प्रदूषण की मार से नदियां बेजार

गोरखपुर : जीवनदायिनी नदियों की सेहत दिन-ब-दिन खराब हो रही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर क्षेत्र

By Edited By: Publish:Wed, 04 May 2016 01:49 AM (IST) Updated:Wed, 04 May 2016 01:49 AM (IST)
प्रदूषण की मार से नदियां बेजार

गोरखपुर : जीवनदायिनी नदियों की सेहत दिन-ब-दिन खराब हो रही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर क्षेत्र में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही आमी नदी की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। प्रदूषण की मार ने घाघरा और राप्ती नदी को भी बेजार कर दिया है। यही नहीं गोरखपुर की शान रामगढ़ ताल में नगरीय अपजल के चलते स्थिति दयनीय हो गई है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आंकलन में विभिन्न स्थानों पर घाघरा और राप्ती नदी तथा रामगढ़ ताल के जल की गुणवत्ता की जो हकीकत सामने आई है, वह इन जल स्रोतों की खराब स्थिति की तस्दीक करती है। जनवरी, फरवरी और मार्च 2016 की इस रिपोर्ट में जो बातें सामने आई हैं वह चिंता जनक हैं। घाघरा नदी की बात करें, तो फरवरी और मार्च में बड़हलगंज में घाघरा की दशा बेहद खराब रही। इसका पानी सबसे निचले पायदान अर्थात डी श्रेणी का पाया गया। हालांकि तुर्तीपार में जल की गुणवत्ता सी श्रेणी की रही। मानक के अनुसार फरवरी और मार्च में बड़हलगंज क्षेत्र में घाघरा का पानी शोधन के बाद भी पीने योग्य नहीं रहा। बरहज में भी यही स्थिति है।

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक राप्ती नदी की स्थिति गोरखपुर के राजघाट में बेहद चिंताजनक है। तीनों ही महीनों में राजघाट में जल की गुणवत्ता डी श्रेणी की रही, जिसका उपयोग बमुश्किल मछलियों एवं वन्य जीवों के लिए किया जा सकता है। जीवाणुओं की अधिक संख्या भी इस नदी के जल की निम्न गुणवत्ता का परिचायक है। राजघाट में जल की गुणवत्ता इन महीनों में स्नान के लिए भी उपयुक्त नहीं मिली, जबकि यहां पर वर्ष में कई बार स्नान पर्व भी संपन्न होते हैं।

पर्यावरणविद् डा. शरद चंद्र मिश्र के अनुसार तो डोमिनगढ़ नमूना संग्रहण स्थल के आगे और राजघाट से पहले शहर का नगरीय अपजल एवं ठोस अपशिष्ट बिना किसी शोधन के नदी में प्रवाहित हो रहा है। साथ ही राजघाट में श्मशान भी है, जिसका अपशिष्ट नदी में प्रवाहित होता है। ऐसे में नदी में कार्बनिक पदार्थो की मात्रा एवं जीवाणुओं की संख्या में इजाफा होता है। इसके कारण राजघाट में नदी का जल नहाने योग्य भी नहीं है।

रामगढ़ताल का पानी भी पीने योग्य तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। तीनों ही माह में यहां डी श्रेणी का पानी मिला। बड़ी मात्रा में शैवाल अब भी इसमें हैं। अपजल शोधन के लिए लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला अपजल भी रामगढ़ ताल में ही प्रवाहित हो रहा है।

--------

गोरखपुर नगर का अपजल और ठोस अपशिष्ट राप्ती में प्रवाहित हो रहा है, जिसमें मौजूद कार्बनिक पदार्थो का विघटन नदी में ही होता है। इससे नदी जल में बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) और टोटल कोलीफार्म की मात्रा में वृद्धि होती है। राप्ती नदी में प्रवाहित होने वाले अपजल के शोधन के लिए सीवेज टीटमेंट प्लाट लगाया जाना जरूरी है। साथ ही शोधन के बाद अपजल को नदी में प्रवाहित न कर रीसाइकिल एवं रीयूज के माध्यम से अन्य प्रयोग में लाया जाए। श्मशान में बायोमास गैसीफायर आधारित अंत्येष्टि प्रणाली स्थापित किए जाने की जरूरत है।

-डा. गोविंद पांडेय

एसोसिएट प्रोफेसर

पर्यावरण इंजीनिय¨रग

एमएमएम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

--------------

ऐसे समझें जल की गुणवत्ता :

------------------

- ए श्रेणी - घुलित आक्सीजन (डीओ) 6 मिग्रा प्रति लीटर या ज्यादा, बीओडी 2 मिग्रा प्रति लीटर या कम, टोटल कोलीफार्म एमपीएन प्रति 100 मिली 50 या कम

- बी श्रेणी - डीओ 5 मिग्रा प्रति लीटर या ज्यादा, बीओडी 3 मिग्रा प्रति लीटर या कम, टोटल कोलीफार्म एमपीएन प्रति 100 मिली 500 या कम

-सी -डीओ 4 मिग्रा प्रति लीटर या ज्यादा, बीओडी 3 मिग्रा प्रति लीटर या कम, टोटल कोलीफार्म एमपीएन प्रति 100 मिली 5000 या कम

- डी - उक्त में से कोई नहीं।

----------------------

chat bot
आपका साथी