका प्रवचन चल रहा है।

परिस्थितियां अनुकूल हों तो उनका सदुपयोग करें

मंदाकिनी दीदी ने कहा है कि संसारी व्यक्ति दुख में दुखी और सुख में खुशी का व्यवहार करते हैं, लेकिन परिस्थितियां अनुकूल हों तो उनका सदुपयोग करें और प्रतिकूल होने पर ईश्वर से प्रार्थना करते रहना चाहिए। उन्होंने इसके लिए भगवान श्रीराम और भगवान कृष्ण के जन्म की परिस्थितियों का वर्णन किया। राजा दशरथ की ख्याति चहु ओर थी। उन्हे पुत्र को छोड़कर किसी भी वस्तु का अभाव नहीं था। उन्होंने इन परिस्थितियों का सदैव सदुपयोग किया और गुरूदेव के निर्देश व कृपा से राजा दशरथ को प्रभु राम पुत्र रूप में प्राप्त हुए। जब श्रीराम ने जन्म लिया तब शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। नौ अंक पूर्णता का अंक होता है।

वहीं वासुदेव जी के जीवन में सभी परिस्थितियां प्रतिकूल थीं। देवकी का सगा भाई कंस उनके पुत्रों का अंत कर रहा था। वह पराधीनता में भी थे लेकिन भगवान ने वहां भी जन्म लिया। श्रीकृष्ण के जन्म की परिस्थितियां भी बदली हुई थीं। भीषण वर्षा हो रही थी, चारो ओर अंधकार था। कथा से उन्होंने भक्तों को बताने का प्रयास किया कि जरुरी नहीं कि वक्त हर समय एक जैसा हो इसलिए जब समय विपरीत हो तो ईश्वर से प्रार्थना निरंतर करते रहना चाहिए और जब आपका वक्त अनुकूल हो तो उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए।

जब असमर्थ हो जाएं तो प्रभु से करें प्रार्थना

दूसरे दिन के प्रवचन में मंदाकिनी दीदी ने कहा कि जीवन में दुख आने पर ही हम भगवान का स्मरण करते हैं, लेकिन जान लें कि दुखी व्यक्ति को भगवान नहीं मिलते। भगवान श्रीराम के वनवास के दौरान मामा मारीच के प्रसंग का वर्णन करते हुए वह बोलीं, मारीच के सामने श्रीराम के रूप में मृत्यु खड़ी थी। जब उसने मान लिया कि अब उसे कोई बचा नहीं सकता तो वह मन ही मन प्रभु की शरण में चला गया।

इसी तरह जब आप भी असमर्थ हो जाएं तो प्रार्थना करना बेहतर होता है। मारीच ने वही किया। मन में वह प्रभु से प्रार्थना करते हुए बोला, मुझे रावण की आज्ञा का पालन करना है। मैं क्या करूं? प्रभु उसके मन में प्रकट हुए और दृष्टि दी कि जो रावण का संकल्प है वहीं मेरा भी है। जिसके बाद मारीच की मन:स्थिति बदल गई और मृत्यु का भय समाप्त हो गया।

रामकथा के सूत्रों को जीवन से जोड़ें

भक्तों को अर्थ समझाते हुए बोलीं, रंगमंच पर नाटक का निर्देशक जिस पात्र की जिम्मेदारी देता है, उसे बेहतर करने पर दंड नहीं बल्कि पुरस्कार मिलता है। उन्होंने कहा कि जब दुष्ट मारीच को प्रभु कृपा मिल सकती है तो हमे क्यों नहीं। कथा पंडालों में भीड़ तो पहुंच रही है लेकिन सूत्रों को जीवन से नहीं जोड़ा जा रहा है। रामकथा के सूत्रों को जीवन से जोड़कर ही मनुष्य का कल्याण होगा।

बुराई में अच्छाई खोजेंगे तो बुराई से नहीं मिलेगी मुक्ति

पहले दिन की रामकथा में मंदाकिनी दीदी ने कहा समाज में झूठ बोलने की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है। लोग अपने दोष को छिपाने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं, यह उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि हमेशा एक बात ध्यान रहे कि अगर हम बुराई में अच्छाई खोजेंगे तो बुराई से कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे। उन्होंने कहा कि जब कंस ने अपनी बहन के विवाह की तैयारी कर ली तो उस समय उसका विनम्र स्वभाव दिख रहा था। जब उसे पता चला कि बहन के गर्भ से प्रकट होने वाला उसकी मौत का कारण बनेगा तो तत्काल ही उसका व्यवहार बदल जाता है और वह क्रूरता करने लगता है।

उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसे में हमें अपने स्वभाव को सभी परिस्थितियों में विनम्र, सरल और सहज रखना चाहिए। इस अवसर पर श्री रामलीला सोसाइटी के प्रधानमंत्री कमल किशोर अग्रवाल व वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजीव गर्ग आदि उपस्थित रहे।

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