एक जश्न ने बदल दी सोच

लोगो : युवा गाथा - हिमांशु वर्मा ::: समरी पैरा ::: देश में युवा शक्ति को रीढ़ की हड्डी कहा

By JagranEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 01:20 AM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 01:20 AM (IST)
एक जश्न ने बदल दी सोच
एक जश्न ने बदल दी सोच

लोगो : युवा गाथा

- हिमांशु वर्मा

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समरी पैरा

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देश में युवा शक्ति को रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। यही वह शक्ति है, जिसके कन्धे पर देश को आगे बढ़ाने व विकसित बनाने की ़िजम्मेदारी होती है। एक समय था कि युवाओं व बुजुर्गो के बीच जेनरेशन गैप था, बातचीत सीमित थी, सिर्फ बुजुर्ग ही युवाओं को दुनियादारी की समझ कराते थे - अब ऐसा नहीं है। आज के युवा हर मामले में आगे हैं। जेनरेशन गैप की इस खाई को पाट रहे हैं, तो सफलता व सामंजस्य की एक नई गाथा लिख रहे हैं। युवाओं द्वारा की जा रही ऐसी ही अलग गतिविधियाँ रोचक भी हैं और प्रेरक भी। आइये, 'युवा गाथा' के माध्यम से हम मिलते हैं ऐसे कुछ युवाओं से, जो बदलाव के लिए अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं।

- सम्पादक

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फोटो

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- युवाओं का एक समूह समाज का बन रहा मददगार

- भोजन से लेकर खून तक की सहायता को रहते हैं तत्पर

- सोशल मीडिया का बखूबी कर रहे इस्तेमाल

झाँसी : फर्ज कीजिए दोस्तों का एक समूह किसी खास मौके पर जश्न मनाने बैठा हो। अच्छे होटल में खाना, किसी डैम या शहर से थोड़ी दूर किसी सुकून वाली जगह घूम आना और क्या चाहिए। पर इसी बीच कुछ ऐसा दिख जाए, जो मन में उथल-पुथल मचा दे। यह समझ आने लगे कि जहाँ एक ़िजन्दगी ऐसे मौज में कट रही है, तो वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जिनके पास कष्टों की भरमार है। वजह कुछ भी हो सकती है। ऐसे में हृदय परिवर्तन सकारात्मक दिशा की ओर ले ही जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ है कि महानगर के कुछ युवाओं के साथ। हृदय परिवर्तन ऐसा हुआ है कि अब सामाजिक कार्य अच्छे लगने लगे, सुकून देने लगे। युवा हैं, तो तकनीक के जानकार भी हैं। इसके उपयोग से कम समय में खुद को काफी प्रसारित कर लिये हैं। युवा गाथा में आज कहानी फूड रिलीफ फाउण्डेशन की। फाउण्डेशन अभी बहुत पुराना नहीं है, पर इसे प्रोत्साहित करना इसलिए ़जरूरी समझा, ताकि यह अपने उद्देश्य की तरह ते़जी से आगे बढ़ सके।

फाउण्डेशन की उपज लगभग 5 माह पहले कुछ दोस्तों की एक पार्टी से हुई। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के छात्र रहे राशिद खान, रेलवे ड्राइवर भूपेन्द्र कुशवाहा, सौरभ पाठक, मुकेश वर्मा, सुमित पाण्डेय, मोनू प्रजापति आदि एक दोस्तों ने पार्टी मनाने की सोची और चल दिये एक अच्छे होटल की ओर। खाना खाने के बाद 4 ह़जार रुपए का बिल सभी ने मिल-जुलकर दिया। होटल से बाहर निकले, तो कुछ ऐसे ़गरीब दिखे, जो भूखे थे। उस वक्त 4 ह़जार रुपए का बिल युवाओं को सबक दे गया। उन्हें लगा कि इस पैसे का उपयोग किसी ़जरूरतमन्द के लिए किया जा सकता है, भले ही ऐसा हर रो़ज सम्भव न हो। मिलकर योजना बनायी और फाउण्डेशन बना डाला। आज यह फाउण्डेशन महीने में तीन बार सामूहिक योगदान से ़जरूरतमन्दों के लिए भोजन की व्यवस्था करता है। अब फाउण्डेशन से लगभग 40 लोग जुड़ चुके हैं, इसलिए अब भोजन की व्यवस्था अधिक दिन भी हो जाती है। सदस्यों के जन्मदिन अब ऐसे ही ़गरीबों के बीच में मना रहे हैं। फाउण्डेशन सदस्य कहते हैं कि अब ऐसा करना आदत बन गया है। इसमें ़ग़जब का सुकून मिलता है।

