तो छह माह में नहाने लायक हो जाएगा आमी का पानी, पुनर्जीवन एक्शन प्लान तैयार Gorakhpur News
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी इस कार्ययोजना में आमी नदी में औद्योगिक अपशिष्ट घरेलू सीवेज जैविक प्रवाह और सॉलिड वेस्ट के प्रबंधन बाबत लघु एवं दीर्घ अवधि की योजना बनाई गई है।
गोरखपुर, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में 12 नदियों के प्रदूषित हिस्सों की पहचान करके उन्हें मूल स्वरूप में लौटाने की कार्ययोजना तैयार हो गई है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश का पालन करते हुए प्रदेश सरकार ने सूबे की 12 प्रमुख नदियों के पुनर्जीवन का खाका तैयार कराया है। मतलब उक्त सभी नदियों को साफ तो कराया ही जाएगा। उसका पानी भी पीने योग्य भी होगा।
एक्शन प्लान में आमी और तमसा नदी भी
प्रदेश के 12 प्रमुख नदियों में आमी और तमसा नदी को भी जोड़ दिया गया है। इस एक्शन प्लान के मुताबिक कार्ययोजना लागू करने की तारीख के छह महीनों के भीतर आमी नदी के पानी को कम से कम नहाने लायक बना लिया जाना है। कार्ययोजना में सीवेज निकासी और छोटी औद्योगिक इकाइयों के जरिये हो रहे नदी प्रदूषण पर सबसे अधिक चिंता जताई गई है।
लघु एवं दीर्घ अवधि की योजना बनी
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी इस कार्ययोजना में आमी नदी में औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू सीवेज, जैविक प्रवाह और सॉलिड वेस्ट के प्रबंधन बाबत लघु एवं दीर्घ अवधि की योजना बनाई गई है। काम करने के लिए एजेंसियों की जिम्मेदारी तय करने के साथ ही पूरा करने की मियाद भी तय कर दी गई है। इस योजना के लिए धन नमामि गंगे परियोजना अंतर्गत मिलेगा।
सीवेज की है सबसे ज्यादा चिंता
घरेलू सीवेज और औद्योगिक प्रवाह की मार झेल रही आमी नदी में प्रदूषण नियंत्रण का अब तक कोई ठोस उपाय नहीं किया जा सका है। एक तरफ औद्योगिक कचरे को उपचारित तो किया जाता है, लेकिन सीवेज की निकासी सीधे नदी में ही की जा रही है। सीवेज को नदी में पहुंचने से पहले रोकने और उपचारित करने के एक भी सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) अभी मौजूद नहीं है। इन बातों पर गौर करते हुए कार्ययोजना में छोटी अवधि एवं दीर्घ अवधि वाले उपाय सुझाए गए हैं। हालांकि इस पर अमल कब से होना है, यह अभी तय नहीं है।
हर दिन आमी में मिलता है 02 करोड़ 76 लाख लीटर अपशिष्ट
102 किलोमीटर लंबी नदी में 80 किलोमीटर का हिस्सा प्रदूषित है। जिसके बायीं ओर 17 गांव और दायीं ओर 20 गांव बसे हैं। यही आबादी वाला हिस्सा नदी का सबसे प्रदूषित हिस्सा है। 2019 में यहां की अनुमानित आबादी 48725 है। अकेले यह आबादी 53 लाख लीटर प्रतिदिन सीवेज आमी में प्रवाहित करती है। वहीं कुल 12 औद्योगिक इकाइयां आमी नदी में प्रदूषण फैलाती हैं। आमी नदी में तीन जिलों के कुल छह नाले जुड़ते हैं। इन सभी नालों से कुल 02 करोड़ 76 लाख लीटर घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट की निकासी होती है।
अकेले सरैया नाले से गिरता है 12 एमएलडी सीवेज
इनमें अकेले गोरखपुर के सरैया नाले से 12 एमएलडी सीवेज गिरता है। कार्ययोजना तैयार होने से पहले नदी में प्रदूषण की वस्तुस्थिति का गहन अध्ययन किया गया। इसके मुताबिक आमी में हर दिन करीब 27.6 मिलियन लीटर अपशिष्ट मिलता है। इसमें 02 करोड़ 40 लाख लीटर सीवेज होता है जबकि 3.6 एमएलडी औद्योगिक अपशिष्ट। इसमें संतकबीर नगर से 0.6 एमएलडी और गोरखपुर के सरैया नाले से 3 एमएलडी औद्योगिक कचरा शामिल है। जबकि संतकबीर नगर के सराही नाले से 7 और मगहर के दो नालों से 5 एमएलडी घरेलू सीवेज प्रवाहित होता है। सबसे ज्यादा सीवेज गोरखपुर के सरैया नाले से मिलता है।
कहीं भी नहीं है सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
बस्ती के नाले की भूमिका नगण्य है। इतना अपशिष्ट नदी बहाव के रुधौली, बस्ती से गोरखपुर के सोहगौरा तक के करीब 80 किलोमीटर क्षेत्र में कुल छह नालों से आता हैै। रिपोर्ट बताती है कि पूरे मार्ग में कहीं भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाया गया है।
ऐसे मिलेगा आमी को पुनर्जीवन
