जागरण विमर्श: वैश्विक फलक पर फिर से बिखरेगी काला नमक की पुरानी सुगंध

Jagran discourse विकास के फलक पर बस्ती मंडल की अपेक्षाओं और संभावनाओं को लेकर आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में 15 नवंबर को जब कालानमक हमारा है विषय पर चर्चा हुई तो फिर से वैश्विक फलक पर उसकी पुरानी सुगंध बिखेरने के सुर तेजी से सुनाई दिए।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Publish:Mon, 15 Nov 2021 07:32 PM (IST) Updated:Mon, 15 Nov 2021 07:32 PM (IST)
जागरण विमर्श: वैश्विक फलक पर फिर से बिखरेगी काला नमक की पुरानी सुगंध
बस्‍ती में आयोजित जागरण विमर्श में आए श्रोतागण। जागरण

बस्‍ती, अजय कुमार शुक्ल। विकास के फलक पर बस्ती मंडल की अपेक्षाओं और संभावनाओं को लेकर आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में 15 नवंबर को जब कालानमक हमारा है विषय पर चर्चा हुई तो फिर से वैश्विक फलक पर उसकी पुरानी सुगंध बिखेरने के सुर तेजी से सुनाई दिए। यह बात छनकर आई कि सरकार, किसान और बाजार अब इसके लिए तैयार हैं। इस पर हुए नए शोधों ने भी उम्मीद की नई राह खोली है। सिंचाई के लिए ब्रिटिशकाल में बने सप्त सागर के पानी को फिर से सजोने की बात उठी। यह बात सामने आई कि वैश्विक मांग ने भी इसको बल दिया है। जरूरत है केवल ब्रांडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग की।

सिद्धार्थनगर जिले का ओडीओपी है कालानमक

विमर्श का संचालन कर रहे दैनिक जागरण देवरिया के ब्यूरो चीफ महेन्द्र त्रिपाठी ने जब उद्यान, कृषि विपणन व मंडी राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार श्रीराम चौहान से बासमती की तरह कालानमक को पहचान क्यो नहीं मिली, बाजार क्यों नहीं मिला का सवाल खड़ा किया तो उन्होंने कालानमक को लेकर सरकार की संजीदगी बताई और कहा कि कालानमक के उद्गम स्थल सिद्धार्थनगर में इसको ओडीओपी के तहत लिया गया है। मंशा साफ है इसको पुरानी वैश्विक पहचान देना।

ब्रिटिश काल में तेज थी काला नमक की चमक

बताया कि ब्रिटिशकाल में कालानमक की चमक बहुत अधिक थी। विदेशों तक इसका निर्यात होता था। उस समय इसकी खेती के लिए सप्त सागर बनाया गया, जिसमें नेपाल से आने वाले बारिश के पानी को एकत्रित किया जाता था। वह अब दम तोड़ चुका है। उसके बाद की सरकारों ने सिंचाई की बेहतर व्यवस्था नहीं की। उपेक्षा का रुख अपनाया, जिससे कालानमक वैश्विक बाजार से जिले तक सिमटकर रह गया। 10 से 12 हजार हेक्टेयर में बोया जाना वाला कालानमक 500 हेक्टेयर तक आ गया था। मंत्री चौधरी ने कहा कि भाजपा सरकार कालानमक को फिर से उसकी पुरानी पहचान के साथ पुरानी मांग खड़ा करने में लगी है। इसके लिए बाजार को तैयार किया जा रहा है तो इसकी खेती पर जोर देकर किसानों को जोड़ा जा रहा है। इसका परिणाम भी सामने है क्षेत्रफल तेजी से बढ़ रहा है, 2000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है।

