तारीखों में उलझ गए संपत्ति के विवाद

केस नंबर-1: अजय निगम के पिता ने 1964 में नगर महापालिका से जमीन खरीदी थी। इस जमीन के कुछ हिस्से पर 19

By Edited By: Publish:Sat, 01 Nov 2014 01:11 AM (IST) Updated:Sat, 01 Nov 2014 01:11 AM (IST)
तारीखों में उलझ गए संपत्ति के विवाद

केस नंबर-1: अजय निगम के पिता ने 1964 में नगर महापालिका से जमीन खरीदी थी। इस जमीन के कुछ हिस्से पर 1990 में कब्जा हो गया। केडीए ने 500 वर्गगज जमीन पर कब्जा तो दिला दिया शेष जमीन के लिए 1992 से मुकदमा चल रहा है।

केस नंबर-2: पीरोड के दो सगे भाइयों के बीच 1997 में मकान के बीच निकलने के रास्ते को लेकर विवाद शुरू हुआ। सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत में मामला लंबित है। एक्स पार्टी आदेश होने के बाद विपक्षी हाजिर होकर आदेश को निरस्त कराकर फिर गैरहाजिर हो गए।

-------

कानपुर, जागरण संवाददाता: पारिवारिक संपत्ति, सरकारी संपत्ति या ट्रस्ट हो सभी की यही स्थिति है। आठ हजार से ज्यादा मामले अदालतों में लंबित हैं और वादकारी परेशान। अधिवक्ताओं की मानें तो सिविल प्रक्रिया लंबी और पेंचीदा होने के चलते यह स्थिति पैदा होती है। दरअसल जिस व्यक्ति का विवादित संपत्ति में गैरवाजिब हित होता है वह मुकदमे को लंबित रखने में सभी पैंतरे अपनाता है और मुकदमे में तारीख दर तारीख मिलती रहती है।

--------

एक्स पार्टी आदेश

विवादित संपत्ति से जुड़ा वह पक्ष जिसका हित (संपत्ति मालिक/रजिस्ट्री धारक) प्रभावित होता है, वह कब्जा करने वाले पक्षकार के खिलाफ मामला अदालत में दाखिल करता है। सिविल मामला होने के चलते अदालत नोटिस भेजती है तो दूसरा पक्ष रिसीव नहीं करता। लगभग दो साल से ज्यादा मामला चलने के बाद जब आदेश का नंबर आता है तो दूसरा पक्ष हाजिर होकर नोटिस न मिलने की बात कहता है और अदालत में अपना पक्ष रखता है। चूंकि कानूनी प्रक्रिया है कि सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है लिहाजा फिर से सुनवाई शुरू होती है। इसके बाद शुरू होता है तारीख मांगने का क्रम जो कई सालों मामले को लंबित रखता है।

-------

सीपीसी में संशोधन नहीं हो रहा लागू

प्रक्रिया में है कि कोई भी पक्ष पूरे मुकदमे के दौरान तीन बार से ज्यादा (एडजर्नमेंट) तारीख मांगने के लिए प्रार्थनापत्र नहीं देगा लेकिन एक मुकदमे में सैकड़ों एडजर्नमेंट आते हैं। सीपीसी में संशोधन कर 90 दिन में मुकदमा निस्तारित करने का नियम बनाया गया है लेकिन व्यवहारिकता में यह लागू नहीं है।

--------

'सिविल मुकदमा जितना लंबा चाहो उतना लंबा खींचा जा सकता है। मूल विवाद तो छोड़िए बीच-बीच में दिये जाने वाले प्रार्थना पत्रों पर ही फैसला होने में महीनों तो कभी सालों गुजर जाते हैं। प्रक्रिया बेहद पेंचीदा है।'-कपिलदेव राय सिंहा, वरिष्ठ अधिवक्ता

--------

'संपत्ति के मामलों में सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है। लिटिगेशन पॉलिसी में कई सुधार हुए लेकिन लागू नहीं हो पा रहा है। सालों जवाबदावा ही दाखिल नहीं होता है। आरबीट्रेटर नियुक्त कर जल्द फैसले कराए जा सकते हैं।'-कौशल किशोर शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता

chat bot
आपका साथी