दीर्घ अवधि में सीवेज ट्रीटमेंट के लिए प्लांट लगाए जाने की बात है। यह जिम्मेदारी जल निगम की होगी, जिसके लिए डीपीआर मंजूर होने के बाद 24 माह का समय दिया गया है। यही नहीं, सभी घरों को सीवर लाइन और एसटीपी से जोडऩे की भी कवायद होगी। एसटीपी को सोलर पॉवर प्लांट, शुद्ध किए गए जल के विक्रय, बायो कंपोजीशन जैसे आय के नए स्रोत पैदा करने में भी उपयोगी बनाया जाएगा। इससे पहले दो माह में यूपी जल निगम और स्थानीय निकायों को नगरों-कस्बों से पैदा हो रहे सीवेज का आकलन और उनके निस्तारण के लिए डीपीआर तैयार करना है, जबकि तीन माह के भीतर आमी में मिल रहे प्रदूषित नालों में जालियां लगाना है। जहां सीवेज नेटवर्क नहीं है, वहां के लिए अलग से प्रबंधन करना है। इसके लिए छह माह की मियाद तय की गई है। गांवों, कस्बों से निकल रहे सीवेज का चैनलाइजेशन अगले तीन माह में कर लेना होगा। एक अहम बिंदु आमी के समीप स्थित सभी गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने का भी है।
औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन
इस बिंदु पर कार्ययोजना में विशेष ध्यान है। पेपर, पल्प और डिस्टिलरी जैसी सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाली औद्योगिक इकाइयों को 24 महीने के भीतर जल शोधन तकनीकी को अपनाना होगा। पुनप्र्रयोग, री- साइकिल आदि विधियों के माध्यम से शुगर इंडस्ट्री को अगले 12 महीनों में भूमिगत जल के दोहन को कम करना है। एक्शन प्लान में सबसे अहम बात औद्योगिक इकाइयों के अपशिष्ट निकासी की सतत निगरानी की है। इसके लिए फ्लो मीटर, कैमरे आदि लगाए जाने की बात है। इसकी कनेक्टीविटी केंद्रीय एवं उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से होगी। गड़बड़ी करने वाली इकाइयों को बंद करने और उनके खिलाफ विधिक कार्यवाई करने का भी निर्णय है। इसे जिला स्तरीय अंतरविभागीय प्रवर्तन कमेटियां देखेंगी।
सॉलिड वेस्ट प्रबंधन
कार्ययोजना में कूड़ा प्रबंधन से जुड़े तमाम आदेशों को दोहराते हुए तत्काल प्रभाव से लागू करने को कहा गया है। इसके तहत नदी के बहाव क्षेत्र के 500 मीटर के किनारे पर कहीं भी ठोस अथवा अन्य अपशिष्ट डंप नहीं होने देना है। यह काम तत्काल प्रभाव से शुरू कर देना है। स्थानीय निकायों को कूड़ा-कचरा, निर्माण व ध्वस्तीकरण, मलबा आदि के निस्तारण और इन्हें आय का जरिया बनाने के लिए योजना बनानी होगी। इसकी जिम्मेदारी स्थानीय निकायों मसलन, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत, विकास प्राधिकरण आदि की है। यही नहीं री-साइकिल होने वाले अपशिष्ट का निस्तारण भी इन्हीं निकायों को करना होगा। प्लास्टर ऑफ पेरिस और मेटल आधारित पेंट वाली प्रतिमाओं का निर्माण नहीं होने दिया जाएगा। इनके अलावा डीपीआर मंजूरी के 24 महीनों में आबादी के हिसाब से कूड़ा प्रबंधन की नई व्यवस्था करनी होगी। विद्युत शवदाह गृह बनाए जाने की बात भी प्लान में है।
जैविक प्रवाह और भूजल प्रबंधन
नदी के डूब क्षेत्र का सीमांकन कर अगले 24 माह में अतिक्रमण मुक्त कराया जाना है। अगले तीन माह में नदी की जैविक विशेषताओं की पहचान करना है। जबकि 24 महीनों में नदी की जैविक जरूरत के अनुसार बायो डाइवर्सिटी पार्क भी बनाया जाएगा। अवैध खनन पर प्रतिबंध, वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिए जाने के साथ-साथ सिंचाई की उन्नत तकनीकी को अपनाने पर भी जोर है। नदी के पर्यावरणीय प्रवाह की अधिसूचना जारी की जाएगी।
भेजी गई कार्य योजना
इस संबंध में गोरखपुर के जिलाधिकारी के. विजयेंद्र पांडियन का कहना है कि आमी नदी के पुनर्जीवन के लिए कार्ययोजना तैयार कर भेज दी गई है। इसमें सीवेज मैनेजमेंट के लिए सीईटीपी लगाए जाने की बात अहम है। इस दिशा में हम काम भी कर रहे हैं। पिछले दिनों प्रदूषण के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण भी किया गया है। नदी में प्रदूषण न हो, यह समवेत प्रयास से ही हो सकेगा। जबकि संतकबीर नगर जिलाधिकारी रवीश गुप्त का कहना है कि आमी नदी के पुनर्जीवन के लिए सभी प्रयासरत हैं। इसके लिए कार्ययोजना तैयार है। फिलहाल इस पर अमल शुरू नहीं हो सका है। जरूरत के अनुसार मनरेगा अंतर्गत भी काम होगा।
जरूरी है सीईटीपी
गीडा के सीईओ संजीव रंजन का कहना है कि सीईटीपी जरूरी है, जल्द ही स्थापित होगा। हमारा प्रयास है कि हमें नमामि गंगे योजनान्तर्गत वित्तीय आवंटन हो जाए।, हालांकि प्रदेश सरकार ने 20 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए हैं, जमीन भी तय हो गई है। जल्द ही कार्ययोजना के अनुरूप काम शुरू हो जाएगा।