किसानों की तकदीर बदल देगी प्राकृतिक खेती

लोगो : किसान कथा - राजेश शर्मा ::: फोटो हाफ कॉलम आचार्य अविनाश ::: झाँसी : किसानों को ़जीर

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 Sep 2018 12:59 AM (IST) Updated:Fri, 14 Sep 2018 12:59 AM (IST)
किसानों की तकदीर बदल देगी प्राकृतिक खेती
किसानों की तकदीर बदल देगी प्राकृतिक खेती

लोगो : किसान कथा

- राजेश शर्मा

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फोटो हाफ कॉलम आचार्य अविनाश

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झाँसी : किसानों को ़जीरो बजट प्राकृतिक खेती की तकनीक समझाने के लिए 21 सितम्बर से शिविर का आयोजन किया जा रहा है। किसानों को बताया जाएगा कि कैसे एक देशी गाय खेती के बजट को ़जीरो (शून्य) कर सकती है। इसके अलावा प्रकृति से उपलब्ध संसाधनों का किसान किस तरह से उपयोग कर सकते हैं। शिविर समन्वयक आचार्य अविनाश का दावा है कि एक देशी गाय से 30 एकड़ भूमि पर नि:शुल्क खेती की जा सकती है। रासायनिक खाद व कीटनाशक के बिना होने वाली इस खेती से लोगों को शुद्ध और पौष्टिक उपज भी मिल सकेगी। बुन्देलखण्ड किसान समृद्धि अभियान ट्रस्ट द्वारा किसानों तक इस तकनीक को पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि बुन्देलखण्ड के किसान कम लागत में खेती कर अपनी आय को दोगुना कर सकें। माना जा रहा है कि अगर खेती की यह तकनीक सफल होती है, तो बुन्देलखण्ड के किसानों की तकदीर बदल जाएगी।

प्राकृतिक व्यवस्था

पौधों के पोषण हेतु आवश्यक सभी 16 तत्व प्रकृति में उपलब्ध रहते हैं। उन्हें पौधे के भोजन रूप में बदलने का कार्य मिट्टी में पाए जाने वाले करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु करते हैं। इस पद्धति में पौधों को भोजन न देकर भोजन बनाने वाले सूक्ष्म जीवाणु की उपलब्धता पर जोर दिया जाता है। प्रकृति में इस सूक्ष्म जीवाणु की उपलब्धता की विशिष्ट व्यवस्था है। पौधों के पोषण की प्रकृति में चक्रीय व्यवस्था है। पौधा अपने पोषण के लिए मिट्टी से सभी तत्व लेता है। ़फसल के पकने के बाद काष्ठ पदार्थ के रूप में मिट्टी में मिलकर, अपघटित होकर मिट्टी को उर्वरा शक्ति के रूप में लौटाता है।

देशी गाय का कृषि में महत्व

कहा जाता है कि देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ उपरोक्त सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। गाय के गोबर में गुड़ एवं अन्य पदार्थ डालकर किन्वन से सूक्ष्म जीवाणु बढ़ा कर तैयार किया जीवामृत, घनजीवामृत जब खेत में डाला जाता है, तो करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु भूमि में उपलब्ध तत्वों से पौधों के लिए भोजन निर्माण करते हैं।

देशी केंचुओं का कृषि में महत्व

केंचुआ मिट्टी, बालू पत्थर खाता हुआ 15 फीट गहराई तक भूमि के नीचे जाता है। नीचे से पोषक तत्वों को ऊपर लाता है तथा पौधे की जड़ के पास अपनी विष्टा के रूप में छोड़ता है, जिसमें सभी आवश्यक तत्वों का भण्डार होता है। केंचुआ जिस छेद से नीचे जाता है, उससे ऊपर नहीं आता है। भूमि में दिन रात करोड़ों छिद्र कर भूमि की जुताई कर मुलायम बनाता है। इन्हीं छिद्रों से पूरा वर्षा जल भूमि में संग्रहित होता है।

प्राकृतिक कृषि के चरण

बीजामृत : 5 किलो गोबर, 5 लिटर गौमूत्र, 50 ग्राम चूना, एक मुट्ठी मिट्टी, 20 लिटर पानी में मिलाकर 24 घण्टे रखें। दिन में 2 बार लकड़ी से घोलें। इससे 100 किलो बीज का उपचार कर सकते हैं। उपचारित बीज को छाँव में सुखाकर बोएं।

जीवामृत : जीवामृत सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है, जो कच्चे पोषक तत्वों को पकाकर पौधों के लिए भोजन तैयार करते हैं। गौमूत्र 5-10 लिटर, गोबर 10 किलो, गुड़ 1-2 किलो, दलहन आटा 1-2 किलो, एक मुट्ठी (100 ग्राम) जीवाणुयक्त मिट्टी, 200 लिटर पानी मिलाकर ड्रम को जूट की बोरी से ढककर छाया में रखें। सुबह-शाम डण्डे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलें। 48 घण्टे बाद छानकर 7 दिन के अन्दर ही प्रयोग करें।

