रूठीं महारानी तो राजा मलखान सिंह को महोबा में बसाना पड़ा मिनी वृंदावन

चरखारी में हैं 108 कृष्ण देव मंदिर वृंदावन की तरह है गोवर्धन जू मंदिर।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 11 Aug 2020 05:04 PM (IST) Updated:Tue, 11 Aug 2020 05:04 PM (IST)
रूठीं महारानी तो राजा मलखान सिंह को महोबा में बसाना पड़ा मिनी वृंदावन
रूठीं महारानी तो राजा मलखान सिंह को महोबा में बसाना पड़ा मिनी वृंदावन

महोबा, जागरण स्पेशल। महोबाद के कस्बा चरखारी को जहां सप्त सरोवर के कारण बुंदेलकंड के कश्मीर की उपाधि मिली है तो 108 कृष्ण देव के मंदिरों के कारण मिनी वृंदावन भी कहा जाता है। इन मंदिरों की स्थापना के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि वृंदावन देखने के बाद यहां की महारानी गुमान कुंवर रूठ गई थीं, जिनको मनाने के लिए ही महाराजा मलखान सिंह ने इन मंदिरों का निर्माण कराया था। जन्माष्टमी पर्व पर मंदिर की भव्य सजावट की जाती है।

नदी न होने से तालाब किनारे कराई थी मंदिर की स्थापना

चरखारी में वृंदावन की तरह सुंदरता को समेटे यहां का गोवर्धन जू मंदिर है। इसे तैयार कराने का श्रेय महारानी गुमान कुंवर को जाता है। बताते हैं कि महारानी एक बार वृंदावन दर्शन को गईं थीं। वहां की सुंदरता को देख उनका मन हुआ कि उनके नगर में भी ऐसा सुंदर मंदिर हो। उन्होंने हठ कर दी कि अब वह चरखारी वापस नहीं जाएंगी। वृंदावन में ही रहेंगी। तब महाराज मलखान सिंह ने कहा कि वह चरखारी को ही वृंदावन के रूप में बसाएंगे। कस्बा में कोई नदी न होने पर उन्होंने रायनपुर मौजा में एक तालाब के किनारे श्री कृष्ण के मंदिर की स्थापना गुमान बिहारी जू के नाम से कराई। तालाब को गुमान सरोवर नाम दिया।

हर साल कार्तिक माह में लगता मेला

1883 में हर साल कार्तिक माह में गोवर्धन मेला की शुरुआत कराई। तभी से लोगों में यह गाना प्रचलित हुआ कि 'वृंदावन भई चरखारी'। कस्बे के लोग महारानी गुमान कुंवर व महाराज मलखान सिंह को 108 कृष्ण देव मंदिर की स्थापना का श्रेय देते हैं। इस समय मंदिर की देखरेख राज्य सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट के माध्यम से हो रही है। ट्रस्ट के सचिव तहसीलदार परशुराम पटेल का कहना है कि जन्माष्टी में प्रति वर्ष की भांति झांकी सजाई जा रही है, कृष्ण जन्म भी मनाया जाएगा, लेकिन इस बार भीड़ पर प्रतिबंध रहेगा।  

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