Shuarya Gatha: युद्ध छिड़ गया मैं जा रहा हूं, हो सकता है लौटकर न आऊं..
कभी किसी के सहारे मत रहना। माता-पिता का ख्याल रखना। यह शहीद लांस नायक रतन सिंह के अपनी पत्नी से कहे गए आखिरी शब्द थे। पति से किया वादा निभाते हुए शहीद लांस नायक रतन सिंह की वीर वधु लीलावती ने कभी किसी का सहारा नहीं लिया।
गाजियाबाद [दीपा शर्मा] । युद्ध छिड़ गया है मैं जा रहा हूं। हो सकता है लौटकर न आऊं। अपने दम पर जीना, परिवार को संभालना। कभी किसी के सहारे मत रहना। माता-पिता का ख्याल रखना। यह शहीद लांस नायक रतन सिंह के अपनी पत्नी से कहे गए आखिरी शब्द थे। पति से किया वादा निभाते हुए शहीद लांस नायक रतन सिंह की वीर वधु लीलावती ने कभी किसी का सहारा नहीं लिया। अपने दम पर परिवार को संभाला और बेटे को पढ़ा लिखाकर सीमा शुल्क अधिकारी बनाया। महज 25 साल की उम्र में ही लीलावती के पति लांस नायक रतन सिंह 1971 के पाकिस्तान से युद्ध में देश के लिए वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। उस समय लीलावती 22 साल की थी और उनका बेटा केवल डेढ़ साल का था।
रतन सिंह ने लड़ी थी 1962 और 1965 की भी जंग
लीलावती बताती हैं कि उनके पति ने 1962 और 1965 की भी जंग लड़ी थी। लेकिन, 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में उन्होंने वीरता से लड़ते हुए देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए। उन्होंने बताया कि रतन सिंह छुट्टी आए हुए थे और वह अपने साथ ही पोस्टिंग पर ले जाने वाले थे। तभी तार आया कि युद्ध शुरू हो गया रतन सिंह ने जाते हुए अपनी पत्नी से कहा कि माता पिता और बेटे का ख्याल रखना। कभी किसी के सहारे मत रहना अपने दम पर रहना। वही आखिरी दिन था जब शहीद नायक रतन सिंह अपनी पत्नी लीलावती को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। पाकिस्तान से युद्ध में वीरता से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए।
नहीं कर सकी थी पति के अंतिम दर्शन
लीलावती बताती हैं युद्ध में इतने ज्यादा जवान शहीद हुए थे कि किसी के भी पार्थिव शरीर को घर नहीं लाया गया और न ही शहीद रतन सिंह घर लौटकर आए। उनके फूलों का कलश और बक्सा ही घर पर आया। लीलावती बताती हैं कि सांजा पुर गांव स्थित घर पर जो बक्सा आया था उसी में उनकी वर्दी और बिस्तर था। इसी दौरान गांव में बाढ़ आ गई थी और वह घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए बाहर कमाने चली गई थी। जब वापस गांव आकर देखा तो बक्से में पानी भरने से कुछ नहीं बचा।
बेटे को आर्मी हॉस्टल में छोड़ निकल पड़ी थीं जिम्मेदारी उठाने
वीर वधु लीलावती बताती हैं कि उनका बेटा संजय केवल डेढ़ साल का था और घर पर केवल बुजुर्ग सास पनवेश्वरी देवी और ससुर रिशाल सिंह थे। जो मदद नहीं कर सकते थे। घर की पूरी जिम्मेदारी कंधों पर आ गई थी। दूसरे शहर में जाकर पैसा कमाने के बारे में सोचा, लेकिन इतने छोटे बेटे को साथ ले जाकर वह कुछ नहीं कर सकती थी। इसलिए बेटे को आर्मी के हॉस्टल में छोड़ दिया और काम करने के लिए पंजाब चली गईं। लीलावती ने बताया कि पहली बार घर से अकेले काम के लिए निकली थी। ट्रेन में रास्ते भर रोती रही। एक साल में बेटे से मिलने हॉस्टल आईं तो बेटे को नहलाया खाना खिलाया और फिर सोता हुआ छोड़कर चली गई। दूसरी बार जब मिलने आई तो बेटा उन्हें भूल गया था। इसी दौरान उन्हें एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई थी तो बेटे को साथ रखकर ही वह नौकरी करने लगीं।
पोती खुशी बनना चाहती है आर्मी अफसर
लांस नायक रतन सिंह की पोती खुशी सेंट मैरी स्कूल में कक्षा 11 की छात्र हैं। बचपन से ही वह अपनी दादी लीलावती से अपने दादा के किस्से सुनती रहती हैं। इसी से प्रेरणा लेकर वह भी सेना में अधिकारी बनना चाहती है। इसके लिए उन्होंने स्कूल पढ़ाई के साथ ही तैयारी शुरू कर दी है। वह परीक्षा की तैयारी के साथ फिजिकल टेस्ट की भी तैयारी कर रही हैं।
बेटे को बनाया सीमा शुल्क अधिकारी
लीलावती बताती हैं कि बेटा संजय कुछ समझदार हो गया था तो बोलता था कि हमारे पापा कहां हैं तो वह कह देती कि जब हाईस्कूल में अच्छे नंबर लेकर आओगे तो पापा खुश होकर आ जाएंगे। इसके बाद हाईस्कूल पास करने के बाद बेटे ने पूछा तो उन्होंने कहा कि बेटा तेरे पापा तो अब भगवान के पास हैं। अब तेरी मम्मी और पापा मैं ही हूं। जो चहिए मैं लाकर दूंगी। लीलावती ने बताया कि उनके बेटे ने भी अपनी मां के परिस्थितियों को देखते हुए पढ़ाई में काफी मेहनत की और अब वह सीमा शुल्क अधिकारी है। शहीद रतन सिंह का परिवार विवेकानंद नगर में रहता है।