ओंकार की महिमा 16 हजार श्लोकों में : आशाराम

By Edited By: Publish:Wed, 18 Apr 2012 10:30 PM (IST) Updated:Wed, 18 Apr 2012 10:30 PM (IST)
ओंकार की महिमा 16 हजार श्लोकों में : आशाराम

अयोध्या (फैजाबाद), ओंकार की महिमा 16 श्लोकों में है, इसके जप से न केवल मन की मलीनता दूर होती है, बल्कि बुद्धि कोष समृद्ध होने लगता है। इसकी शक्ति अवर्णनीय है। यह विचार प्रसिद्ध अध्यात्मिक संत आशाराम बापू ने व्यक्त किया। वे रामघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर अपने एक दिवसीय सत्संग के दौरान संतों, शिष्यों सहित व श्रोताओं को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि अमेरिका के बोस्टन, कैलिफोर्निया आदि शहरों में ओउ्म थेरेपी सेंटर खोले गए हैं। इस मंत्र के उच्चारण से उठने वाले गुंजन से मृत कोशिकाएं जीवित हो उठती हैं। मष्तिष्क सहित शरीर के अंग सक्रिय हो उठते हैं। ये तथ्य अमेरिकी वैज्ञानिकों के शोध के माध्यम से सामने आए हैं। बापू ने कहा कि श्रीराम घट-घट में हैं, वे हमारे हृदय में वास कर रहे हैं, पर इसका हमें भान होना चाहिए। जिस दिन हम अपने हृदय में बैठे श्रीराम से तादात्म्य स्थापित कर लेंगे उस दिन हर ओर मंगल ही मंगल होने लगेगा। मन की गहराईयों से लेकर शरीर का रोम-रोम सुखद अनुभूति करने लगता है।

जीवन में मंत्र दीक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बापू ने कहा कि इससे 33 प्रकार के अध्यात्मिक लाभ स्वत: होने लगते हैं। श्रद्धा, नियम के पालन व समर्पण से आत्म साक्षात्कार आदि क्रियाएं होने लगती हैं। उन्होंने कहा कि महादेवजी ने स्वामी वामदेव से माता पार्वती को दीक्षा दिलाई। श्री काली ने प्रकट होकर पुजारी गजाधर को तोतापुरी गुरु से दीक्षा लेने का आदेश दिया। इस दीक्षा को प्राप्त गजाधर श्रीकाली के सिद्ध संतों में अग्रगण्य सिद्ध साधकों में शुमार हो गए। बापू के कहा कि बिना गुरु की कृपा से न तो मंत्र की कृपा होती है न ही उसके देवता की।

पाप-पुण्य को रेखांकित करते हुए बापू ने कहा कि जिस कर्म के करने के बाद मन मलीन हो जाय, उसे पाप कहते हैं और जिस कर्म के बाद आनंद की अनुभूति हो वहीं पुण्य है। उन्होंने कहा कि सुख आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए आता है और दु:ख विवेक व वैराग्य बढ़ाता है। जो मनुष्य इन पर नियंत्रण कर उनका सदुपयोग कर ले वही साधु है। उन्होंने कहा कि होली, दीपावली, पूर्णिमा, अमावस्या, शिवरात्रि, ग्रहणकाल आदि शुभ तिथियों में जप-तप ध्यान विशेष लाभदायक है। सांसारिकता में ऐसे अवसरों का उपयोग अलाभकारी-अमंगलकारी होता है। उन्होंने माता-पिता व गुरु की सेवा को बेहद महत्वपूर्ण मान युवाओं को पाश्चात्य संस्कृति से दूर रहकर सनातन संस्कृति को अपनाने की सलाह दी।

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योग सिखा कर दी मंत्र दीक्षा

अयोध्या : अध्यात्मिक संत आशाराम बापू ने रामघाट में अपने प्रवचन सत्र की दूसरी संध्या में सायंकाल युवाओं को प्राणायाम व योग की विधियां सिखाई। उन्होंने कहा कि योग लोक-परलोक दोनों को सुधार देता है। इसके बाद बापू ने दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं को मंत्रों की दीक्षा दी। इस दौरान समाजवादी संत सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत भवनाथ दास ने महंत रमेश दास, पहलवान हरवंश दास, कृष्णा दास, युगलकिशोर शास्त्री आदि के साथ सभा के केंद्रीय कार्यालय पर बापू का स्वागत किया।

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झलकियां

-सत्संग स्थल सहित रामनगरी में जगह-जगह गूंजा हरि ओउ्म

-करीब से दर्शन देने के लिए बिजली से पटरियों पर चलने वाली ट्रेन से श्रद्धालुओं के बीच बापू पहुंचे।

-सत्संग स्थल पर नि:शुल्क प्रसाद, चिकित्सा सेवा के अलावा साहित्य का स्टाल भी लगा रहा।

- अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने वाली दिव्य औषधि हरड रसायन का प्रसाद भी लोगों में वितरित किया।

-सत्संग समारोह स्थल पर साहित्य, पोस्टर आदि के जरिए नशा से दूर रहने के संदेश दिए गए।

-बाल संस्कार केंद्र द्वारा प्रदर्शनी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए हवन हुआ।

-मौसम की सुरक्षा के उपाय भी बताएं।

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