रोटी के लिए हालात से समझौता कर रहे प्रवासी

हरदोई में कोरोना ने लोगों को घरों को लौटने पर किया विवश।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 08 Jun 2020 11:00 PM (IST) Updated:Mon, 08 Jun 2020 11:00 PM (IST)
रोटी के लिए हालात से समझौता कर रहे प्रवासी
रोटी के लिए हालात से समझौता कर रहे प्रवासी

हरदोई : वैश्विक महामारी कोरोना ने लोगों को घरों को लौटने पर विवश कर दिया। अब गांव में लोगों को रुचि के विपरीत काम करना पड़ रहा है। कई वर्षों से फैक्ट्री में काम करने वाले हाथों ने तसला थाम लिया है। यहीं नहीं फैक्ट्री में अपनी कारीगरी का जलवा दिखाने वाले हुनरमंद अब यहां फावड़ा व गैंती पकड़कर दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। हुनर के मुताबिक काम और दाम न मिलने से प्रवासी परेशान हैं, उन्हें गांव से लगाव तो है, लेकिन कमाई का मोह एक बार फिर शहरों की ओर रुख करने के लिए प्रेरित कर रहा है। भरखनी ब्लाक की ग्राम पंचायत उबरिया में सैकड़ों की संख्या में दिल्ली, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, अहमदाबाद, जयपुर, हैदराबाद से प्रवासी मजदूर गांव वापस आए हैं। शहरों में कोई जूते बनाने का कारीगर था तो कोई सिलाई कढ़ाई का, ज्यादातर लोग फैक्ट्रियों में काम करते थे। गांव आने के बाद जब कोई काम नहीं मिला और रोजी रोटी की दिक्कत होने लगी तो इन्होंने प्रधान के पास जाकर मनरेगा में काम करने के लिए मदद मांगी। प्रधान ने सभी को मनरेगा में काम दिया और जिन लोगों के जॉब कार्ड नहीं बने थे उनके तत्काल कार्ड बनाकर उनको भी काम दे दिया। काम मिलने से उनके परिवार की रोजी-रोटी आसानी से चलने लगी, लेकिन हुनर के मुताबिक काम न मिलने से प्रवासी परेशान हैं। उबरिया निवासी मंसाराम मेरठ में नौकरी करते थे और गांव के ही अरविद दिल्ली में प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। इन्हीं की तरह कई अन्य प्रवासी श्रमिक अलग-अलग शहरों से जैसे राहुल और गोपाल जयपुर, रंजन और भानू अहमदाबाद, रामकिशन और बलराम अहमदाबाद, प्रदीप और गणपति हैदराबाद में काम करते थे। पहले तो तसला उठाने, फावड़ा व गैंती चलाने में संकोच और हिचक महसूस की, लेकिन समय के फेर ने इन्हें यह भी सिखा दिया। मनरेगा में काम के अलावा प्रधान केतन सिंह ने अपने कुछ खेत प्रवासी श्रमिकों को बंटाई पर फसल करने के लिए दे दिए हैं। जिससे उन्हें दिक्कतों का सामान न करना पड़े।

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