रोजाना 27 लाख लीटर पानी खर्च, फिर भी सूखी हैं टोटियां Gorakhpur News

पूरब से पश्चिमी छोर तक सिर्फ एक ही नल से पानी आ रहा था। शेष सभी सूखे थे। अधिकतर पानी के नल पर लगे पत्थर टूट चुके थे। प्लेटफार्म नंबर पांच और छह की भी स्थिति ठीक नहीं थी।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Sat, 29 Feb 2020 01:42 PM (IST) Updated:Sat, 29 Feb 2020 01:42 PM (IST)
रोजाना 27 लाख लीटर पानी खर्च, फिर भी सूखी हैं टोटियां Gorakhpur News
रोजाना 27 लाख लीटर पानी खर्च, फिर भी सूखी हैं टोटियां Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधाओं की हवा निकल रही है। गर्मी की आहट मिल चुकी है, लेकिन अभी तक स्टेशन पर यात्रियों के लिए पानी की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई है। स्थिति यह है कि प्लेटफार्म नंबर दो से नौ तक 15 वाटर हाइड्रेंट (पानी का नल) सूखे पड़े हैं। 12 वाटर प्वाइंट में से अधिकतर खराब पड़े हैं। अभी तक एक भी वाटर कूलर दुरुस्त नहीं हुआ है। यह तब है जब नालियों में पानी बह रहा है। जिन टोटियों में पानी आ रहा है वह भी टपक रही हैं।

वाटर कूलर शो पीस बने

दोपहर बाद डेढ़ बजे के आसपास दैनिक जागरण की टीम ने प्लेटफार्मों पर यात्री सुविधाओं की पड़ताल की तो रेलवे प्रशासन के दावों की पोल खुल गई। वीआइपी प्लेटफार्म नंबर दो पर दो वाटर कूलर शो पीस बने हुए हैं। रेल लाइन पर पाइप से पानी नाली में गिर रहा था। कई जगह पाइप से पानी का रिसाव हो रहा था। प्लेटफार्म नंबर तीन और चार पर तो स्थिति बेहद खराब थी।

सिर्फ एक ही नल से मिल रहा पानी

पूरब से पश्चिमी छोर तक सिर्फ एक ही नल से पानी आ रहा था। शेष सभी सूखे थे। अधिकतर पानी के नल पर लगे पत्थर टूट चुके थे। प्लेटफार्म नंबर पांच और छह की भी स्थिति ठीक नहीं थी। दो नलों से पानी टपक रहा था। प्लेटफार्म नंबर सात और आठ पर दो वाटर प्वाइंट पर सन्नाटा पसरा था। दरवाजे पर मशीन खराब है का नोटिस बोर्ड चस्पा था। महत्वपूर्ण प्लेटफार्म नंबर नौ पर भी पानी की व्यवस्था नहीं थी।

यात्रियों को खरीदना पड़ रहा पानी

रेलवे के आंकड़ों के अनुसार गोरखपुर जंक्शन सहित मैकेनाइज्ड लाउंड्री और दोनों वाशिंग पिट में रोजाना औसत लगभग 27 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है। इसके बाद भी यात्रियों को पीने के पानी के लिए 15 से 20 रुपये खर्च कर करने पड़ रहे हैं। यात्रियों को सस्ते दर पर पानी उपलब्ध कराने के लिए स्थापित वाटर प्वाइंट हाथी दांत बने हुए हैं।

पानी में भी खेल

जानकारों के अनुसार संबंधित रेलकर्मी जानबूझकर वाटर हाइड्रेंट में पानी की सप्लाई नहीं देते हैं। अब तो वाटर प्वाइंट भी खराब चल रहे हैं। ऐसे में यात्रियों को मजबूरन स्टालों से पानी खरीदना पड़ता है। रेलकर्मियों और स्टाल संचालकों की मिली भगत से चलने वाला यह खेल शुरू हो गया है। मई से जुलाई तक अवैध वेंडरों की सक्रियता भी बढ़ जाती है, जो रेल लाइनों पर गिरे बोतलों में टोटियों का पानी भरकर 20 रुपये में बेच देते हैं। 

chat bot
आपका साथी