आधुनिकता की चकाचौंध में खो रहे खपरैल के मकान

By Edited By: Publish:Sun, 27 Jul 2014 07:42 PM (IST) Updated:Sun, 27 Jul 2014 07:42 PM (IST)
आधुनिकता की चकाचौंध में खो रहे खपरैल के मकान

सिकरारा (जौनपुर): डेढ़ गज की मिंट्टी से बनी दीवार, उस पर लकड़ी व खपरैल की सहायता से बनी छत तथा साज-सज्जा के लिए लगाया गया कलशयुक्त मकान कभी शानो-शौकत का प्रतीक हुआ करता था किंतु संसाधनों तथा कारीगरों की किल्लत से अब ऐसे मकान जमींदोज होते जा रहे हैं। इनके स्थान पर ईंट व कंकरीट से बनी हवेली स्टेटस सिंबल बन गई है। आधुनिकता के दौर में ऐसे मकान धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।

निर्माण लागत कम होने तथा ग्रामीण परिवेश में ही भवन सामग्री की उपलब्धता होने के कारण लोग मिंट्टी की दीवार पर खपरैल की छत बनाकर निवास करते थे। अब गांवों में मिंट्टी की किल्लत तथा नरिया-थपुआ बनाने का कार्य कुम्हारों द्वारा बंद किए जाने के बाद खपरैल के मकान की मरम्मत का कार्य दुश्वारियों से भरा है। इसी कारण से अब ये भवन जमींदोज होते जा रहे हैं। उनके स्थान पर भारी लागत लगने के बावजूद लोग पक्के ईंट व कंकरीट से बने मकान बनाकर रह रहे हैं। वर्षा ऋतु के समय अभी भी जिन गरीब परिवारों के पास पुराने मकान हैं वे उनकी मरम्मत का कार्य करके उन्हें बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसा ही एक परिवार खानापंट्टी गांव की कुम्हार बस्ती में अपने पुस्तैनी खपरैल की मरम्मत कार्य करने में परेशान दिखा। ग्रामीण के अनुसार सामान न मिलने से कच्चे भवन के मरम्मत में परेशानी हो रही है।

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