40 किमी. जंगलों व नदियों के रास्ते पैदल पहुंचे थे अयोध्या

टीडी पीजी कालेज से सेवानिवृत्त शिक्षक तिलकधारी सिंह जीवन के 90 वसंत देख चुके हैं। उनका अयोध्या से गहरा लगाव है। 1963 से लगातार आना-जाना भी रहा। वे 1990 व 1992 के अयोध्या कांड से भी जुड़े रहे। अब जब पीएम नरेंद्र मोदी राम मंदिर के लिए भूमि पूजन कर दिए तो यह भी आंदोलन से जुड़े अपने संस्मरण को डायरी में संजोने लगे हैं। दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान बरबस ही अयोध्या कांड में मारे गए कारसेवकों को यादकर रो पड़े। कहा कि आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए पुलिस से बचते हुए वह भी 40 किमी तक जंगलों नदियों व बस्तियों के रास्ते पैदल अयोध्या पहुंचे थे।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 Aug 2020 11:16 PM (IST) Updated:Tue, 11 Aug 2020 06:05 AM (IST)
40 किमी. जंगलों व नदियों के रास्ते पैदल पहुंचे थे अयोध्या
40 किमी. जंगलों व नदियों के रास्ते पैदल पहुंचे थे अयोध्या

जौनपुर : टीडी पीजी कालेज से सेवानिवृत्त शिक्षक तिलकधारी सिंह जीवन के 90 वसंत देख चुके हैं। उनका अयोध्या से गहरा लगाव है। 1963 से लगातार आना-जाना भी रहा। वे 1990 व 1992 के अयोध्या कांड से भी जुड़े रहे। अब जब पीएम नरेंद्र मोदी राम मंदिर के लिए भूमि पूजन कर दिए तो यह भी आंदोलन से जुड़े अपने संस्मरण को डायरी में संजोने लगे हैं। दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान बरबस ही अयोध्या कांड में मारे गए कारसेवकों को यादकर रो पड़े। कहा कि आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए पुलिस से बचते हुए वह भी 40 किमी तक जंगलों, नदियों व बस्तियों के रास्ते पैदल अयोध्या पहुंचे थे।

श्री सिंह ने बातचीत में बताया कि वह 1963 से अयोध्या में वशिष्ठ कुंड गोकुल आश्रम में हर सप्ताह जाया करते थे। वहां महंत नृत्यगोपाल दास से भी मुलाकात होती रही। बताया कि अयोध्या के लिए जब पूरे देश से आरएसएस कार्यकर्ताओं से पहुंचने का आह्वान हुआ तो वह शिक्षक साथी रामदवर द्विवेदी के वाहन से 28 अक्टूबर 1990 को पांच लोगों के साथ निकले थे। इसमें राजस्थान के रामेश्वर, मेजर अरोड़ा व एक अन्य थे। उनके वाहन को पुलिस द्वारा सुल्तानपुर जिले के दोषपुर में पकड़ लिया गया तो वह लोग जंगल, नदी, बस्तियों के रास्ते से होकर करीब 40 किमी पैदल यात्रा करके अयोध्या पहुंचे। मार्ग भटकने पर पुलिस के जवानों ने भी सहयोग किया था।

1990 के संस्मरण को बताते हुए कहा कि 30 अक्टूबर को विवादित ढांचे पर लगे बैरियर को बस से चालक ने तोड़ दिया था। फिर विवादित ढांचे के गुंबद पर कोठारी बंधु नामक दो भाइयों ने केसरिया झंडा फहराया था। पूरे अयोध्या में जय श्रीराम के नारे लगने लगे। इस दौरान चली पुलिस की गोलियों से कई कारसेवकों की मौत हो गई लेकिन सरकार की तरफ से दो की पुष्टि की गई। उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने विवादित स्थल की पुन: मरम्मत करते सुरक्षा घेरा बढ़ा दिया। दो नवंबर 1990 की सुबह आठ बजे कारसेवक विवादित ढांचे की तरफ बढ़ने वाले थे। तभी आइटीबीपी के जवानों ने सुबह करीब 10 बजे गोलियों से कई कारसेवकों को मौत के घाट उतारा दिया। इसके बाद तीन-चार दिनों तक संघ की बैठकें अशोक सिघल, उमा भारती, नृत्य गोपाल दास, साध्वी ऋतंभरा ने नेतृत्व में हुई, इसमें सभी के अंदर आक्रोश व निराशा थी। छह दिसंबर 1992 का ²श्य

श्री सिंह ने बताया कि वह छह दिसंबर को जौनपुर से सुबह पांच बजे ट्रेन पकड़कर करीब 10 बजे अयोध्या स्टेशन पर उतरे। स्टेशन से ही दिख रहा था कि विवादित ढांचे के गुंबद पर सैकड़ों की संख्या में चढ़कर लोग तोड़-फोड़ कर रहे थे लेकिन उस पर खड़े होने की जगह न होने पर लोग गिरकर घायल हो रहे थे। नीचे अन्य कारसेवकों द्वारा खटिया पर लादकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा था। थककर लोगों ने गुंबद की नींव को लोहे के तार की रस्सी से बांधकर खींचना शुरू किया, तो बारी-बारी से तीनों गुंबद धराशाई हो गईं। इसके बाद देखते ही देखते ईंट-पत्थर को लोग उठाकर ले चले गए और वह स्थान खाली हो गया। पर्दे के पीछे से तत्कालीन केंद्र की नरसिम्हा राव की सरकार ने भी सहयोग किया। किसी भी कारसेवकों के ऊपर एक भी लाठिया नहीं चलीं। उन्होंने बताया कि बताया कि वह 1996 में अशोक सिघल के आह्वान पर अयोध्या गए थे। दिल्ली में गोरक्षा आंदोलन में 1967 में गए थे, जहां उनको जेल जाना पड़ा था तो 1977 की इमरजेंसी में भी जेल की यात्रा कर चुके हैं। श्री सिंह ने बताया कि राम मंदिर सिर्फ मंदिर ही नहीं भारत देश की मर्यादा व आस्था का सवाल है।

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