हाल बेहाल : मुर्गा बन जाएंगे, काम नहीं करेंगे Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कालम-हाल बेहाल...

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Thu, 25 Jun 2020 04:54 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jun 2020 04:54 PM (IST)
हाल बेहाल : मुर्गा बन जाएंगे, काम नहीं करेंगे Gorakhpur News
हाल बेहाल : मुर्गा बन जाएंगे, काम नहीं करेंगे Gorakhpur News

दुर्गेश त्रिपाठी, गोरखपुर। सफाई महकमे में हाजिरी घोटाला करने वालों को उम्मीद भी नहीं थी कि उनकी पोल खुल जाएगी। कभी जांच तो होती नहीं थी, इसलिए बेफिक्र थे कि कुछ होगा नहीं, लेकिन लॉकडाउन में अचानक काम करने वालों की तादाद बढ़ी तो साहब को शक हुआ। अंगूठे वाली मशीन से आंकड़े लिए, तो हाजिरी घोटाले की पोल खुल गई। साहब ने सभी से रुपये वापस लेने का नोटिस जारी किया, लेकिन यहां भी खेल हो गया। जिसे नोटिस देने की जिम्मेदारी थी, उसने इसे आगे बढ़ाया ही नहीं। एक दिन साहब ने नोटिस के बारे में पूछा, तो जिम्मेदार कर्मचारी को बुलाया गया। पता चला कि नोटिस भेजा ही नहीं गया है। साहब ने कहा, 'तुमने गलती की है, मुर्गा बनोगे तभी नौकरी कर पाओगे।Ó कर्मचारी तत्काल मुर्गा बनने को झुकने लगा। साहब ठहरे रहमदिल, उन्होंने उसे मुर्गा बनने से रोका और बोल बड़े, काम नहीं करेंगे, मुर्गा भले बन जाएंगे।

छह महीने बाद आए, मुंह की खाए

साफ-सफाई वाले महकमे में कर निर्धारण करने वाले साहब बहुत पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं। अपने मन के मालिक हैं। जब मन करता है, आते हैं, जब मन करता, नहीं आते हैं। पश्चिम में थे, तो सब इनसे इतना परेशान रहते थे, कि पूछो मत। सरकारी नौकरी है तो कोई ले नहीं सकता, वरना प्राइवेट में रहते तो कब का सड़क पर आ चुके होते। खैर, छह महीने पहले साहब ने बैग उठाया और गायब हो गए। बड़े साहब को सूचना मिली, तो उन्होंने लिखा-पढ़ी कर मामला राजधानी भेज दिया। एक दिन साहब अचानक प्रकट हुए। बड़े साहब से ज्वाइन कराने की जिद करने लगे। साथ में कई पन्ने का पत्र भी लेकर आए थे। सब कुछ अपने मनमुताबिक चाहते थे। बड़े साहब ने भी पूरी बात सुनी। फिर एक पत्र लिखवाया, कि साहब की बातों पर एतबार नहीं किया जा सकता और राजधानी का रास्ता दिखाकर उन्हें रुखसत कर दिया।

मुझे नहीं लडऩा, आप लोग जानो

बाऊ जी जो बोलते हैं, मुंह पर और खरी-खरी। दरबार में आने वालों की समस्या तो सुनते हैं, लेकिन यदि कोई अपने मनमुताबिक काम कराना चाहता है, तो तत्काल उसे मना भी कर देते हैं। कुछ छोटे माननीयों के इलाके में काम नहीं हो रहा है। अपना दर्द साझा करने सभी बाऊ जी के पास पहुंच गए। एक ने कहा, 'बाऊ जी, आप तो चुनाव लड़कर आए हैं, कितनी दिक्कत होती है, आपको खूब पता है, जनता का काम नहीं हो रहा है, ऐसे ही रहा, तो अगली बार आपको भी मुश्किल हो जाएगी। बाऊ जी ने पूरे ध्यान से छोटे वाले माननीय की बात सुनी और काम कराने का आश्वासन दिया। इसके बाद उन्होंने अपने मन की बात कही, बोले, 'अब मुझे चुनाव नहीं लडऩा है, सिर्फ जनता की दिक्कतों को दूर कराने के लिए जुटे रहते है, लेकिन आप लोग अपनी सोच लो, फिर चुनाव जो लडऩा है।

तगड़ा दबाव बनाया तब बनी बात

साहब पर विकास कार्यों की जिम्मेदारी है। जिन बड़े अफसरों तक सामान्य अफसरों की पहुंच आसानी से नहीं हो पाती है, वहां यह साहब धड़ल्ले से पहुंच जाते हैं। साहब कुछ भी कर लें, लेकिन पूछताछ नहीं होती। अपनी ठसक में रहते हैं। सुंदरियों को सामने बैठाकर काम की डींग हांकते रहते हैं। इतने गुरूर में रहते हैं कि नियम भी खुद तय कर लेते हैं। पिछले दिनों शासन ने एक आदेश किया, विभाग में ठेका लेने में पंजीकरण की अनिवार्यता को खत्म कर दिया। आदेश सभी के पास पहुंच गया, लेकिन साहब को तो अपनी वाली करने की आदत पड़ गई है। अपने काङ्क्षरदों को लाभ पहुंचाकर बैक डोर से खुद रुपये बटोरने के लिए साहब ने शासन के आदेश को किनारे कर अपने मन से काम शुरू करा दिया। सफाई महकमे के माननीय को पता चला, तो उन्होंने इतना तगड़ा दबाव बनाया कि साहब बैकफुट पर आ गए।

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