कौमी एकता और सद्भाव का संगम है गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर Gorakhpur News

ऐसे कम से कम चार दर्जन रमजान नदीम और आबिद हैं जो हर वर्ष खिचड़ी के मेले में दुकान सजाते हैं। केवल दुकानदारी के लिहाज से ही नहीं बल्कि मंदिर से उनका आत्मिक लगाव है।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Thu, 16 Jan 2020 08:50 PM (IST) Updated:Fri, 17 Jan 2020 12:56 PM (IST)
कौमी एकता और सद्भाव का संगम है गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर Gorakhpur News
कौमी एकता और सद्भाव का संगम है गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। 85 वर्ष के रमजान गोरखनाथ मंदिर के खिचड़ी मेले मेें बीते पांच दशक से निशानेबाजी की दुकान लगा रहे हैं। क्राकरी की दुकान सजाने वाले आबिद अली सद्दू का अनुभव भी तीन दशक पुराना हो गया है। नदीम का तो पूरा कुनबा ही मेले का हिस्सा होता है। ऐसे कम से कम चार दर्जन रमजान, नदीम और आबिद हैं, जो हर वर्ष खिचड़ी के मेले में दुकान सजाते हैं। केवल दुकानदारी के लिहाज से ही नहीं बल्कि मंदिर से उनका आत्मिक लगाव है। यह लोग केवल दुकानदारी ही नहीं कर रहे बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव का गहरा संदेश भी दे रहे हैं।

इसलिए मंदिर का मोह नहीं छोड़ पाए

खिचड़ी मेले से जुडऩे की रमजान भाई की कहानी दिलचस्प है। बताते हैं, 1970 से पहले वह फैजाबाद मेले का हिस्सा होते थे। मंदिर में लगने वाले खिचड़ी मेले की जानकारी हुई तो उन्होंने यहां का रुख कर लिया। बातचीत में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का नाम लेकर रमजान भावुक हो गए। बोले, बड़े महराज का इतना प्यार मिला कि उसके बाद वह मंदिर का मोह कभी छोड़ नहीं सके। रमजान के मंदिर प्रेम का अहसास उनके इस दावे से भी होता है कि यहां की मनौती से ही वह आज तीन पोतों के दादा हैं।

लखनऊ से आए हैं सद्दू

सद्दू लखनऊ के डालीगंज मेले से 30 साल पहले यहां क्रॉकरी की दुकान लेकर आए थे, तबसे सिलसिला जारी है। बताते हैं कि उनके चलते करीब आधा दर्जन मुस्लिम दुकानदार हर साल मेले का हिस्सा होते हैं। चप्पल की दुकान लगाने वाले नदीम बताते हैं, उनके चाचा मरहूम ने मेले में 40 साल पहले दुकान लगानी शुरू की थी, उस सिलसिले को पूरा कुनबा शिद्दत से आगे बढ़ा रहा है।

2007 के कर्फ्यू में बड़े महराज से मिली थी सुरक्षा की गारंटी

रमजान और सद्दू ने बताया कि 2007 में गोरखपुर में कफ्र्यू लगा तो एक बारगी उन्हें भय का अहसास हुआ था, लेकिन वह भय तब जाता रहा, जब बड़े महराज ने उन्हें सुरक्षा की गारंटी के साथ मेले में दुकान लगाने का निर्देश दिया। अब तो मेला परिसर उन्हें घर सा सुरक्षित लगता है।

कसमसा कर रह जाते हैं बीमार शौकत और शफीक

मेला प्रबंधक शिवशंकर उपाध्याय बताते हैं कि लखनऊ के हाजी शौकत और शफीक ऐसे दुकानदार हैं, जो दशकों से मेले में दुकान लगाते रहे हैं। आजकल वह बीमार हैं। वह आ नहीं पाते लेकिन फोन करके अपनी कसमसाहट जाहिर जरूर करते हैं। उनके बेटे परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

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