चौपाल : काका, ये भी शरीफ ही हैं Gorakhpur News

गोरखपुर से साप्‍ताहिक कालम में इस बार पुलिस विभाग और उसकी कार्य प्रणाली पर फोकस करती रिपोर्ट प्रकाशित की गई है जिसमें पुलिस और अधिकारियों की दिनचर्या का भी उल्‍लेख है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से जितेंद्र पांडेय का साप्‍ताहिक कालम चौपाल।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Tue, 29 Dec 2020 04:09 PM (IST) Updated:Tue, 29 Dec 2020 04:09 PM (IST)
चौपाल : काका, ये भी शरीफ ही हैं Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्‍ताहिक कालम चौपाल के लिए फोटो।

जितेन्‍द्र पांडेय, गोरखपुर। मनबोध काका एक दिन मेरे साथ थाने गए थे। मैंने काका का परिचय कराया कि शरीफ व्यक्ति हैं। थोड़ी देर में उनके सामने कोट पहने एक स्मार्ट सा युवक पहुंचा। दारोगाजी ने उसका परिचय कराया कि ये भी शरीफ व्यक्ति हैं। वह दारोगाजी से बातें कम करें, हाथ अधिक जोड़ते दिख रहे थे। दरअसल, वह फेसबुक-फेसबुक खेलते हुए जालसाजी के शिकार हो गए थे। महिला के नाम पर फेसबुक के जरिए वाट्सएप तक पहुंचे जालसाजों ने उन्हेंं आपत्तिजनक वीडियो दिखाया, तो उन्होंने भी पूरी क्षमता के साथ अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया। जालसाजों ने उनकी बहादुरी की फिल्म बना डाली। उसके बाद से हर सप्ताह फिल्म की कीमत वसूलते हैं। यह शरीफ बेचारे थाने के चक्कर लगा रहे हैं। इन्होंने कह दिया है कि अब शादी के बाद भी बहादुरी नहीं दिखाउंगा। वहां से छूटते ही काका हम पर बरस पड़े। बोले अब कहीं शरीफ बोलकर मेरा परिचय मत कराना।

दारोगाजी, स्थान और काल देख लेते

कहानियां लिखने में अपने दारोगा जी का कोई जोड़ नहीं है। इतने माहिर हैं कि स्थान, काल (समय) और पात्र तक की चिंता नहीं करते। इसका ताजा उदाहरण कुछ दिन पहले उनके द्वारा लिखी मुठभेड़ की पटकथा है। पटकथा के अनुसार सुबह साढ़े छह बजे (तब मंडी ठसाठस भरी होती है) सब्जी मंडी में बदमाशों व पुलिस की भिड़ंत हो गई। पटकथा को अखबारों के माध्यम से मंडी वालों ने भी पढ़ा। पढऩे वालों में चंदू चाचा भी शामिल थे। खबर पढऩे के बाद वह ऊपर वाले को धन्यवाद देते नजर आए। बोले, अच्छा हुआ कि उस दिन सब्जी खरीदने मंडी नहीं गया। गोली का क्या भरोसा, वह कहां किसी को पहचानती है। लोगों ने चाचा को समझाया कि घबराइए नहीं। असल मुठभेड़ कहीं और हुई। यह तो कागज वाली पटकथा है। चाचा को राहत मिली। बोले दारोगाजी, पात्र तो ठीक हैं, एक बार स्थान व काल तो देख लेते।

साहब और गाड़ी, दोनों चुनाव ड्यूटी में

शिक्षक विधायक का चुनाव भले ही पखवारा भर पहले संपन्न हो गया, लेकिन खेती-किसानी से जुड़े एक साहब उसे अब तक नहीं भूले हैं। दो दिन पहले उनसे एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान चर्चा शिक्षक विधायक के चुनाव पर भी पहुंच गयी। चर्चा छिड़ते ही साहब बिदक गए। बोले, मुझसे तो डबल ड्यूटी ली गई। चुनाव में मेरी ड्यूटी लगाई गई और मेरे वाहन को चुनाव के नाम पर आरक्षित कर लिया गया। समस्या यह थी कि बिना गाड़ी के चुनाव ड्यूटी करूं कैसे। जाऊं तो भी दिक्कत, न जाऊं तो भी। मजबूरी में साहब ने किराये पर वाहन लिया। चुनाव खत्म होते ही किराये का वाहन एक अन्य साहब लेकर चले गए। साहब किसी की बाइक से घर पहुंचे। बोले, कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सिर्फ मैंने ही नहीं, गाड़़ी ने भी चुनाव ड्यूटी की। साहब, बेचारे अब तक गाड़ी का किराया भर रहे हैं।

भाई, मेरे साथ तो लूट हुई थी

पूरा जिला खाकी वाले साहब की काबिलियत का यशगान कर रहा है। साहब हैं ही इतने विद्वान। उनका तो एक ही नारा है, अपराधी पकड़े जाएं तो धाराएं बढ़ा दो, नहीं तो मामला ही संदिग्ध है। जिले के दक्षिणी हिस्से में बदमाशों ने ताकतवर पार्टी के एक नेता की बाइक और मोबाइल लूट लिया। नेताजी थाने में चीखे-चिल्लाए। बात नहीं बनी तो गिड़गिड़ाए। तब पुलिस ने चोरी का मुकदमा दर्ज किया। नेताजी को लगा, थोड़ी उनकी भी इज्जत रह गई। जब भी कोई नेताजी को टोके, वह पहले ही कह देते कि मुझे पता ही नहीं चला, कब मेरी बाइक चोरी हो गई। कुछ दिन बाद पुलिस ने आरोपितों को दबोच लिया। साहब के निर्देश पर आनन-फानन चोरी से मामले को लूट में बदला गया। अब नेताजी के समक्ष धर्मसंकट हो गया। कोई पूछे, इससे पहले ही बोल देते, भाई मेरे साथ लूट हुई थी। बदमाश तो पकड़े ही जाएंगे।

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