अंतहीन दर्द : बंदर-कुत्ते के काटने से नहीं, लापरवाही से होती है मौत

जागरण संवाददाता, बिजनौर : जनपद के लोगों के लिए यह सुकून की बात है कि जिला अस्पताल में एंटी रेबीज इंज

By Edited By: Publish:Tue, 27 Sep 2016 06:29 PM (IST) Updated:Tue, 27 Sep 2016 06:29 PM (IST)
अंतहीन दर्द : बंदर-कुत्ते के काटने से नहीं, लापरवाही से होती है मौत

जागरण संवाददाता, बिजनौर : जनपद के लोगों के लिए यह सुकून की बात है कि जिला अस्पताल में एंटी रेबीज इंजेक्शन का पर्याप्त स्टॉक है। रेबीज से होने वाली मौतों के संदर्भ में एक कड़वा सच यह है कि बंदर, कुत्ता, सियार, घोड़ा एवं अन्य जानवरों के काटने से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं होती, मौत होती है जानवरों के काटने के बाद बरती गई लापरवाही से। यदि हम पर्याप्त सावधानी बरतें तो न केवल रेबीज जैसी बीमारी से निजात पा सकते हैं, बल्कि इससे होने वाले अंतहीन दर्द से भी मुक्ति हासिल हो सकती है। करना हमें सिर्फ इतना है कि जैसे ही कोई जानवर किसी को काट लें, तो परिजन उसे जितना जल्दी संभव हो, अस्पताल ले जाएं और हर हाल में इंजेक्शन जरूर लगवाएं। जहां जरा सी लापरवाही से जान जा सकती है, वहीं जरा की सावधानी से जान बचाई भी जा सकती है।

बंदर-कुत्ता एवं अन्य जंगली जानवरों के काटने से रेबीज होता है। रेबीज पीड़ित जानवर की दस दिन के भीतर मौत हो जाती है। यदि रेबीज पीड़ित जानवर किसी व्यक्ति को काट ले तो वह भी रेबीज से पीड़ित हो जाता है। चिकित्सकों के अनुसार रेबीज पीड़ित जानवर की मौत जहां दस दिन के भीतर हो जाती है, वहीं पीड़ित एक दिन, एक माह अथवा दशकों बाद भी रेबीज का शिकार हो सकता है। यदि पीड़ित को एंटी रेबीज इंजेक्शन नहीं लगवाया गया है तो उसकी मौत निश्चित है।

रेबीज के लक्षण

जिला अस्पताल में कार्यरत फिजीशियन डा. योगेंद्र त्रिखा बताते हैं कि रेबीज पीड़ित को हाईड्रोफिबिया हो जाता है। हड़क होने लगती है। पीने व नहाने व किसी भी तरह पानी के प्रयोग से डर लगने लगता है। रोगी को घबराहट होने लगती है। पानी व तेज हवा से डर लगने लगता है। लार टपकने लगती है। रोगी को बुखार भी हो जाता है। रेबीज होने पर पीड़ित को दवाओं का असर नहीं होता और उसकी मौत हो जाती है। पीड़ित को 24 घंटे के भीतर एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाना चाहिए। किसी भी हालत में झाड़फूंक से बचना चाहिए।

जिला अस्पताल में उपलब्ध है एआरवी

जिला अस्पताल के कार्यवाहक सीएमएस डा.वीके शुक्ला बताते हैं कि जिला अस्पताल में प्रचुर मात्रा में एआरवी उपलब्ध है। 70 से 80 पीड़ितों को प्रतिदिन इंजेक्शन लगाएं जाते हैं। वर्तमान में चार सौ से अधिक वायल उपलब्ध है। एक वायल में पांच पीड़ितों को इंजेक्शन लगाए जाते हैं। .05 एमएल का इंजेक्शन कंधे के दोनों ओर पीड़ित की खाल की पहली परत के नीचे लगाया जाता है। किसी भी जानवर के काटने पर एआरवी अवश्य ही लगवानी चाहिए।

जरूरतमंदों की राय

जिला अस्पताल में एआरवी लगवाने पहुंचे मंडावर निवासी समीर पुत्र जमीर, ग्राम करीमुल्लापुर निवासी डॉली पत्नी विजय, ग्राम टिक्कोपुर निवासी अनिल पुत्र पप्पू एवं करीमपुर निवासी लक्ष्मण पुत्रवीर ¨सह ने बताया कि ओपीडी के पर्चे पर चिकित्सक से इंजेक्शन लिखवाने के बाद इंजेक्शन कक्ष में आसानी से एआरवी लगा दिया गया। उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हुई।

पीएचसी-सीएचसी में लगाई जाती है एआरवी

सीएमओ डा. सुखवीर ¨सह बताते हैं कि एआरवी पीएचसी व सीएचसी पर भी उपलब्ध है। रोगियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। यदि किसी रोगी को एआरवी मिलने में परेशानी है तो वह उनसे संपर्क कर सकता है।

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