जानें-पहली सरस्वती शिशु मंदिर की स्‍थापना कहां हुई थी

Special report on the birth anniversary of Nanaji Deshmukh नानाजी के निकट सहयोगी जगदीश प्रसाद गुप्त बताते हैं कि लखनऊ के प्रचारक भाऊराव देवरस और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भी सहयोग से नानाजी देशमुख ने 1952 में उन्होंने स्कूल की नींव रख दी।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Sun, 11 Oct 2020 09:30 AM (IST) Updated:Sun, 11 Oct 2020 09:30 AM (IST)
जानें-पहली सरस्वती शिशु मंदिर की स्‍थापना कहां हुई थी
गोरखपुर का सरस्वती शिशु मंदिर, जिसकी स्‍थापना नानाजी देशमुख ने की। - फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। भारतरत्न नानाजी देशमुख की राष्ट्र प्रेम चर्चा गोरखपुर में किए उनके कार्यों के जिक्र के बिना अधूरी है। वह इसलिए कि उन्होंने गोरखपुर में संस्कारों को सुरक्षित रखने के लिए जो कार्य किए, वह पूरे देश के काम आए। जी हां, हमारा इशारा देश भर में संचालित सरस्वती शिशु मंदिर की ओर है, जिसकी नींव नानाजी देशमुख ने गोरखपुर में ही रखी थी। नानाजी का जन्‍म 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था और 27 फरवरी 2010 को उनका निधन हो गया।

हम बात कर रहे हैं, उस दौर की जब देश आजाद तो हो चुका था, पर नई पीढ़ी की मैकाले की शिक्षा प्रणाली पर निर्भरता बनी हुई थी। नानाजी देशमुख को यह बात अखरती थी। वह उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर गोरखपुर के लोगों को अंग्रेजी प्रभाव से मुक्त करके भारतीयता से जोडऩे में लगे हुए थे। उसी दौरान शिक्षा को मैकाले से मुक्त कराने और नई पीढ़ी को संस्कारयुक्त भारतीय शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए उनके मन में सरस्वती शिशु मंदिर खोलने का विचार आया।

नानाजी के निकट सहयोगी जगदीश प्रसाद गुप्त बताते हैं कि इसमें उन्हें लखनऊ के प्रचारक भाऊराव देवरस और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भी सहयोग मिला और 1952 में उन्होंने स्कूल की नींव रख दी। जगदीश गुप्त के मुताबिक पहले कुछ दिनों तक यह स्कूल मानसरोवर रामलीला मंदिर के पास मक्खन बाबू के बागीचे में चला लेकिन बाद में उन्हें वर्तमान पक्कीबाग में बाबू गिरधरदास की जमीन किराए पर मिल गई। उसका किराया उन दिनों पांच रुपये था। पहले उस जमीन पर स्लाटर हाउस चलता था, जिसे साफ कर नानाजी और तत्कालीन विभाग प्रचारक कृष्णचंद्र गांधी ने शाखा लगानी शुरू की और देखते ही देखते वहां स्कूल स्थापित हो गया।

इसी तर्ज पर जब प्रदेश भर में शिशु मंदिर खुलने लगे तो राज्य स्तरीय शिशु शिक्षा प्रबंध समिति का गठन किया गया। फिर तो उत्तर भारत के सभी प्रदेशों में ऐसी समितियों का गठन कर शिशु मंदिरों की स्थापना होने लगी। 1977 तक जब इन समितियों का अखिल भारतीय स्वरूप सामने आने लगा तो विद्या भारती की स्थापना की गई और सभी सभी समितियां उससे जुड़ गईं। आज देश भर विद्या भारती के बैनर तले 28 हजार से अधिक सरस्वती शिशु मंदिर संस्कारिक शिक्षा दे रहे हैं और करीब 50 लाख विद्यार्थी का लाभ उठा रहे हैं।

गोरखपुर में लगाई संघ की पहली शाखा

जगदीश प्रसाद गुप्त बताते हैं कि गोरखपुर में नानाजी के आने की वजह पूर्वी उत्तर प्रदेश में संघ का प्रचार-प्रसार करना था। इस क्रम में वह 1940 में गोरखपुर पहुंचे और गोरखपुर में शाखा लगाने का सिलसिला शुरू किया। ऐसे में गोरखपुर में संघ की पहली शाखा लगाने का श्रेय नानाजी को ही है।

गोरखपुर में हुई नानाजी व अटल जी की पहली मुलाकात

नानाजी ने हमारे अटल जी नाम की अपनी पुस्तक गोरखपुर में अटल जी के साथ बिताए दिनों को साझा भी किया है। उन्होंने लिखा है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वाजपेयी जी अपनी भाभी को पहुंचाने गोरखपुर आए थे। स्वयंसेवक होने की वजह से वो संघ शाखा में भी पहुंचे। शाखा में ही वाजपेयी जी से उनका पहला परिचय हुआ।

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