शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता, सतत चलता है शिक्षण

शिक्षक दिवस पर एक ऐसे शिक्षक की कहानी सामने आई है जिन्होंने कुशीनगर के गुरवलिया क्षेत्र को शैक्षिक केंद्र के रूप में विकसित किया जिले के पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा की क्रांति के लिए जाने जाते हैं उन्होंने अपने प्रयास से प्राथमिक से लेकर उच शिक्षा तक के संस्थान स्थापित किए।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Sep 2021 04:00 AM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 04:00 AM (IST)
शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता, सतत चलता है शिक्षण
शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता, सतत चलता है शिक्षण

कुशीनगर : शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। वह हमेशा समाज को कुछ देता ही रहता है। दुदही विकास खंड के गुरवलिया बाजार स्थित श्री अन्नपूर्णा इंटरमीडिएट कालेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डा. शक्ति प्रकाश पाठक ऐसा ही एक नाम हैं।

डा. पाठक को प्रदेश सरकार द्वारा 2016 में पांच सितंबर को शिक्षक दिवस पर राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कार्यकाल बढ़ा तो वह गत 31 जुलाई 2021 को 65 वर्ष की आयु में पद से सेवानिवृत्त हुए। अब भी प्रतिदिन सुबह 10 बजे कालेज पहुंच जाते हैं। विद्यालय में 800 छात्राओं सहित 1400 छात्र अध्ययनरत हैं। प्रतिदिन तीन कक्षाएं लेते हैं और दोपहर दो बजे घर लौटते हैं।

डा. पाठक पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा की क्रांति के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1970 में हाईस्कूल व 1972 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। बिहार प्रांत के मुजफ्फरपुर से जुलोजी आनर्स विषय से 1976 में विज्ञान स्नातक किए। 1978 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र विषय में परास्नातक करने के बाद वर्ष 1982 में श्री अन्नपूर्णा इंटर मीडिएट कालेज में बतौर प्रवक्ता अध्यापन कार्य शुरू किए। 2003 में कार्यवाहक प्रधानाचार्य बने। इसी वर्ष उन्होंने मिथिला विश्वविद्यालय से डाक्ट्रेट की उपाधि हासिल की। 2012 में माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड से विद्यालय के प्रधानाचार्य नियुक्त किए गए। डा. पाठक बताते हैं कि जब वह प्रधानाचार्य का पदभार ग्रहण किए उस समय विद्यालय में 400 विद्यार्थी थे। शिक्षा का स्तर उठा तो छात्र संख्या 2000 तक हो गई। इंटर कालेज के बगल में उन्होंने प्राथमिक, स्नातक, परास्नातक, बीएड, बीटीसी व कंप्यूटर शिक्षण की व्यवस्था की। इन संस्थानों को सरकार से मान्यता भी मिल गई। अब यहां पांच हजार विद्यार्थी अपना भविष्य संवार रहे हैं।

बताया कि सेवानिवृत्त होने के बावजूद उनके भीतर शिक्षा के प्रति लगन कम नहीं हुई। कहते हैं जब तक शरीर का साथ मिलेगा शिक्षण कार्य करते रहेंगे। डा. पाठक के दो पुत्र व तीन पुत्रियां हैं, जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

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