विशिष्ट है पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत

पूर्वी उत्तर प्रदेश की संस्कृति विलक्षण है। खेती का आरंभ संभवत: इसी क्षेत्र से हुआ।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Mar 2018 11:16 AM (IST) Updated:Fri, 23 Mar 2018 11:16 AM (IST)
विशिष्ट है पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत
विशिष्ट है पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत

गोरखपुर : पूर्वी उत्तर प्रदेश की संस्कृति विलक्षण है। खेती का आरंभ संभवत: इसी क्षेत्र से हुआ। जिसकी प्राचीनता लगभग 9000 ईसा पूर्व तक पहुंचती है। यहां पर नवपाषाण काल से आज तक की संस्कृति का ज्ञातव्य प्राप्त होता है। यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जेएन पाल ने कहीं। प्रो. पाल दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग द्वारा आयोजित 'पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत' विषयक संगोष्ठी के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि अपने विचार रख रहे थे। संगोष्ठी के समापन सत्र में मेजबान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जयमल राय ने अपने उद्बोधन में पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत एवं कृषि प्रधानता की ओर ध्यान आकृष्ट किया, तो पूर्व अध्यक्ष प्रो. दयानाथ त्रिपाठी ने कहा कि विरासत का अर्थ हेरिटेज कभी नहीं हो सकता, क्योंकि विरासत हमें पूर्वजों से प्राप्त सांस्कृतिक उपहार है। सोहगौरा और लहुरदेवा इस क्षेत्र की पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व को प्रस्तुत करने में समर्थ है। उन्होंने विस्तारपूर्वक सोहगौरा एवं फाजिलनगर के उत्खनन पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। इससे पहले मेजबान विभागाध्यक्ष प्रो. राजवंत राव ने अतिथि का स्वागत करते हुए कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की संस्कृति किसी एक विचारधारा को अपनाने एवं मानने पर जोर नहीं देता, अपितु सभी धर्मो, संस्कृतियों एवं विचारधाराओं के सहअस्तित्व पर विश्वास करता है। यह वह धरती है जहां वर्षों पहले महात्मा बुद्ध ने दुनिया को 'अप्प दीपो भव' का संदेश दिया। समापन समारोह का संचालन प्रो. शीतला प्रसाद सिंह ने किया जबकि आभार ज्ञापन प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी ने किया।

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