हाल-ए-ट्राॅमा सेंटर : गंभीर मरीज को इलाज...मुश्किल है : Bareilly News

स्पाइनल इंजरी सेंटर और फिर फरीदपुर सीएचसी की जगह ट्रॉमा सेंटर की योजना बनी। शासन से अधिकारी पहुंचे दोनों जगहों का मुआयना किया था। इसके बाद से ट्रॉमा सेंटर की कवायद भुला दी गई।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Sun, 23 Jun 2019 11:02 AM (IST) Updated:Sun, 23 Jun 2019 07:11 PM (IST)
हाल-ए-ट्राॅमा सेंटर : गंभीर मरीज को इलाज...मुश्किल है : Bareilly News
हाल-ए-ट्राॅमा सेंटर : गंभीर मरीज को इलाज...मुश्किल है : Bareilly News

बरेली, जेएनएन : शनिवार को तड़के चार बजे, शाहजहांपुर में हादसा हुआ और कार सवार चार युवकों की मौत हो गई। सरपट दौड़ते हाईवे पर आए दिन ऐसे हादसे होते हैं। हर साल सैकड़ों जिंदगियां चली जाती हैं। इनमें करीब पचास फीसद केस ऐसे होते हैं, जिनमें वक्त पर इलाज नहीं मिलने से गंभीर घायल दम तोड़ जाते।

सरकारों ने इन हालात को समझा, ट्रॉमा सेंटर बनाने को कहा मगर कवायद जिंदगी बचाने की मुहिम तक नहीं पहुंच सकी। मंडल के दो जिलों में तो ट्रॉमा सेंटर हैं ही नहीं। बाकी दो जिलों में व्यवस्था की गई मगर संसाधन नहीं हैं। नतीजा वही, हाईवे पर हादसों का शिकार होने वालों को वक्त पर इलाज नहीं मिल पाता। कब तक ऐसा चलेगा... सरकारी तंत्र यह जवाब देने की स्थिति में नहीं है। हां, प्रस्ताव जरूर बनते हैं।

बरेली में इंतजार : 7 साल पहले योजना बनी अब तक नहीं बन सका

वर्ष 2012-13 में पहले स्पाइनल इंजरी सेंटर और फिर फरीदपुर सीएचसी की जगह ट्रॉमा सेंटर की योजना बनी। शासन से अधिकारी पहुंचे, दोनों जगहों का मुआयना किया था। इसके बाद से ट्रॉमा सेंटर की कवायद भुला दी गई। मंडल स्तर का जिला अस्पताल आज भी इस स्थिति में नहीं है कि गंभीर घायलों का उपचार कर सकें। अति गंभीर घायलों को डाक्टर प्राइवेट या फिर हायर सेंटर रेफर कर देते हैं।

ट्रॉमा सेंटर के लिए 300 बेड अस्पताल भी विकल्प

ट्रॉमा सेंटर के लिए 300 बेड का अस्पताल भी बेहतर विकल्प हो सकता है। शहर विधायक डॉ.अरुण कुमार कहते हैं कि यह अस्पताल हाईवे से पास है और इसमें जगह भी पर्याप्त है। इस बाबत एक बार शासन स्तर पर बात हुई थी। हालांकि संसाधनों की कमी बताई गई। ऐसे में अस्पताल को पीपीपी मोड पर चलाया जा सकता है। इसके लिए एक बार फिर स्वास्थ्य मंत्री से बात करेंगे।

केस 1 : इमरजेंसी तक दाखिल होते घायलों ने तोड़ा दम

तारीख 14 जून 2019, देर रात करीब 1.30 बजे अलीगंज-सिरौली मार्ग पर पिकअप-ऑटो भिड़ंत में तीन लोग मौके पर ही मर गए। करीब दर्जन भर घायलों को जिला अस्पताल भेजा गया। एकसाथ इतने घायल देखकर डॉक्टर और स्टाफ के हाथ-पैर फूल गए। इमरजेंसी बेड खाली थे और ना ही स्ट्रेचर का पता। कुछ ही पल में दो और घायलों ने इमरजेंसी वार्ड में दाखिल होते-होते दम तोड़ दिया।

