गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती घोटाला, विश्वविद्यालय ने सूचना देने से किया इनकार Gorakhpur News

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने शिक्षक भर्ती का ब्योरा सार्वजनिक करने से इन्कार कर दिया है। विश्वविद्यालय में प्रोफसरों की नियुक्‍ति पर भाजपा विधायक ने भी सवाल उठाया है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 21 Aug 2019 11:10 AM (IST) Updated:Wed, 21 Aug 2019 02:47 PM (IST)
गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती घोटाला, विश्वविद्यालय ने सूचना देने से किया इनकार Gorakhpur News
गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती घोटाला, विश्वविद्यालय ने सूचना देने से किया इनकार Gorakhpur News

गोरखपुर, क्षितिज पांडेय। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने शिक्षक भर्ती का ब्योरा सार्वजनिक करने से इन्कार कर दिया है। विश्वविद्यालय न तो चयन का मापदंड ही बताएगा न ही सफल अभ्यर्थियों का एकेडमिक रिकॉर्ड। किस अभ्यर्थी को इंटरव्यू में कितने अंक मिले, यह जानकारी भी नहीं मिलेगी, यही नहीं अभ्यर्थी अगर खुद को मिले नंबर भी जानना चाहे तो भी उसे जानकारी नहीं दी जाएगी। सूचना का अधिकार (आरटीआइ) के तहत इस बाबत प्राप्त तमाम अभ्यर्थियों की अर्जियों को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया है कि कुलपति जी के निर्देशानुसार मूल्यांकन आख्या से जुड़ी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत नहीं दी जा सकती। पिछले एक साल में दर्जनों आवेदकों को यही दो टूक जवाब दिया जा रहा है।

विश्वविद्यालय  ने कहा- 'सूचना नहीं दी जा सकती'

शिक्षाशास्त्र विषय के अभ्यर्थी रहे जितेंद्र गोयल हों, ललित कला एवं संगीत के अभ्यर्थी भगवती मिश्र और परशुराम यादव हों, या फिर भौतिकी के अवनीश मिश्र, संस्कृत के सुबोध पांडेय, भूगोल के प्रमोद कुमार नायक, केमिस्ट्री के डॉ.आभाष अस्थाना और मनोज श्रीवास्तव जैसे अभ्यर्थी, किसी ने चयनित अभ्यर्थियों का शैक्षिक रिकॉर्ड जानना चाहा था, तो कोई फाइनल मेरिट लिस्ट और साक्षात्कार में मिले अंकों के बारे में जानने को इ'छुक था। इन सभी आवेदकों को 'सूचना नहीं दी जा सकती' कहते हुए जानकारी से वंचित कर दिया गया। सबसे ज्यादा आश्चर्य उन अभ्यर्थियों को है, जिन्होंने साक्षात्कार में स्वयं को मिले अंक जानने के लिए आरटीआइ के तहत आवेदन दिया था, लेकिन कुलपति के निर्देश का हवाला देते हुए उन्हें भी जानकारी नहीं दी गयी। तमाम आइटीआइ आवेदक अब अपीलीय सूचना अधिकारी के पास आवेदन कर रहे हैं। अभ्यर्थी भगवती मिश्र ने इस व्यवस्था को मनमानी बताते हुए कहा कि हर अभ्यर्थी को अधिकार है कि वह अपना रिजल्ट जान सके। एक ओर जबकि यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएं चयन प्रक्रिया के उपरांत विस्तृत रिजल्ट जारी कर देती हैं वहीं गोरखपुर विश्वविद्यालय इसे गोपनीय मानता है। यह शुचिता और पारदर्शितापूर्ण व्यवस्था नहीं है। आरटीआइ कानून में भी केवल जनहित पर बुरा असर डालने वाले विषयों की जानकारी देने पर प्रतिबंध है, किसी चयन प्रक्रिया की मेरिट कैसे जनहित पर बुरा असर डाल सकती है।

