ह्यूमीडिफायर का पानी न बदलने से भी ब्लैक फंगस, विशेषज्ञों को अंदेशा-यह भी हो सकती वजह

विशेषज्ञों को अंदेशा है कि कोविड आइसीयू एचडीयू और आइसोलेशन वार्ड में साफ-सफाई के भी मानक पूरे न होने के साथ ह्यूमीडिफायर का पानी न बदला जाना भी ब्लैक फंगस यानी म्यूकर माइकोसिस फैलने की वजह हो सकती है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 06 Jun 2021 08:47 AM (IST) Updated:Sun, 06 Jun 2021 07:13 PM (IST)
ह्यूमीडिफायर का पानी न बदलने से भी ब्लैक फंगस, विशेषज्ञों को अंदेशा-यह भी हो सकती वजह
ब्लैक फंगस की वजह तलाश रहे विशेषज्ञ।

कानपुर, जेएनएन। कोरोना संक्रमण के बाद ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों ने जब चिंता बढ़ाई तो इस पर अध्ययन में पाया गया कि फंगस की शिकायतें उन्हीं मरीजों में सामने आ रही हैं जो गंभीर हालत में अस्पताल में रहे। इन मरीजों में ब्लैक फंगस का वार क्यों, इसके कारण तलाशने में जुटे विशेषज्ञों को अब इसकी बड़ी वजह अंदेशे के रूप में दिखाई दे रही है। 

मार्च अंत से 15 मई तक कोरोना ने जब जबरदस्त कहर बरपाया तो अस्पतालों में मरीजों का तांता लगा रहा। इस दौरान मची आपाधापी की वजह से कोविड आइसीयू, एचडीयू व आइसोलेशन वार्ड में साफ-सफाई के मानक पूरे नहीं हुए। हद तो यह रही कि मरीजों को ऑक्सीजन सप्लाई के लिए लगे वॉल माउंट बबल ह्यूमीडिफायर का पानी तक नहीं बदला गया। आक्सीजन जब इससे होकर गुजरती है तो नमी बरकरार रहती है। इनका न पानी बदला गया, न ट्यूब। विशेषज्ञों को अंदेशा है कि ब्लैक फंगस यानी म्यूकर माइकोसिस फैलने की यह बड़ी वजह हो सकती है।

कोरोना का संक्रमण कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के मरीजों में तेजी से होता है, खासकर अनियंत्रित मधुमेह, किडनी, लिवर और कैंसर के मरीज, जो इम्यूनो कांप्रोमाइज (इनमें प्रतिरोध क्षमता बेहद कम) होते हैं। जब भारी संख्या में ऐसे मरीज कोविड हॉस्पिटल में पहुंचने शुरू हुए तो वहां की व्यवस्था पर जबरदस्त दबाव पड़ा। आक्सीजन पाइप लाइन को पोर्ट से लगे वाल माउंड बबल ह्यूमीडिफायर से ट्यूट को जोड़कर मरीजों को मास्क के जरिए आक्सीजन दी जाती है। एक मरीज के हटते दूसरा मरीज भर्ती हो रहा था। ऐसे में न तो ट्यूब बदली गई और न ही ह्यूमीडिफायर का पानी बदला गया। इसलिए यहां उत्पन्न फंगल पहले से मरीजों में तेजी से नाक मुंह के जरिए फैलता चला गया।

न फ्यूमिगेशन और न सैंपलिंग : कोरोना ड्यूटी में तैनात कई डॉक्टरों ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। आइसीयू, एचडीयू और आइसोलेशन वार्ड में संक्रमण कम करने के लिए न फ्यूमिगेशन कराया, न ही बैक्टीरिया, वायरस और फंगल की स्थिति का पता लगाने के लिए कल्चर जांच के लिए सैंपलिंग कराई।

-बैक्टीरिया की तरफ ही फंगल के स्पोर्स हमारे वातावरण में रहते हैं और गंदगी में बहुत तेजी से पनपते हैं। लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन जब सिङ्क्षलडर से आती है तो शुष्क और ठंडी होती है। इसे ह्यूमीडिफायर से गुजारा जाता है ताकि पानी से नमी मिले और आक्सीजन शरीर के तापमान के हिसाब से गर्म हो सके। ह्यूमीडिफायर में डिस्टिल या मिनरल वाटर का इस्तेमाल होना चाहिए। स्वास्थ्यकर्मी जानकारी के अभाव में नल का पानी भर देते हैं। कई दिनों तक पानी न बदले जाने से उसमें फंगल बढऩे लगते हैं, जो मरीजों के लिए घातक साबित होते हैं। इस पर देश भर के विशेषज्ञ भी चर्चा कर रहे हैं। -डॉ. एसी अग्रवाल, वरिष्ठ फिजीशियन एवं डायबटोलॉजिस्ट।

-कोविड के दौरान बड़ी संख्या में फैकल्टी भी संक्रमित हो गई थी। किसी तरह काम चलाया गया। संक्रमण अब थमा है। माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष को कोविड आइयीयू, एचडीयू और आइसोलेशन वार्ड का फ्यूमिगेशन कराने का निर्देश दिया है। ह्यूमीडिफायर समेत सभी उपकरणों से सैंपल लेकर कल्चर जांच कराने को पत्र लिखा है। इससे पता चलेगा कि कौन से बैक्टीरिया, वायरस व फंगल पाए गए। -प्रो. आरबी कमल, प्राचार्य, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।

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