मां बनने में बाधक बन रहा फास्टफूड

अनियमित खानपान की आदत और फास्टफूड का चस्का मां बनने की राह में बाधा बन रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 15 Jul 2018 01:20 AM (IST) Updated:Sun, 15 Jul 2018 01:20 AM (IST)
मां बनने में बाधक बन रहा फास्टफूड
मां बनने में बाधक बन रहा फास्टफूड

जागरण संवाददाता, कानपुर : अनियमित खानपान की आदत और फास्टफूड का चस्का मां बनने की राह में बाधा बन रहा है। महिलाओं में इनफर्टिलिटी (बांझपन) की समस्या बढ़ती जा रही है। इसकी शुरूआत सिस्ट (रसौली) से होती है, जो ध्यान न देने पर गंभीर रूप ले सकती है। कई बार कैंसर की समस्या भी हो जाती है, जिसमें गर्भाशय तक निकालना पड़ सकता है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज से संबद्ध जच्चा-बच्चा चिकित्सालय में काफी संख्या में महिलाएं इनफर्टिलिटी की दिक्कत लेकर आ रही हैं। इनमें अधिकतर की हाल ही में शादी हुई है। रोजाना ओपीडी में 8 से 10 मामले किशोरियों के आ रहे हैं। उन्हें भी सिस्ट की समस्या है। डॉक्टर उन्हें दवाओं के साथ ही संतुलित आहार और नियमित व्यायाम की सलाह दे रहे हैं।

क्या होती है दिक्कत

ओवरी (अंडाशय) में छोटी-छोटी कई सिस्ट हो जाती हैं जिससे गर्भधारण में दिक्कत आती है। आगे चलकर इनफर्टिलिटी (बांझपन) की दिक्कत हो सकती है।

क्या हैं लक्षण

- अनियमित माहवारी

- चेहरे पर बाल आना

- अत्याधिक थकान

- चेहरे पर कील मुंहासे होना

- अत्याधिक चिड़चिड़ापन

- थकान लगना

दवाओं से होती ठीक

डॉ.संगीता आर्या के मुताबिक सिस्ट की समस्या दवाओं से ठीक हो जाती है। इसमें ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है।

फास्टफूड बना रहा रोगी

किशोरियों में सिस्ट का सबसे बड़ा कारण अनियमित दिनचर्या, अत्यधिक फॉस्ट फूड का सेवन, व्यायाम से परहेज करना है। अगर यह समस्या अधिक दिन तक रहती है तो वह मधुमेह की शिकार हो सकती हैं।

अल्ट्रासाउंड और खून की जांच से पुष्टि

डॉक्टरों के मुताबिक अल्ट्रासाउंड और खून की जांच से सिस्ट का पता चल जाता है। आमतौर पर किशोरियां परिजन को समस्या के बारे में बताती नहीं है। यह नहीं होना चाहिए।

इनफर्टिलिटी के कई केस

ओपीडी में इनफर्टिलिटी की समस्या लेकर भी कई महिलाएं आ रही हैं। उनमें भी सिस्ट की दिक्कतें हैं। कुछ तो ऑपरेशन भी करा चुकी हैं, लेकिन फिर से समस्या उभर गई है। उनका इलाज भी चल रहा है।

''सिस्ट की समस्या दूर करने के लिए दवाओं के सेवन के साथ ही नियमित व्यायाम, संतुलित आहार जरूरी है। परिजन को बच्चियों से उनकी समस्या पर खुलकर बातचीत करनी चाहिए। - डॉ. किरण पांडेय, विभागाध्यक्ष, जच्चा-बच्चा अस्पताल

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