फ्लॉवर डेल सॉकर व यूनाइटेड यंग्स ने दर्ज की जीत

सेंट एंड्रयूज कॉलेज के मैदान पर खेले जा रहे जिला फुटबॉल लीग के अंतर्गत रविवार को हुई

By JagranEdited By: Publish:Mon, 16 Jul 2018 06:24 PM (IST) Updated:Mon, 16 Jul 2018 06:24 PM (IST)
फ्लॉवर डेल सॉकर व यूनाइटेड यंग्स ने दर्ज की जीत
फ्लॉवर डेल सॉकर व यूनाइटेड यंग्स ने दर्ज की जीत

गोरखपुर: सेंट एंड्रयूज कॉलेज के मैदान पर खेले जा रहे जिला फुटबॉल लीग के अंतर्गत पहले मैच में फ्लॉवर डेल सॉकर ने डीबी फुटबॉल क्लब तथा दूसरे मैच में यूनाइटेड यंग्स ने स्प्रिंगर स्कूल को हराकर जीत दर्ज की।

पहला मैच फ्लॉवर डेल सॉकर व डीबी फुटबॉल क्लब के बीच खेला गया। मैच शुरू से ही रोमाचक रहा, लेकिन 10 वें मिनट में सॉकर की ओर से एरिन ने डीबी को छकाते हुए शानदार मैदानी गोल करके 1-0 की बढ़त ले ली। इसके बाद दोनों ओर से खिलाड़ियों ने कई कोशिशें कीं पर किसी को कामयाबी नहीं मिली और मुकाबला सॉकर के पक्ष में समाप्त हुआ। निर्णायक की भूमिका विकास, भुआल, मनु छेत्री ने निभाई।1दूसरा मैच यूनाइटेड यंग्स क्लब व स्प्रिंगर स्कूल के बीच खेला गया। यूनाइटेड यंग इस मैच में 1-0 से विजयी रही। संजय साहनी, मेहताब अहमद व रतन सिंह निर्णायक रहे। मैच के दौरान नियाज अहमद खान, हरिकेश निषाद, मो. नसीम, शिवकुमार श्रीवास्तव, मो. हमजा खान, कुर्बान अली, एनपी गौड़, कृष्ण प्रताप श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।

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यहा योग से होती है दिन की शुरुआत

स्वस्थ शरीर के लिए योग का कितना महत्व है, यह किसी से छिपा नहीं रह गया। योग के महत्व की ही देन है कि इसे विश्व स्तर पर मान्यता मिल चुकी है। प्रचार-प्रसार के तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद अधिकतर संस्थाओं में योग तभी दिखता है, जब कोई खास अवसर हो। पर, गरीब घरों की बेटियों के लिए संचालित कस्तूरबा गाधी आवासीय विद्यालयों ने स्वस्थ रहने के इस मंत्र को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल कर लिया है। जनपद के आधे से अधिक विद्यालयों में छात्रओं के दिन की शुरुआत योग से ही होती है। कहीं छत पर तो कहीं खुले मैदान में होता है योग

जनपद में 20 कस्तूरबा गाधी आवासीय बालिका विद्यालय हैं। यहा 11 साल से लेकर 14 साल तक की बच्चियों को शिक्षा दी जाती है। योग का प्रचार-प्रसार होने के बाद 20 में से 11 विद्यालय प्रतिदिन योगाभ्यास कराते हैं। खास बात यह है कि यहा की छात्रएं योग की कठिन मुद्राओं में भी पारंगत हो चुकी हैं। अब उन्हें किसी प्रशिक्षक की आवश्यकता नहीं होती। छात्रओं के बीच से ही कोई प्रशिक्षक भी बन जाता है। जिन कस्तूरबा विद्यालयों के पास खाली जमीन नहीं है, वहा छत पर योगाभ्यास होता है और जहा मैदान है, वहा मैदान में ही योगाभ्यास होता है।

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