ब्लड डोनेट करने को रहते हैं तत्पर

फाउण्डेशन के अहम पदाधिकारी राशिद बताते हैं कि सभी सदस्यों के ब्लड ग्रुप रजिस्टर में अंकित हैं। इसके लिए वॉट्सऐप ग्रुप बनाया है, जिसमें रक्तदान करने वाले और भी लोगों को जोड़ा गया है। सूचना मिलने पर ग्रुप में पोस्ट कर दिया जाता है और सम्बन्धित ब्लड ग्रुप के सदस्य का मोबाइल नम्बर दे दिया जाता है। रक्तदान के लिए अन्य ग्रुप से आयी डिमाण्ड भी पूरी की जाती है, अगर सम्भव हो तो। ग्रुप सदस्यों के अलावा परिवार के लोगों की भी सहायता इस कार्य के लिए ली जाती है।

चलाते हैं चुप्पी तोड़ो अभियान

देश भर में हो रही महिलाओं के प्रति हिंसा को लेकर ग्रुप सदस्य 'चुप्पी तोड़ो' के नाम से एक अभियान भी चलाते हैं। इसमें प्रमुख चौराहें पर नुक्कड़ नाटक कर यह समझाया जाता है कि इस प्रकार के मामले होने से पहले यदि किसी को भनक लगे, तो चुप्पी तोड़नी चाहिए, ताकि अपराध हो ही न पाए। लोग पता होते हुए भी आवा़ज नहीं उठाते, बाद में उनको पछतावा होता है। इस अभियान को प्रमोट करने के लिए सदस्यों ने यू-ट्यूब पर एक पे़ज बनाया हुआ है, जिसके माध्यम से यह सोच और लोगों के साथ भी शेयर की जाती है।

गोद लेंगे सरकारी स्कूल के बच्चे

ग्रुप सदस्यों का कहना है कि फाउण्डेशन ने तय किया है कि आगामी शैक्षणिक सत्र में ग्रुप का हर सदस्य सरकारी स्कूल के 5 बच्चों को गोद लेगा। मतलब उनकी फीस, ड्रेस, कॉपी-किताब आदि का खर्च वहन करेगा। इसके लिए सभी तैयार हैं।

इनका कहना है

0 अभी शुरुआत की है। लम्बा सफर तय करना है। प्रयास है कि ़जरूरतमन्दों की सहायता उनके माध्यम से हो सके। यह एक अच्छा अनुभव है, जो मन को तसल्ली देता है।

- राशिद खान

0 अगर हम समाज के काम आ सकते हैं, तो क्यों न आएं? ऐसे ही तो समाज आगे बढ़ेगा।

- भूपेन्द्र कुशवाहा

0 ऐसा नहीं है कि खुद को मत देखिए। बस थोड़ा किसी ़जरूरमन्द के बारे में सोचिए, खुद मदद करने को जी चाहेगा। यह एक बेहतरीन अनुभव रहता है।

- सौरभ पाठक

0 वैसे तो हम ग्रुप के सदस्य सब अलग-अलग काम करते हैं, पर जब भी कोई ़जरूरत पड़ जाए, तो टीम हो जाते हैं। यही ऊर्जा देता है।

- मुकेश वर्मा

फाइल : हिमांशु वर्मा

समय : 8.45 बजे

23 सितम्बर 2018

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