महिला सशक्तीकरण की अलख जगा रहीं संगीता

समाज में आज भी भ्रूण हत्या कर बेटियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है जो किसी कलंक से कम नहीं है। लेकिन बेटियों के लिए कहा गया है कि बेटी है तो कल है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 11:04 AM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 11:04 AM (IST)
महिला सशक्तीकरण की अलख जगा रहीं संगीता
महिला सशक्तीकरण की अलख जगा रहीं संगीता

जेएनएन, बिजनौर। समाज में आज भी भ्रूण हत्या कर बेटियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, जो किसी कलंक से कम नहीं है। लेकिन, बेटियों के लिए कहा गया है कि बेटी है तो कल है।

शिवाला कलां की संगीता चौहान समाज में लोगों को यही संदेश दे रही हैं। वह समाज में गरीब महिलाओं को सहायता दिलाने के अलावा गरीब बेटियों को शिक्षित करने का जिम्मा उठाए हुए हैं। जबकि, वह भी स्वयं गरीब घर से ही ताल्लुक रखती हैं। सही मायने में कहा जाए तो संगीता महिला सशक्तिकरण की अलख जगा रही हैं।

गांव शिवाला कलां की निवासी संगीता चौहान के पति धर्मेंद्र सिंह आटो चलाते हैं। परिस्थितियां ऐसी कि स्वयं के परिवार की ढेरों जिम्मेदारियां उनके सिर पर रहती हैं। इसके बावजूद वह समाजसेवा के क्षेत्र में कुछ न कुछ करना चाहती हैं। पति व उनकी परवरिश ऐसी रही कि बच्चे पढ़ाई लिखाई में अच्छे निकले। उसके बाद वह समाजसेवा में उतर गई। पहले गांव की महिला समूह की टीम से जुड़ी।

इसके माध्यम से महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना शुरू किया। उसके बाद वह वूमैन वेलफेयर सोसाइटी से जुड़ी। जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक महिला सशक्तिकरण अभियान से जुड़ती गईं। सोसाइटी के माध्यम से निर्धन बेटियों की सहायता करने का जिम्मा लिया। निशुल्क पढ़ाई कराने के साथ-साथ उन्हें सिलाई कढ़ाई सिखाकर आत्मनिर्भर बनाने की शुरूआत की। अपनी टीम के साथ घर-घर पहुंचकर महिलाओं को जागरूक करना शुरू किया। ताकि वह रूढि़वाद सोच के लोगों से घबराएं नहीं। स्वयं को कमजोर समझने के बजाए परिस्थितियों से जूझने के लिए प्रेरित करती हैं।

कन्या भ्रूण हत्या समाज के लिए अभिशाप से कम नहीं है। इसकी रोकथाम के लिए वह गांव-गांव और घर-घर पहुंचते हुए महिलाओं को जागरूक करती हैं। उन्हें संदेश देती हैं कि बेटियां हैं तो समाज है।

31 को कर चुकी हैं सम्मानित

संगीता चौहान बेटियों के लिए कुछ न कुछ करती रहती हैं। वह ऐसे लोगों को प्रेरित करती रहती हैं, जो बेटियों को बोझ समझते हैं। संगीता और उनकी टीम जगह-जगह पहुंचकर नवजात बेटी व उसकी मां को सम्मानित करती हैं। अब तक 31 जच्चा और बच्चा को उनके द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।

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