नेत्रहीन पिता व कुटुंब के लिए श्रवण कुमार बनीं नेहा

नमो देव्यौ.. चित्र.24. अंधे पिता व कुटुंब के लिए श्रवण कुमार बनी नेहाखेलने व पढ़ाई की उम्र में ही अचानक मां की मौत हो जाने पर कंधे पर आई अंधे पिता व दो छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारी को निभाने में मोढ़ क्षेत्र के जमुनीपुर, अठगवां गांव के बरदहवां दलित वस्ती निवासी नेहा ने जरा भी हौसला नहीं खोया।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 09 Oct 2018 07:41 PM (IST) Updated:Tue, 09 Oct 2018 07:41 PM (IST)
नेत्रहीन पिता व कुटुंब के लिए श्रवण कुमार बनीं नेहा
नेत्रहीन पिता व कुटुंब के लिए श्रवण कुमार बनीं नेहा

मोनू मिश्रा, मोढ़ (भदोही)

खेलने व पढ़ाई की उम्र में अचानक मां की मौत हो जाने के बाद कंधे पर आई नेत्रहीन पिता, दो छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाह। मोढ़ क्षेत्र के जमुनीपुर, अठगवां गांव के बरदहवां दलित वस्ती निवासी नेहा ने जरा भी हौसला नहीं खोया। तीन वर्ष पूर्व महज 16 वर्ष की उम्र में आई इस विपदा के बाद नेत्रहीन पिता के लिए जहां श्रवण कुमार बन गईं तो भाइयों के लिए मां व बाप समान। मजदूरी के जरिए न सिर्फ उनकी परवरिश करने में जुट गईं तो खुद बीएससी तक शिक्षा पूरी की तो भाइयों को पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाने में जुटी हुई हैं।

मुश्किल भरे हालात में खुद राह निकल आती है। बस सब्र व हौसला होना चाहिए। कुछ ऐसी परिस्थितियों में नायिका बनकर उभरीं जमुनीपुर अठगवां में बरदहवा दलित बस्ती की नेहा। इनके जीवन का सर्वाधिक दुखद पहलू यह है कि घर की इकलौती कमाऊ मुखिया मां सरिता की तीन वर्ष पूर्व क्षय रोग से मौत हो गई। इसके बाद तो 70 वर्षीय बूढ़ी नेत्रहीन दादी इसराजी देवी व दोनों आंखों से नेत्रहीन पिता सुरेंद्र संग एक छोटे भाई व बहन की परवरिश और सेवा का पूरा जिम्मा नेहा के कोमल कंधों पर आ पड़ा था। परेशानी और विपन्नता के बीच जन्मी नेहा के लिए यह क्षण वास्तव में बेहद चुनौतीपूर्ण था। कारण रहा कि पूंजी के नाम पर उसके पास मां द्वारा खेतों में काम करने की मजदूरी ही उसे विरासत में मिली थी। वहीं पर रहने के लिए टिन शेड निर्मित छोटे से कमरे का सहारा। हालांकि इस मुश्किल हालात में भी उसने जरा हौसला नहीं खोया। कहा कि वह पढ़ लिखकर खुद कुछ बनना चाहती है तो भाई -बहन को भी ऊंचे मुकाम पर देखना चाहती है। इसके लिए भविष्य के सपने ही उसकी हिम्मत व मूल ताकत है।

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