केस 2 : हादसे में तड़पकर निकल गई थी ससुर, दामाद की जान

बीते मई महीने में कैंट के उमरसिया गांव के वेदराम और उनके दामाद तेजराम का भऊआपुर मोड़ पर एक्सीडेंट हो गया। बाइकों की आमने-सामने की टक्कर में दोनों करीब आधे घंटे तक सड़क पर तड़पते रहे। करीब सात किलोमीटर दूर जिला अस्पताल ले जाया गया। यहां वेदराम को मृत घोषित कर दिया। कुछ देर में तेजराम की भी मौत हो गई। इन दो लोगों को बचाया जा सकता था, अगर समय से इलाज मिल जाता।

जाने बरेली मंडल के अन्य जिलों में स्थिति 

बदायूं : प्रस्ताव बना पर ट्रामा सेंटर नहीं 

जिला अस्पताल में साल 2016 में ट्रॉमा सेंटर के लिए जमीन चिह्नित कर प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था। उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद लोगों को उम्मीद बढ़ी कि राजकीय मेडिकल कॉलेज में यह सुविधा मिल जाएगी, वहां भी ऐसा नहीं हो सका। तीन आइसीयू तो वहां मौजूद हैं, लेकिन ट्रॉमा सेंटर नहीं है। ऐसे में हेड इंजरी के मरीजों को यहां से रेफर किया जाता है। जिला अस्पताल में इस अभी तक हेड इंजरी के 257 गंभीर घायलों को रेफर किया जा चुका।

वर्ष 2016 में प्रस्ताव भेजा, अभी तक मंजूरी नहीं मिली। नया वार्ड बड़ा बना है, अगर स्टॉफ मिल तो पांच बेड का ट्रॉमा सेंटर जिला अस्पताल में ही संचालित कराया जा सकता है। - डॉ.बीबी पुष्कर, सीएमएस जिला अस्पताल

यह रही मुकदमों की स्थिति

पिछले साल में परिवहन निगम की बसों से 21 सड़क हादसे हुए, इनमें 16 लोगों की मौत हुई थी। जबकि निजी बसों से 28 हादसों में 13 लोगों की जान गई है। ट्रकों से हादसे के 25 मुकदमे लिखे गए, इनमें 16 लोग काल का ग्रास बने। कार व लग्जरी गाड़ियों से 34 हादसों में 19 लोगों की जान जा चुकी है। जबकि बाइकों की भिड़ंत में हुए 31 हादसों में 17 लोगों ने प्राण गंवाए थे।

हांफ गया था स्वास्थ्य महकमा

25 दिसंबर 2010 को बरेली-आगरा हाईवे पर उझानी कोतवाली क्षेत्र में कछला ब्रिज पर डीसीएम व ट्रैक्टर-ट्राली की भिड़ंत में 42 लोगों की मौत हुई थी। स्वास्थ्य महकमे के पास इलाज तो दूर इतने शवों का पोस्टमार्टम करने के भी संसाधन नहीं थे। सभी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सीने और सिर की हड्डी टूटना बनी थी।

केवल जांच की व्यवस्था

बदायूं के जिला अस्पताल में हेड इंजरी के मरीजों की जांच के लिए सीटी स्कैन सुविधा है। इलाज के नाम पर यहां के डॉक्टर हाथ खड़े कर देते हैं। वहीं इमरजेंसी वार्ड में महज तीन बेड हैं। नया इमरजेंसी वार्ड तैयार है मगर कमियां होने के कारण स्वास्थ्य विभाग को हैंड ओवर नहीं हो सका।

