देवा के लोगों की जेहन में स्वामी सहजानंद के सम्मान की अधूरी हसरतों की टीस

किसान ही मेरे भगवान हैं और उन्हीं की पूजा किया करता हूं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Jun 2022 11:43 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jun 2022 11:43 PM (IST)
देवा के लोगों की जेहन में स्वामी सहजानंद के सम्मान की अधूरी हसरतों की टीस
देवा के लोगों की जेहन में स्वामी सहजानंद के सम्मान की अधूरी हसरतों की टीस

देवा के लोगों की जेहन में स्वामी सहजानंद के सम्मान की अधूरी हसरतों की टीस

शिवानंद राय, गाजीपुर : ‘मैं ईश्वर को ढूंढने चला था। मैंने उसे जंगलों और पहाड़ों में ढूंढा। ग्रांथों और पुस्तकों में भी कम नहीं ढूंढा, मगर मैं उसे नहीं पा सका। अगर मुझे वह कहीं मिला तो किसानों में। किसान ही मेरे भगवान हैं और उन्हीं की पूजा किया करता हूं। यह तो मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई मेरे भगवान का अपमान करे। ये किसान संसार को खिलाते हैं, देवता पितरों को भोग व पिंडा-पानी देते हैं, भगवान का भोग लगाते और लीडरों को मालपूआ-पूड़ी चभाते हैं, मगर इनमें से एक भी इन गरीबों की खबर लेने को रवादार नहीं’।

स्वामी सहजानंद का यह विचार उनकी किसानों के प्रति हमदर्दी को बयां करता है। उन्होंने पूरा जीवन देश की आजादी और किसान के सम्मान की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया। आज उनको सम्मान देने की लड़ाई वर्षों से पैतृक गांव देवा के लोग लड़ रहे हैं, लेकिन पहरेदारों को तनिक भी फिक्र नहीं है। रविवार को उनका निर्वाण दिवस मनाने को लेकर कोई खासा उत्साह नहीं है, क्योंकि हर साल की तरह लोग आएंगे और चंद उद्गार बोलकर चले जाएंगे। एक साल तक मुड़कर भी उनकी यादों को सहेजने के लिए कोई पहल नहीं होगी। स्वामी जी के सम्मान में अदना सा जर्जर सामुदायिक मिलन केंद्र की मरम्मत और एक पुस्तकालय न बन पाने का मलाल गांव के लोगों को है।

वह देवागांव में महाशिवरात्रि के दिन 1889 में पैदा हुए थे। बाल्यवास्था में उनका नाम नौरंग राय था। उन्होंने हिंदी मीडिल परीक्षा में प्रदेश में सातवां स्थान प्राप्त किया। इसके बाद जर्मन मिशन हाई इंग्लिश स्कूल (सिटी स्कूल) में दाखिला कराया। 1909 में काशी के संस्कृत विद्वानों के सानिध्य में संस्कृत शास्त्रों का अध्ययन किया। इस बीच वह राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए। उनकी पांच दिसंबर 1920 को पटना में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। इसके बाद वह स्वदेश सेवा से जुड़ गए। बक्सर में वह इसके लिए काम में जुट गए। अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन से लौटने के बाद 1921 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। राजद्रोह के मुकदमे में गाजीपुर सहित कई जेलों में सजा काटी। 1923 में जेल से छूटकर गाजीपुर लौटे। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों की कथनी व करनी में अंतर से वह बहुत आहत हुए थे। इसके बाद बिहार के सेमरी गांव फिर बिहटा में सीताराम आश्रम की स्थापना की। उनके किसान आंदोलन की देन है कि 1929 में बिहार व्यवस्थापिका सभा में पारित होने के लिए तैयार काश्तकारी बिल को वापस लेना पड़ा था।

प्रतिमा व द्वार मात्र से यादें होतीं ताजा

: देवा गांव में उनके नाम से द्वार बना है और उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। तत्कालीन सांसद मनोज सिन्हा ने गांव को गोद लिया तो सड़कें वगैरह कुछ ठीक हुईं। गांव में जर्जर सामुदायिक मिलन केंद्र के पुनरोद्धार की योजना बनी, लेकिन आज तक परवान नहीं चढ़ी। स्वामी जी के परिवार के अरविंद राय पप्पू बहुत आहत हैं। उनका कहना है कि आज तक इसके लिए राजनीतिक व प्रशासनिक स्तर पर कोई प्रयास नहीं हुआ। कम से कम मिलन केंद्र को ठीक कराकर व पुस्तकालय बनाकर उनकी यादों को संजोया जा सकता है।

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