आसान नहीं कृषि विश्वविद्यालय की राह, पैरवी से बनेगी बात

यह पहली बार है जब बीआरडीपीजी कालेज को लेकर न केवल अवाम उठ खड़ी हुई बल्कि नुमाइंदों ने भी सकारात्मक रुख दिखाया। बात भूमि निरस्त करने पर शुरू हुई और आगे भी बढ़ी। कृषि विश्वविद्यालय बनाने की दिशा में माहौल बना है, लेकिन कृषि विश्वविद्यालय की राह आसान नहीं है

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 Dec 2018 11:13 PM (IST) Updated:Sat, 08 Dec 2018 11:13 PM (IST)
आसान नहीं कृषि विश्वविद्यालय की राह, पैरवी से बनेगी बात
आसान नहीं कृषि विश्वविद्यालय की राह, पैरवी से बनेगी बात

देवरिया : यह पहली बार है जब बीआरडीपीजी कालेज को लेकर न केवल अवाम उठ खड़ी हुई बल्कि नुमाइंदों ने भी सकारात्मक रुख दिखाया। बात भूमि निरस्त करने पर शुरू हुई और आगे भी बढ़ी। कृषि विश्वविद्यालय बनाने की दिशा में माहौल बना है, लेकिन कृषि विश्वविद्यालय की राह आसान नहीं है। जनप्रतिनिधियों के कंधे पर कृषि विश्वविद्यालय बनाने का पूरा दारोमदार है। शासन में पैरवी से ही बात बनेगी। अब देखना है कि सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों की तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इस पर जनपदवासियों की नजर है।

64 वर्ष पूर्व जब देवरिया व कुशीनगर एक जनपद थे। उस दौर में उच्च शिक्षा के लिए कोई शिक्षण संस्थान नहीं था। तब ग्राम सभाओं ने भूमि उपलब्ध कराई और तत्कालीन डीएम विद्यापति शुक्ला व पूर्व मंत्री दीप नारायण मणि समेत कई समाजसेवियों के अथक प्रयास से 1954 में कृषि महाविद्यालय की स्थापना हुई। इस शिक्षण संस्थान के महत्व को लोग समझते थे। यहां से पढ़कर तमाम लोग कृषि के शिक्षण संस्थानों में उच्च पदों पर आसीन हैं। पुरखों की धरोहर को लोग संजोने के लिए समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालय के रूप में इसे देखना चाहते हैं, लेकिन बात उठती है और दब जाती है। कभी यह चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। आज जब केंद्र व प्रदेश में एक ही दल की सरकार है तो लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। जनपद की अवाम ने कई ताकतवर नेताओं को सदन में पहुंचाया है, जो केंद्र व प्रदेश सरकार में अपनी नुमाइंदी कर रहे हैं। कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही व राज्य मंत्री जयप्रकाश निषाद प्रदेश सरकार में हैसियत में है। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र केंद्र सरकार के कैबिनेट में रह चुके हैं। भाटपाररानी विधायक आशुतोष उपाध्याय को छोड़ दिया जाए तो सत्ताधारी दल के सात विधायकों में जन्मेजय ¨सह, कमलेश शुक्ला, सुरेश तिवारी व काली प्रसाद शामिल हैं। कालेज की भूमि निरस्त किए जाने के बाद छात्र, शिक्षक व राजनैतिक दलों व सामाजिक संगठनों के भीतर पहली बार आक्रोश देखने को मिला। जिला प्रशासन ने जनता की भावनाओं का कद्र किया। डीएम अमित किशोर की तरफ से भी कृषि विश्वविद्यालय के लिए पहल की बात सामने आई है। अब लोगों की निगाहें सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों की ओर है। पूर्व प्राचार्य डा.महेंद्र पांडेय कहते हैं कि कृषि डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में इसका विकास होना चाहिए। इसके लिए जनप्रतिनिधियों को आगे आना होगा।

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पूर्व सरकार में हुई थी पैरवी, लेकिन बात नहीं बनी

महाविद्यालय में बीए, बीएससी, बीएड, बीएससी कृषि, एमएससी कृषि व पीएचडी कृषि का अध्ययन-अध्यापन कार्य होता है। पिछली सपा सरकार में शिक्षकों व कई जनप्रतिनिधियों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात कर पैरवी की थी। उनकी तरफ से आश्वासन भी मिला था। दो वर्ष पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने भी पहल की, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई।

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