कारसेवकपुरम् में तोगडिय़ा के प्रति उदासीनता, नहीं खुला दरवाजा

विहिप मुख्यालय कारसेवकपुरम में प्रवीण तोगडिय़ा को लेकर उदासीनता बयां हुई। तोगडिय़ा की इच्छा के बावजूद कारसेवकपुरम का दरवाजा उनके लिए नहीं खुला।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Tue, 23 Oct 2018 09:14 PM (IST) Updated:Tue, 23 Oct 2018 09:14 PM (IST)
कारसेवकपुरम् में तोगडिय़ा के प्रति उदासीनता, नहीं खुला दरवाजा
कारसेवकपुरम् में तोगडिय़ा के प्रति उदासीनता, नहीं खुला दरवाजा

अयोध्या (जेएनएन)। विहिप के स्थानीय मुख्यालय कारसेवकपुरम में डॉ. प्रवीण तोगडिय़ा को लेकर उदासीनता बयां हुई। तोगडिय़ा अयोध्या कूच के प्रारंभ से ही अपने समर्थकों के लिए कारसेवकपुरम में आश्रय चाहते थे पर कारसेवकपुरम का दरवाजा उनके लिए नहीं खुला। मंगलवार को एक ओर तोगडिय़ा रामनगरी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की जिद्दोजहद में लगे थे। दूसरी ओर कारसेवकपुरम का सूरज आम दिनों की तरह चढ़ा। 

वेदाध्ययन और गोसेवा जारी रही

स्वास्थ्यलाभ ले रहे विहिप की केंद्रीय सलाहकार समिति के सदस्य पुरुषोत्तमनारायण सिंह नित्य क्रिया के बाद दिन में आराम करने में लग गए। वेद विद्यालय के ब्रह्मचारी प्रात: वेदपाठ एवं वेदाध्ययन में लगे रहे और गोशाला के कर्मचारी नित्य की तरह गोसेवा में। किसी कोने तोगडिय़ा को लेकर विचार-विमर्श की चर्चा नहीं गूंजी। विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा के अनुसार तोगडिय़ा ऐसा कुछ नहीं कर रहे, जिस पर टिप्पणी की जाय।

समाधि पर ही भुला दिए गए परमहंस

सरयू के संत तुलसीदासघाट स्थित मंदिर आंदोलन के पर्याय रहे संत रामचंद्रदास परमहंस की समाधि के निकट प्रवीण तोगडिय़ा ने मंदिर निर्माण के एजेंडे पर नई राजनीतिक पार्टी गठित करने का एलान तो किया पर परमहंस को भुला बैठे। 

दर्शन-पूजन से रोका नहीं गया 

अयोध्या में किसी श्रद्धालु को दर्शन आदि के लिए नहीं रोका गया। डॉ. तोगडिय़ा के कार्यक्रम को लेकर उपजे भ्रम के चलते फैजाबाद जिलाधिकारी अनिलकुमार को दर्शन-पूजन पर किसी प्रकार की रोक न होने के बारे में बयान जारी करना पड़ा। जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि अयोध्या आए श्रद्धालुओं ने आम दिनों की तरह मंदिरों में परंपरागत पूजन-दर्शन किया। एक विशेष समूह ने गैर परंपरागत रामकोट परिक्रमा का प्रयास किया गया तो समझा-बुझाकर उन्हें वापस कर दिया गया। उनके अनुसार परिक्रमा परंपरानुसार न होने से अधिग्रहीत परिसर के निकट गुजरना औचित्यपूर्ण नहीं था। नई परंपरा लोक व्यवस्था के साथ न्यायालय की व्यवस्था के प्रतिकूल होती। लगभग 10 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने अधिग्रहीत परिसर में विराजमान श्रीरामलला का दर्शन किया। 

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