शाहजहांपुर : मशीनें तो हैं मगर डॉक्टर को तलाश पाना मुश्किल

नेशनल हाईवे करीब होने की वजह से जिला अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर का निर्माण कराया गया। लखीमपुर, हरदोई पीलीभीत और बदायूं की सीमा जुड़ी होने से मरीजों की संख्या अधिक रहती है। 15 से 20 मरीज हमेशा ट्रॉमा सेंटर में रहते हैं। अस्पताल में सारी सुविधाएं होने के बाद भी रोजाना 15-20 गंभीर मरीज को रेफर किया जाता है। जिससे इलाज के अभाव में मरीज की जान चली जाती है।

मरीजों की संख्या के हिसाब से को पहले ट्रॉमा सेंटर में स्टाफ की संख्या कम थी। पहले एक ईएमओ, एक चीफ फार्मासिस्ट, एक फार्मासिस्ट और दो वार्ड ब्वॉय तैनात रहते थे। जिला अस्पताल में मेडिकल कॉलेज में अपग्रेड होने के बाद मरीजों की संख्या को देखते हुए स्टाफ को बढ़ाया गया है। वर्तमान में एक ईएमओ के साथ दो रेजिडेंट डॉक्टरों को तैनात किया गया है। ट्रामा सेंटर पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की ड्यूटी नहीं है। गंभीर मरीज आने पर उन्हें कॉल किया जाता है।

मरीज रेफर करने में खेल

जिला अस्पताल में इलाज की लगभग सभी सुविधाएं उपलब्ध है। गंभीर रूप से घायल मरीज के लिए फ्री में सिटी स्कैन की भी व्यवस्था है। इसके बाद भी डॉॅक्टर मरीज को देखकर रेफर करने की बात करते हैं। क्योंकि कमीशन मिलता है।

ट्रामा सेंटर में बाहर से मंगाई जाती है दवाई

मरीज की हालत गंभीर बताकर बाहर से दवाई मंगाई जाती है जो कि काफी महंगी होती है। इसमें बाहर के मेडिकल स्टोर से कमीशन का खेल चलता है।

पीलीभीत : इमरजेंसी में इलाज की आस नहीं

दो साल पहले संयुक्त जिला चिकित्सालय परिसर में ट्रॉमा सेंटर बना मगर संसाधन नहीं मिले। नतीजन एक साल बंद रहा। कुछ समय पहले चिकित्साधिकारी नियुक्त करओपीडी शुरू करा दी। गंभीर मरीज आ जाएं तो इलाज के बंदोबस्त नहीं हैं। सीएमएस डॉ. रतन पाल सिंह सुमन कहते हैं कि ट्रॉमा सेंटर चालू करा दिया गया है।

हाल ठीक नहीं

ट्रामा सेंटर तो बन गया, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। यहां पर मानक के अनुरूप सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। -नीरज गुप्ता, पीलीभीत

जिला अस्पताल में ट्रामा सेंटर बना है। हादसों में घायल होने वालों को इसका फायदा तभी मिल सकता, जब सुविधाएं हों। -सतीश सिंह , पीलीभीत

हादसे ने दिया जिंदगी भर का दर्द

30 मार्च की रात को न्यूरिया कस्बा निवासी मुन्ने मंसूरी, मुन्नी बेगम, शौहर मोहम्मद आजम, खालू जमील अहमद और खाला नसरीन बेगम कार में सवार होकर बरेली से लौट रहे थे। खमरिया पुल के निकट टूरिस्ट बस ने कार में टक्कर मार दी थी। जिससे कार में आग लगी और उसमें सवार पांचों लोग बुरी तरह झुलस गए। समय पर इलाज न मिल पाने से पांचों लोगों की मौत हो गई थी। मुन्ने की बेटी शबाना और मोहम्मद आजम की शादी इस हादसे से महज दो दिन पहले हुई थी। हादसे से पहले उन्होंने दामाद को फोन किया। बरेली जाने की बात कही तो वह भी कार लेकर चले आए। रास्ते में हादसा हो गया। वह दिन याद कर शबाना सिहर उठती हैं।

 

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