सिस्टम मौन, रजामंदी से बिकती है अवैध शराब

गांव जीतगढ़ी में शराब के नाम पर जहर बेच दिया गया। इस धंधे को रोकने की जिम्मेदारी शासन ने जिन कंधों पर दे रखी है वो सभी इसे रोकने के बजाए बराबर के हिस्सेदार बन जाते हैं। पुलिस विभाग हो या आबकारी सभी अपनी असल ड्यूटी छोड़ धंधेबाजों के हमकदम बन जाते हैं। जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए आबकारी व पुलिस इंस्पेक्टर सहित आठ को निलंबित तो कर दिया है लेकिन बड़े-बड़े अफसर अपनी-अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में लग गए हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 09 Jan 2021 08:31 AM (IST) Updated:Sat, 09 Jan 2021 08:31 AM (IST)
सिस्टम मौन, रजामंदी से बिकती है अवैध शराब
सिस्टम मौन, रजामंदी से बिकती है अवैध शराब

बुलदंशहर, मनोज मिश्रा। गांव जीतगढ़ी में शराब के नाम पर जहर बेच दिया गया। इस धंधे को रोकने की जिम्मेदारी शासन ने जिन कंधों पर दे रखी है, वो सभी इसे रोकने के बजाए बराबर के हिस्सेदार बन जाते हैं। पुलिस विभाग हो या आबकारी, सभी अपनी असल ड्यूटी छोड़ धंधेबाजों के हमकदम बन जाते हैं। जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए आबकारी व पुलिस इंस्पेक्टर सहित आठ को निलंबित तो कर दिया है, लेकिन बड़े-बड़े अफसर अपनी-अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में लग गए हैं।

गांव में पांच अर्थियां सजी थीं। परिजनों की चीख-चीत्कार से गमजदा चेहरों पर भी आक्रोश था। इससे एक साथ कई सवाल निकलना शुरू हो गए। इन मौत का असल जिम्मेदार कौन है, सामने से शराब बेचने वाले या पर्दे के पीछे रह कर इस तरह के धंधे को धड़ल्ले से चलवाने वाला पुलिस व प्रशासन का पूरा सिस्टम। सवाल यह भी मरने वाले शराब के तलबगार थे तो मददगार कौन है। एक बार फिर सिहरन उठी और बेबाकी से ग्रामीण बोला कि यहां कुछ बदलने वाला नहीं है। शराब के नाम पर मौत बांटने वालों को तो जेल भेज देंगे, लेकिन जिस सिस्टम के दम पर ये लोग मौत का पव्वा बेच रहे हैं, क्या उन्हें जेल नहीं भेजा जाना चाहिए, क्या उन्हें चंद रोज या सप्ताह के लिए निलंबित कर गुस्से को शांत कर दिया जाएगा। ऐसे लोगों के खिलाफ क्यों सख्त कार्रवाई नहीं हो रह है। अस्पताल में भर्ती ऋषिपाल बोला कि हमारा सिर्फ इतना दोष है कि 80 रुपये में शराब का पव्वा खरीद कर पिया है, लेकिन इसके बिकवाने वाले बहुत हैं। प्रदेश के कई जिलों में हो चुकी घटना

बुलंदशहर में घटना के बाद हर कोई सहम रहा है। खासकर गांव जीतगढ़ी के कुछ ग्रामीण पूछने पर बोले कि हुजूर शराब छूटेगी तो नहीं लेकिन करें तो करें क्या..। इससे पहले भी बुलंदशहर में साल 2013 में शराब पीने से चार से ज्यादा की मौत हो चुकी है। कई जिले हैं जहां मौत का जाम जानलेवा बन गया। बड़े अफसरों पर कार्रवाई किए जाने के बजाए निचले स्तर के कर्मचारियों को ही निलंबित कर फाइल को बंद कर दिया जाता है।

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