स्टेशन पहुंचाने से पहले से वसूले थे 725 रुपये टिकट के

गाजीपुर जामनगर (गुजरात) से चली स्पेशल (श्रमिक) ट्रेन गुरुवार की देर रात करीब सवा दो बजे लगभग 12

By JagranEdited By: Publish:Fri, 08 May 2020 06:10 PM (IST) Updated:Fri, 08 May 2020 06:10 PM (IST)
स्टेशन पहुंचाने से पहले से वसूले थे 725 रुपये टिकट के
स्टेशन पहुंचाने से पहले से वसूले थे 725 रुपये टिकट के

जासं, गाजीपुर : जामनगर (गुजरात) से चली स्पेशल (श्रमिक) ट्रेन गुरुवार की देर रात करीब सवा दो बजे लगभग 1284 श्रमिकों को लेकर गाजीपुर सिटी रेलवे स्टेशन पहुंची। फ्री यात्रा के दावे से इतर यात्रियों को गाजीपुर तक पहुंचाने के लिए उनसे 725 रुपये टिकट के दाम वसूले स्टेशन पहुंचने से पहले ही ले लिए गए थे। जामनगर से आई ट्रेन में जिले के 406 एवं अन्य जिलों के 878 श्रमिक आए थे। ट्रेन से आए मजदूरों को थर्मल स्क्रीनिंग के बाद रोडवेज की बसों से अन्य जिलों को रवाना कर दिया गया। वहीं जिले के मजदूरों का नाम एवं पता नोट कर उनके घरों को भेज कर कर क्वारंटाइन कर दिया गया।

जामनगर से आई ट्रेन आधी रात के बाद करीब सवा दो बजे सिटी रेलवे स्टेशन पहुंची। ट्रेनों से उतरते ही उनको शारीरिक दूरी का पालन करने हुए कतार में खड़ा कर दिया गया। एक-एक कर सभी मजदूरों की की थर्मल स्केनिग कर उनको स्टेशन से बाहर निकाल कर बसों में बैठाया जाने लगा। मजदूरों के मुताबिक उनको रास्ते में भोजन एवं नाश्ता वगैरह दिया गया था लेकिन उनसे टिकट का दाम लिए जाने पर उन्होंने नाराजगी जताई।

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देर रात आई स्पेशल ट्रेन में जिले के अलावा करीब अन्य करीब दो दर्जन जिलों के श्रमिक आए थे। उनकी थर्मल स्केनिग करने के बाद अन्य जिलों के कुल 878 श्रमिकों को रोडवेज की बसों से भेज दिया गया । वहीं जिले के 406 मजदूरों को उनके घरों को भेज कर उनको होम क्वारंटाइन कर दिया गया।

- प्रभास कुमार, एसडीएम सदर। लोग बोले

-आने के लिए उनको टिकट का दाम 725 रुपये देने पड़े थे। सरकार को टिकट नि:शुल्क देना चाहिए थे। ऐसा करके सरकार ने बहुत गलत काम किया है।

- रमाशंकर, मुड़ियारी, जखनियां।

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- उनका काम धंधा सब कुछ बंद हो गया था। वहां खाने-पीने की काफी समस्या थी। अब जब इस संकट से मुक्ति मिल जाएगी तक वापस जाने के बारे में सोचेंगे।

- विजय राम, भितरी, सैदपुर।

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- रास्ते में भोजन पानी की पूरी व्यवस्था थी, एक-दो जगह पर बिस्किट भी दिया गया था लेकिन टिकट का दाम देना काफी खल गया। सरकार को इसका दाम नहीं लेना चाहिए था।

- मकबूल अंसारी, सादात।

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मेहनत-मजूदरी कर आजीविका चलाते थे, लेकिन कोरोना के कारण काम बंद हो गया था और खाने के लाले पड़ गए थे। साथ ही घर जाने को मन कर रहा था। टिकट के रुपये तो स्टेशन आने से पहले ही ले लिए थे।

- बंटी-आगरा।

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