रेशम के कीटों से बुनवा रहे समृद्धि का जाल

योगेश कुमार, एटा : निरंतर घाटा दे रही परंपरागत खेती छोड़ रमेश ने रेशम कीटपालन की नई

By JagranEdited By: Publish:Sun, 06 Jan 2019 10:56 PM (IST) Updated:Sun, 06 Jan 2019 10:56 PM (IST)
रेशम के कीटों से बुनवा रहे समृद्धि का जाल
रेशम के कीटों से बुनवा रहे समृद्धि का जाल

योगेश कुमार, एटा : निरंतर घाटा दे रही परंपरागत खेती छोड़ रमेश ने रेशम कीटपालन की नई राह अपनाई तो जिंदगी में समृद्धि का जाल बुनने लगा। शुरुआत में उन पर हंसने वाले किसान भी रफ्ता-रफ्ता इस जाल की 'चमक' से प्रभावित होने लगे। आज जलेसर क्षेत्र के दो दर्जन गांव रेशम के इसी जाल से चमकने लगे हैं।

जलेसर क्षेत्र के गांव मुढ़ई प्रहलाद नगर निवासी 55 वर्षीय रमेश ¨सह भरपूर लागत और कड़ी मेहनत के बाद भी खेती में मुनाफा न होने से काफी निराश थे। वर्ष 2015-16 में दिल्ली में रमेशकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो रेशम कीट पालन करते थे। उनकी सलाह पसंद आई। रमेश ने अपने खेत में शहतूत के पौधे लगाए। सिल्क बोर्ड दिल्ली से रेशम कीट खरीद लाए। वर्ष 2016 में उन्होंने रेशम कीट पालन शुरू कर दिया। एक वर्ष में ही अच्छा उत्पादन हुआ तो मुनाफा भी। इसके बाद तो उनका उत्साह बढ़ गया। आज वे एक कामयाब रेशम उत्पादक बन चुके हैं।

रेशम कीटपालन से अच्छी आय देख अन्य किसान भी आकर्षित हुए। रमेश ने भी उन्हें पूरा सहयोग किया। दिल्ली साथ जाकर कीट दिलवाए। उनके गांव के ही करीब चार दर्जन किसान तो कीट पालन कर ही रहे हैं, आसपास के गणेशपुर, सालवाहनपुर, तालिबानपुर, कोसमा, दिलोखरा सहित दो दर्जन गांवों के सैकड़ों किसान भी रेशम कीटपालन करने लगे हैं। ऐसे होता है कीटपालन

खेत में शहतूत के पौधे रोपे जाते हैं। चार-पांच महीनों में ये पेड़ बन जाते हैं। इनके पत्तों पर रेशम के कीटों को फैला दिया जाता है। 15-20 दिनों बाद इन कीटों को एक बाड़े में पहुंचा दिया जाता है। करीब एक महीने के दौरान ये कीट जाल बुन देते हैं। किसान इस जाले को कलेक्ट कर लेते हैं। इसके बाद कीटों को फिर शहतूत के पत्तों पर फैला दिया जाता है। कीटों को बीमारी से बचा लिया जाए तो ये प्रक्रिया एक वर्ष में 5-6 बार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 3 लाख तक की आय

शहतूत के दो पेड़ों के बीच की दूरी दो से ढाई फुट रखी जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में शहतूत के पत्तों से रेशम कीट वर्ष में 3 लाख से ज्यादा का रेशम उत्पादन कर देते हैं। इस रेशम को देहरादून, उत्तराखंड की मंडी में बेचा जाता है।

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