संप्रेषण गृह में मौज कर रहे बालिग

कानपुर, जागरण संवाददाता: संप्रेषण गृह में बालबंदी मौज कर रहे हैं। प्रक्रिया की जटिलता का वह बाखूबी फ

By Edited By: Publish:Tue, 30 Sep 2014 08:21 PM (IST) Updated:Tue, 30 Sep 2014 08:21 PM (IST)
संप्रेषण गृह में मौज कर रहे बालिग

कानपुर, जागरण संवाददाता: संप्रेषण गृह में बालबंदी मौज कर रहे हैं। प्रक्रिया की जटिलता का वह बाखूबी फायदा उठाते हैं। बीते सप्ताह जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव गगन कुमार भारती के औचक निरीक्षण में भी यह बात सामने आयी थी। हालांकि अब इन बाल बंदियों की सूची बनाकर स्थानांतरण करने की तैयारी की जा रही है।

दरअसल संप्रेषण गृह बालकों का सुधार गृह है। यहां कारागार जैसी कोई व्यवस्था या बंदिश नहीं होती है। इसलिए उम्र में थोड़ा भी अंतर होने पर अपराध में लिप्त बंदी खुद को नाबालिग बताते हुए यहां जाना पसंद करते हैं। नाबालिग घोषित होने पर जमानत आसानी से हो जाती है वहीं बड़ी सजा से भी छुटकारा मिल जाता है। इसमें प्रक्रिया भी उनका साथ देती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में आरोपी की आयु लिखने का प्रावधान है लेकिन पुलिस ऐसा नहीं करती। क्योंकि आरोपी के नाबालिग होने पर पुलिस की कार्रवाई कई गुना बढ़ जाती है। साथ ही पकड़े गए बंदी का मेडिकल होना चाहिए जो नहीं होता। इसके बाद कोर्ट में बंदी खुद को कम उम्र का बताता है तो फिर समस्या पैदा होती है। इसके साथ ही बोर्ड से बंदी को नाबालिग करार देकर संप्रेषण गृह भेजा जाता है तो उसकी उम्र संबंधी कोई रिकार्ड नहीं दिया जाता। इससे बंदी के बालिग होने के बावजूद वह संप्रेषण गृह में आराम से रहते हैं। नियम यह है कि जैसे ही संप्रेषण गृह के अधीक्षक को लगे कि बंदी बालिग हो गए हैं तो वह कोर्ट को प्रार्थना पत्र देकर बालिग बंदियों को जिला कारागार भेजेंगे लेकिन रिकार्ड न होने से वह भी ऐसा नहीं कर पाते।

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'प्राथमिक दृष्टि में जो बालिग लगते हैं लेकिन उनकी उम्र का ब्यौरा कचहरी से प्राप्त करने के बाद उन्हें जिला कारागार भेजने का प्रार्थना पत्र दिया जाता है लेकिन उम्र का डाटा न होने से कभी-कभी इसमें कुछ वक्त लग जाता है।'

आशुतोष कुमार सिंह, जिला प्रोबेशन अधिकारी

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