पांच हजार पांडुलिपियां सहेज रहा नागार्जुन बौद्ध प्रतिष्ठान Gorakhpur News

नागरी प्रोटो नागरी बांग्ला प्रोटो बंगाली मैथिली अवधि आदि लिपियों में 200 से 1200 वर्ष तक पुरानी पांडुलिपियां संरक्षित हैं। इनमें आचार्य असंग की श्रावक भमि और कम्बलपाद की हेरुक साधन पंजिका पांडुलिपि के रूप में मौजूद है।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Wed, 04 Nov 2020 04:42 PM (IST) Updated:Wed, 04 Nov 2020 04:42 PM (IST)
पांच हजार पांडुलिपियां सहेज रहा नागार्जुन बौद्ध प्रतिष्ठान Gorakhpur News
पांडुलिपि के बारे में जानकारी देते प्रो. करुणेश शुक्‍ल।

डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। पांडुलिपियों के विषय में जिज्ञासा हो तो उसे शांत करने के लिए देश-विदेश में भटकने की जरूरत नहीं। यह गोरखपुर में ही शांत हो सकती है। शहर के अंधियारी बाग में मौजूद 42 वर्ष पुराने नागार्जुन बौद्ध प्रतिष्ठान में पांच हजार से अधिक पांडुलिपियां सहेजी जा रही हैं। नागरी, प्रोटो नागरी, बांग्ला, प्रोटो बंगाली, मैथिली, अवधि आदि लिपियों में 200 से 1200 वर्ष तक पुरानी पांडुलिपियां संरक्षित हैं। इनमें आचार्य असंग की 'श्रावक भमि और कम्बलपाद की 'हेरुक साधन पंजिका पांडुलिपि के रूप में मौजूद है। ये दोनों पांडुलिपियां सातवीं-आठवीं शताब्दी की हैं।

प्रतिष्ठान के संस्थापक और गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. करुणेश शुक्ल बताते हैं कि पांडुलिपियों के संग्रह और संरक्षण की शुरुआत संस्था की स्थापना के वर्ष यानी 1978 में हुई। इसके लिए उन्होंने मिथिला और जम्मू में रहने वाले ऐसे साथियों से संपर्क साधा, जो पांडुलिपि संग्रहण के कार्य से जुड़े हुए थे। मदद मिली तो पांच वर्ष में प्रतिष्ठान करीब पांच हजार पांडुलिपियों का संग्रहालय बन गया। आज इसमें रामायण, महाभारत, गीता, पुराण, वेद, आयुर्वेद, व्याकरण, तंत्र, ज्योतिष विज्ञान की ऐतिहासिक पांडुलिपियों का संरक्षण हो रहा है। इनको जुटाने और सहेजने के क्रम में ही संग्रहालय कब 16 हजार किताबों की लाइब्रेरी बन गई, पता ही नहीं चला।

दलाई लामा हैं प्रधान संरक्षक

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा प्रतिष्ठान के प्रधान संरक्षक है। प्रो. शुक्ल ने बताया कि प्रतिष्ठान की ओर से समय-समय पर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियां आयोजित की जाती रही हैं। ऐसी ही दो संगोष्ठियों में शिरकत के लिए दलाई लामा 1981 और 1998 में गोरखपुर आ चुके हैं।

संरक्षण का है पुख्ता इंतजाम

प्रतिष्ठान में पांडुलिपियों के संरक्षण का पुख्ता इंतजाम है। इसकी जिम्मेदारी संभाल रहे डॉ. रामचंद्र मिश्र ने बताया कि इसके लिए एक प्रयोगशाला बनाई गई है। इसमें नेप्थलीन और थाईमोल नाम के केमिकल से पांडुलिपि में पनप रहे अदृश्य और दृश्य कीटाणुओं को समाप्त किया जाता है। दो फ्यूमिगेशन गैस चेंबर हैं, जिनमें ज्यादा संक्रमित पांडुलिपियों को तब तक रखा जाता है, जब तक संक्रमण दूर न हो जाए। एक डी-ह्यूमिडिफायर मशीन भी है, जिससे पांडुलिपियों की नमी दूर की जाती है।

संरक्षण के लिए आगे आए सरकार: प्रो. करुणेश

पांडुलिपियों के संरक्षण में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन 2005 से ही प्रतिष्ठान की मदद कर रहा है। प्रो. शुक्ल का कहना है कि इसके लिए सरकार को भी आगे आना चाहिए। शोध हो, तभी इतने बड़े संग्रह की सार्थकता है। 82 वर्षीय प्रो. शुक्ल चाहते हैं कि उनके जीते जी इस संग्रह को सरकार या कोई प्रतिष्ठित संस्था अपनी देखरेख में ले ले।

क्या होती है पांडुलिपि

पांडुलिपि उस प्राचीन दस्तावेज को कहा जाता है, जो हस्तलिखित हो। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि जब विचार मीमांसा करते थे तो उनके भाष्य को भूमि पर खडिय़ा मिट्टी से लिपिबद्ध किया जाता था बाद में यह कार्य क्रमश: दीवारों, लकड़ी की पत्तियों और ताड़पत्रों पर होने लगा। जब कागज का दौर आया तो विचार कागजों पर उतरने लगे। छापाखाना के आविष्कार होने तक विचारों को दस्तावेजी रूप देने का यही प्रारूप पांडुलिपि कहलाया।

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