नदी में समा गया घर, जमीन भी गई, पांच साल से शरणार्थी जैसा जीवन जी रहे 240 परिवार

पांच वर्ष पहले एक गांव का 240 घर नारायणी नदी में समा गया। सभी लोग विस्थापित हो गए। वह छप्पर की झोपड़ी में शरणार्थियों जैसा जीवन व्ययतीत कर रहे हैं। उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी सुविधा नसीब नहीं है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 31 Aug 2018 10:00 AM (IST) Updated:Fri, 31 Aug 2018 10:00 AM (IST)
नदी में समा गया घर, जमीन भी गई, पांच साल से शरणार्थी जैसा जीवन जी रहे 240 परिवार
नदी में समा गया घर, जमीन भी गई, पांच साल से शरणार्थी जैसा जीवन जी रहे 240 परिवार

गोरखपुर : पांच वर्ष पूर्व नारायणी नदी की कटान से बेघर हुए कुशीनगर जिले के सेवरही तहसील क्षेत्र के ग्राम पिपराघाट के चार टोलों के 240 परिवार आज भी खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं। यहां बसे ओमप्रकाश, शंकर, राजकुमार, मोती, तीरथनाथ, सुदामा, अशोक, जितेंद्र, चंजोतिया, पौधरिया, राधिका, चंपा आदि ने व्यथित मन से कहा कि आज तक न पट्टा मिला न शासन स्तर से कोई अन्य सुविधाएं। अगर दैनिक मजदूरी न की जाए तो चूल्हा भी नहीं जल पाएगा। राशन कार्ड, बिजली, पानी, शौचालय, आवास जैसी सुविधाओं से मरहूम यहां के लोग आज भी शासन व जनप्रतिनिधियों से उम्मीद लगाए हुए हैं कि कभी तो इनकी सुधि ली जाएगी। विधायक की पहल पर प्रशासन ने इन परिवारों को दवनहां गांव के पास ¨सचाई विभाग की भूमि में बसा तो दिया लेकिन पुनर्वास की कार्रवाई अब तक न होने से बाढ़ पीड़ित बुनियादी सुविधाओं से वंचित होकर शरणार्थी सा जीवन बिताने को मजबूर हैं। एपी बांध के किनारे बसे इस गांव में बाइस टोले थे। वर्ष 2013 में 70 परिवारों वाला नान्हू टोला, 70 परिवारों वाला फल टोला, 50 परिवारों वाला गोवर्धन टोला और 50 परिवारों वाला भंगी टोला कटान का शिकार होकर नदी की धारा में विलीन हो गए। भयंकर बाढ़ में 10 दिनों के अंतराल में कुल 240 परिवार बेघर हो गए।

उस समय इन परिवारों की दुर्दशा देख विधायक अजय कुमार लल्लू की पहल पर सेवरही कस्बा के निकट ग्राम दवनहा के पास बड़ी गंडक नहर और उसकी शाखा के बीच में स्थित ¨सचाई विभाग की भूमि खाली मिली। इसी जमीन पर बाढ़ प्रभावित लोगों को बसा दिया गया। तब से लेकर आज तक इनके लिए कुछ भी कार्य नहीं किया गया।

प्रशासन के लापरवाह रवैये के चलते पांच वर्ष बीतने के बावजूद यहां के लोग खानाबदोश सा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बुनियादी सुविधाओं से वंचित इन बाढ़ पीड़ितों को सरकारी इमदाद तो दूर आज तक इनके नाम से तहसील प्रशासन द्वारा पट्टा तक जारी नहीं किया गया। केंद्र व प्रदेश की सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही है, लेकिन यहां बसे परिवारों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।

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राशन कार्ड तक नहीं बाढ़ प्रभावितों के पास

बाढ़ की तबाही के शिकार इन परिवारों के पास राशन कार्ड तक नहीं है। हालांकि राशन कार्ड के लिए ग्राम प्रधान से लेकर विधायक और खंड विकास अधिकारी से जिलाधिकारी तक पीड़ितों ने संपर्क किया। इन सभी को पांच वर्ष से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है। यही कारण है कि राशन का खाद्यान्न नहीं मिल पा रहा है। इतना ही नहीं मनरेगा योजना के अंतर्गत मजदूरी का अवसर नहीं प्राप्त होते। ओडीएफ योजना यहां पूरी तरह फ्लाप है। किसी के भी घर में शौचालय नहीं है। घर व खेत सब कुछ कटान की भेंट चढ़ जाने के बाद मजदूरी करना ही रोजी-रोटी का एक मात्र साधन है। बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि चारों तरफ से घने पेड़-पौधों के बीच हम लोगों की ¨जदगी जंगली जीव-जंतुओं व विषैले कीड़े-मकोड़ों के दांव पर लगी रहती है। न जाने कब कौन सा भारी भरकम पेड़ हमारे या जानवरों के ऊपर गिर पड़े और इहलीला समाप्त हो जाए। हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आखिर हम क्या करें, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

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