जीवामृत प्रयोग विधि

1 एकड़ में 200 लिटर जीवामृत पानी के साथ टपक विधि से या धीरे-धीरे बहा दें। बुआई के एक माह बाद 1 एकड़ भूमि में 100 लिटर पानी में 5 लिटर जीवामृत मिलाकर छिड़काव करें। दूसरा छिड़काव 21 दिन बाद 1 एकड़ में 150 लिटर पानी व 10 लिटर जीवामृत मिलाकर करें। तीसरा व चौथा छिड़काव 21-21 दिन के अन्तराल में 1 एकड़ में 200 लिटर पानी व 20 लिटर जीवामृत मिलाकर करें। आखिरी छिड़काव दाने की दुग्धावस्था में प्रति एकड़ 200 लिटर पानी व 10 लिटर खट्टा मट्ठा मिलाकर करें।

बहु़फसली पद्धति

उचित मिश्रित ़फसलों को लेने पर फसलों की जड़ें सह-अस्तित्व के आधार पर रोगों एवं कीटों से बचाव तथा प्राकृतिक संसाधनों (नाइट्रोजन, प्रकाश, जल, क्षेत्र) का बँटवारा कर लेती हैं। एक दलीय के साथ द्वि-दलीय, दलहन के साथ अनाज व तिलहन, गन्ना के साथ प्याज एवं सब़्िजयाँ, पेड़ों की छाया में हल्दी, अदरक, अरबी जैसे प्रयोगों से भूमि को नाइट्रोजन स्वत: प्राप्त हो जाता है।

रजिस्ट्रेशन के लिए करें सम्पर्क

़जीरो बजट प्राकृतिक खेती की तकनीक से किसानों को अवगत कराने के लिए 21 से 26 सितम्बर तक पैरामेडिकल कॉलिज के सभागार में शिविर का आयोजन किया जा रहा है। 6 दिवसीय शिविर में शामिल होने के लिए किसान को पंजीकरण कराना अनिवार्य है, जिसका शुल्क 500 रुपए निर्धारित किया गया है। शिविर में शामिल होने एवं जीरो बजट खेती की तकनीक के बारे में जानकारी के लिए किसान शिविर समन्वयक आचार्य अविनाश के मोबाइल नम्बर 9451936001 व मीडिया प्रभारी प्रो. एसआर गुप्ता के नम्बर 9450079995 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

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उदाहरण 1

प्राकृतिक खेती ने बढ़ाई आय

विकास खण्ड मोंठ के ग्राम साकिन में रहने वाले अवधेश प्रताप ने लगभग 6 साल पहले प्राकृतिक खेती की शुरूआत की। उन्होंने सड़क पर घूम रहीं 10 गायों का पालन-पोषण किया और उसके गोबर से 40 एकड़ भूमि पर ़जीरो बजट खेती तकनीक से खेती की। उन्होंने दावा किया कि इस तकनीक से उनकी उपज में बढ़ोत्तरी हुई है और हर वर्ष वह लगभग 6 लाख रुपए की कृषि लागत बचा लेते हैं। पिछले दिनों कृषि वैज्ञानिकों के दल ने अवधेश के खेत मुआयना किया और इस तकनीक को सफल माना। अवधेश बताते हैं कि गाँव व आसपास के लगभग 20 किसानों ने भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपनाया है, जो अब लाभ कमा रहे हैं।

उदाहरण 2

पुलिस में लम्बे समय तक सेवा देने वाले शरद प्रताप सिंह ने सेवानिवृत्ति के बाद पाली-पलींदा में खेती प्रारम्भ की। 5 एकड़ भूमि के लिए गाय पाली और उसके गोबर व गौमूत्र का खेती में प्रयोग प्रारम्भ किया। एक साल पहले प्राकृतिक खेती प्रारम्भ की। शरद प्रताप ने बताया कि उन्होंने पिछले साल तोरई लगाई और रासायनिक उर्वरक व कैमिकल का प्रयोग किया। बटाईदार व खर्च निकालकर वर्ष में 20 ह़जार रुपए का लाभ अर्जित किया, लेकिन इस साल ़जीरो बजट तकनीक से खेती करने पर उसी तोरई की ़फसल से 55 ह़जार रुपए का मुनाफा मिला, जबकि इतना ही लाभ बटाईदार को दिया। उनके खेत पर स्थापित ़जीरो बजट प्राकृतिक खेती के मॉडल को भी अनेक किसान देखकर अपनाने लगे हैं।

फाइल : 1 : राजेश शर्मा

13 सितम्बर 2018

समय : 5.45 बजे

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