पुरस्कार लौटाने से गिरी है साहित्य अकादमी की गरिमा

गोरखपुर: कन्नड़ लेखक एमएम कालबर्गी की हत्या और उत्तर प्रदेश के बिसाहड़ा कांड के विरोध स्वरूप लेखकों द

By Edited By: Publish:Thu, 15 Oct 2015 02:01 AM (IST) Updated:Thu, 15 Oct 2015 02:01 AM (IST)
पुरस्कार लौटाने से गिरी है साहित्य अकादमी की गरिमा

गोरखपुर: कन्नड़ लेखक एमएम कालबर्गी की हत्या और उत्तर प्रदेश के बिसाहड़ा कांड के विरोध स्वरूप लेखकों द्वारा पुरस्कार लौटाने की एकाएक चली हवा से साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी व्यथित हैं। वह इसे साहित्यकारों के लिए अच्छा उदाहरण नहीं मानते। वह इस बात से चिंतित हैं कि इससे साहित्य अकादमी जैसी स्वायत्त संस्था की गरिमा गिर रही है। वह कहते हैं-'राजनीतिक कारणों को लेकर साहित्यिक संस्था को घसीटना उचित नहीं है। इस पर लेखकों को विचार करके कोई निर्णय लेना चाहिए।'

गोरखपुर में अपने घर आए डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने बुधवार को दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि लेखकों के विरोध जताने के इस तरीके से वह असहमत हैं।

साहित्य अकादमी पुरस्कार देश के शीर्ष साहित्यक पुरस्कारों में से एक है। इससे सम्मानित होने वाले लेखकों की पुस्तकों का देश की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी किया जाता है। कालबर्गी की हत्या के बाद सबसे पहले ¨हदी के लेखक उदय प्रकाश ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया। उसके बाद से नयनतारा सहगल सहित 21 लेखक पुरस्कार लौटा चुके हैं।

क्या आप पुरस्कार लौटाने के पीछे राजनीतिक कारण या गुटबंदी देखते हैं? डा. विश्वनाथ ने कहा, 'मुझसे यह क्यों कहलवा रहे हैं। (कुछ क्षण की चुप्पी के बाद) देखिये पुरस्कार लौटाने की हवा को लोग अच्छी नजर से नहीं देख रहे हैं। सारे लोग पूछ रहे हैं.। मुझे भी दुख हो रहा है। हम अकादमी पुरस्कार लौटाने के पीछे उचित तर्क नहीं देख रहे।'

देश में बढ़ी ¨हसा की घटनाओं पर नरेंद्र मोदी सरकार की चुप्पी को लेकर लेखकों द्वारा सवाल उठाने को डा. तिवारी उनका हक मानते हैं, लेकिन वह इस तर्क को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि विरोध जताने का बेहतर तरीका अकादमी पुरस्कार लौटाना है। वह कहते हैं कि विरोध के अन्य तरीके भी हैं। साहित्य अकादमी सरकारी संस्था नहीं है। अकादमी पुरस्कार सरकार के निर्देश पर नहीं दिए जाते। जिन्हें पुरस्कार मिला है उनका चुनाव लेखकों ने किया है। इससे सरकार का कोई लेना देना नहीं। इसलिए सरकार के किसी कार्य का विरोध जताने के लिए अकादमी पुरस्कार लौटाना सही तरीका नहीं है। हम आशा करते हैं कि हमारे लेखक पुरस्कार लौटाने में संयम बरतेंगे और विचार करेंगे।

डा. तिवारी ने इस बात से भी इन्कार किया कि उनके या साहित्य अकादमी की कार्यकारिणी के ऊपर इस्तीफे का दबाव बन रहा है। उन्होंने कहा कि 'हमारे ऊपर दबाव किस बात का। लेखकों के विरोध के करण स्पष्ट हैं। हम इस्तीफा क्यों देंगे, लेखकों ने ही हमें निर्विरोध चुना है।' उन्होंने बताया कि पूरे मामले पर विचार के लिए साहित्य अकादमी की कार्यकारिणी की बैठक 23 अक्टूबर को बुलाई गई है। उसमें सभी भाषाओं के लेखक होते हैं। इस मामले में आगे क्या करना है यह कार्यकारिणी ही तय करेगी।

वह कहते हैं कि किसी मामले में मोदी या कोई भी राजनेता कब बोले, वह यह कैसे तय कर सकते। हां, वह मानते हैं कि ¨हसा की घटनाओं पर सरकार की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया आनी चाहिए।

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