अब नहीं दिखतीं फाग टोलियां, हुरियारे गायब

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By JagranEdited By: Publish:Fri, 06 Mar 2020 05:41 PM (IST) Updated:Sat, 07 Mar 2020 05:59 AM (IST)
अब नहीं दिखतीं फाग टोलियां, हुरियारे गायब
अब नहीं दिखतीं फाग टोलियां, हुरियारे गायब

जागरण संवाददाता, चित्रकूट : बुंदेलखंड के गांवों की पहचान फाग टोलियां और हुरियारे समय के साथ गायब हो गए हैं। बुंदेली फाग और छतरपुरी आल्हा की छटा नदारद हो चुकी है। इसके पीछे लगातार पुरानी परंपराओं को छोड़ना वजह है। लोग कंडे की होलिका दहन से लेकर बाकी परंपराओं को भूलकर आधुनिकता में सोशल मीडिया पर सीमित हो गए हैं। गांव-गांव शाम को लोग भी निकलते थे लेकिन अब समय सिर्फ इंतजार में कटता है। 14 जिलों की होती थी फाग गायकी

बुंदेलखंड यूपी और एमपी सीमाओं में बंटा है। इसमें सात जिले यूपी के हैं जबकि बाकी मध्यप्रदेश के शामिल हैं। इन जिलों के फाग गाने वाले अलग-अलग गांवों में बुलाए जाते थे। जमींदारी प्रथा तक इनका बड़ा बोलबाला रहा। इसके बाद भी ग्रामीण इलाकों में इनकी पूछ होती रही लेकिन आधुनिक परिवेश में लोग दूसरे जिलों में कामकाज की तलाश में चले गए। इसलिए अब इनका जमावड़ा नहीं लगता है। कंडों की होली के लिए विशेषज्ञ भी जुटे

जिले में कंडे की होलिका जलाने के लिए अब विशेषज्ञ भी आगे बढ़े हैं। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय से लेकर बाकी पर्यावरणविद लोगों को कंडे की होलिका जलाने को लेकर जानकारी दे रहे हैं। गांवों में इससे जागरूकता बढ़ी है। लोगों का नजरिया

कंडे की होली जलाने का अभियान सराहनीय है। इससे जंगलों में हरे पेड़ों की कटान पर प्रभावी रोग लगेगी। पर्यावरण भी संतुलित रहेगा। लोगों को जागरूक करने के प्रयास में जुटे हैं। इससे लोग भी आगे बढ़ रहे हैं।

-ठाकुर नागेंद्र, मानिकपुर। बचपन से लेकर कई साल तक फाग की टोलियां देखीं। अब भी ग्रामीण इलाकों में फाग गाने वाले निकलते हैं। हुरियारे भी रहते हैं। हालांकि अब धीरे-धीरे इनमें भी कमी आ रही है।

-छोटे लाल कोल, सरहट।

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