नंबर न बताने पर यूं ही नहीं उठ रहे सवाल

चयन प्रक्रिया में मिले अंकों को लेकर अभ्यर्थियों में जिज्ञासा यूं ही नहीं है। यूजीसी नियमावली के अनुसार हर क्षेत्र के लिए पहले से ही नंबर तय हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर का उदाहरण लें तो यहां साक्षात्कार केवल 20 अंक का होता है, जबकि अकादमिक रिकॉर्ड और शोध प्रदर्शन पर 50 अंक तथा विषय की जानकारी और शिक्षण कौशल के आकलन पर 30 अंक निर्धारित हैं। इस लिहाज से चयन में साक्षात्कार का हिस्सा बेहद कम होता है। जबकि कई ऐसे अभ्यर्थी चयनित कर लिए गए हैं जिनके पास न तो कहीं शिक्षण का अनुभव है, न ही रिसर्च पेपर प्रकाशित हैं और न ही पीएचडी की उपाधि। जबकि असफल करार दिए गए कई अभ्यर्थी इस पैमाने पर चयनित अभ्यर्थियों से कहीं बेहतर हैं। भ्रष्टाचार की आशंका इसलिए उठ रही है कि 80 अंक के पैरामीटर पर काफी पिछड़े होने के बावजूद महज 20 अंक वाले साक्षात्कार के आधार पर चयन कैसे कर लिया गया।

शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर हैं  भ्रष्टाचार के आरोप

विश्वविद्यालय में 2018 और 2019 के दो चरणों में शिक्षक संवर्ग के 160 से अधिक पदों पर नियुक्तियां हुई हैं। नियुक्तियों में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, नियमों की अनदेखी जैसे कई गम्भीर आरोप लगे हैं। बड़ी संख्या में शिक्षकों के पाल्यों, रिश्तेदारों की नियुक्तियां भी हुई हैं। दो दिन पहले विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य और अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.राम अचल सिंह ने भी ऐसे ही आरोप लगाते हुए कुलाधिपति, मुख्यमंत्री, उ'च शिक्षा मंत्री, स्थानीय विधायक आदि को पत्र लिखा है और कई गम्भीर आरोप लगाते हुए पूरी चयन प्रक्रिया की जांच कराने की जरूरत बताई है। वरिष्ठ सदस्य के इन आरोपों को लेकर शैक्षिक हलकों में खासी गर्मी है।

विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया अन्य जगहों की अपेक्षा भिन्न है। यहां लिखित परीक्षा नहीं होती कि अंक सार्वजनिक किए जाएं, शोध की गुणवत्ता, विषय की जानकारी, पढ़ाने का ढंग, सहित बहुत से पैरामीटर होते हैं। यहां तक कि रिसर्च पेपर कहां पब्लिश है, यह भी देखा जाता है। चयन समिति के सभी सदस्य हर मापदंड पर अपने नजरिये से परखते हैं। यह सब कुछ अंकों में नहीं बताया जा सकता। विश्वविद्यालय में पूर्व में भी नियुक्तियां हुईं, कभी नहीं जारी किये गए नंबर। चयन प्रक्रिया पर सवाल उठना निरर्थक है। सब कुछ शुचितापूर्ण और पारदर्शी है। - प्रो.विजय कृष्ण सिंह, कुलपति, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय

आप अभ्यर्थी को उसके अंक न बताने की बात कह रहे हैं, यहां तो मैं कार्यपरिषद का सदस्य हूं और जिसकी नियुक्ति की स्वीकृति दे रहा हूं, उसका बायोडाटा तक देखने को नहीं पाता। कुलपति कहते हैं नियम नहीं है, मेरा कहना है कि कहां लिखा है नहीं दिखा सकते, यही बता दीजिये। अगर आपमें शुचिता है, प्रक्रिया ईमानदारी से पूरी की है तो क्या दिक्कत है अभ्यर्थी को उसके अंक बताने में। इसे तो वेबसाइट पर डाल देना चाहिए, इसमें गोपनीयता कैसी?  - प्रो राम अचल सिंह, सदस्य, कार्यपरिषद, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय

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