ब्रांडिंग, पैकेजिंग व मार्केटिंग की है जरूरत

सिद्धार्थनगर के कालानमक धान के प्रगतिशील किसान और निर्यातक अभिषेक सिंह से काला नमक के पुरानी पहचान देने के लिए किस चीज की जरूरत है, का सवाल किया गया तो उन्होंने सीधा सा जवाब दिया, ब्रांडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग की जरूरत है। कहा कि मैं 20 एकड़ में कालानमक बोता हूं। चावल की मांग बैंकाक आदि देशों से आती है। निर्यात कर रहा हूं। किसान भी इसको लेकर जागरूक हुए हैं। कालानमक और आय का गणित समझाते हुए बताया कि इससे दोगुनी आय हो रही है। खेती करने वाले किसान को जलवायु के हिसाब से इस धान की प्रजाति का चयन करना होगा। इसके लिए बाजार के संकट के सवाल पर जवाब दिया कि इसके लिए सरकार के साथ किसानों को भी आगे आना होगा। अपनी उपज की गुणवत्ता बतानी होगी तो कीमत भी लेनी होगी। हमे खुद अपनी उपजी की ब्रांडिंग करनी होगी। कालानमक धान की खेती, फायदे की खेती बनकर खड़ी है, जरूरत बस नियोतिज ढ़ंग से खेत से लेकर बाजार तक जुड़ने की। किसानों को आगे आना होगा।

भगवान का प्रसाद है काला नमक

संचालक ने जब विमर्श में शामिल गोरखपुर के कृषि वैज्ञानिक रामचेत चौधरी से कालानमक की गुणवत्ता कम होने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि पहली बात तो यह कि कालानमक चावल को लेकर काफी भ्रांतियां हैं, उसको दूर करने की जरूरत है। काला नमक धान की खेती दोगुनी से तीन गुनी तक आय देने वाली है। कालानमक में बासमती से दोगुना प्रोटीन, तीन गुना आयरन, चार गुना जिंक है। कालानमक सुगर होने पर भी भरपेट खाया जा सकता है। काला नमक भगवान का प्रसाद है, इसे बुद्ध ने खाया था। विमर्श को थोड़ा विस्तार देते हुए उन्होंने बताया कि इस पर कई अनुसंधान हुए हैं। अभी अन्य कई संस्थाएं कार्य कर रही हैं।

अप्रूव्‍ड हैं चार प्रजातियां

चार प्रजातियां सरकार से अप्रूव्ड हैं। इसके साथ उन्होंने बजार को लेकर थोड़ी चिंता भी जताई और कहा कि जब तक किसान का माल नहीं बिकेगा, आय नहीं होगी, कालानमक की खेती का पूरी तरह से विकास नहीं होगा। किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ उनके उत्पाद को बाजार तक ले जाने का इंतजाम भी करना होगा। काला नमक की नई प्रजाति का उत्पादन प्रति एकड़ 18 से 20 क्विंटल हो रहा है। किसानों को भी अपडेट होकर विभिन्न सोशल साइट पर अपने उत्पाद की ब्राडिंग करनी होगी, तब आय का दायरा और बढ़ जाएगा क्योंकि कीमत अधिक मिलेगी।

सवाल: बस्ती के संजय दूबे ने पूछा कि कालानमक की खेती करना चाहता हूं, जलवायु अनुकूल नहीं है। क्या करूं।

जवाब: प्रगतशील किसान अभिषेक सिंह ने बताया कि कालानमक की खेती कहीं भी कर सकते हैं। इसके लिए आपको प्रजाति का चयन करना होगा। इसमें सुगंध को लेकर ही थोड़ा बहुत अंतर आ सकता है। कुछ प्रजातियों के नाम भी सुझाए।

सवाल: बहादुरपुर के अरविंद सिंह ने कालानमक की खेती के करने के बारे में पूछा।

जवाब: कृषि वैज्ञानिक रामचेत चौधरी ने बताया कि कालानमक की खेती आसानी से कर सकते हैं और भरपूर लाभ भी कमा सकते हैं। बस खेती नियोजित एंग से करनी होगी, मतलब जलवायु के हिसाब से प्रजाति का चयन, सिंचाई आदि का सही इंतजाम आदि।

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