बरेली में एम.एड पास जयश्री समझा रही लोगों को छोटा परिवार सुखी परिवार की परिभाषा

सीमित संसाधनों में आबादी को भी सीमित रखना बहुत जरूरी है इसके साथ ही छोटा परिवार सुखी परिवार का अर्थ समझना भी जरूरी है। इसके लिए गर्भनिरोधक उपायों को उपयोग में लाना आवश्यक है। इसकी जागरूकता की कमान गांव-देहात में आशाओं ने संभाल रखी है।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 07:30 AM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 09:53 AM (IST)
बरेली में एम.एड पास जयश्री समझा रही लोगों को छोटा परिवार सुखी परिवार की परिभाषा
बरेली में एम.एड पास जयश्री समझा रही लोगों को छोटा परिवार सुखी परिवार की परिभाषा में फोटो

बरेली, जेएनएन। सीमित संसाधनों में आबादी को भी सीमित रखना बहुत जरूरी है, इसके साथ ही छोटा परिवार सुखी परिवार का अर्थ समझना भी जरूरी है। इसके लिए गर्भनिरोधक उपायों को उपयोग में लाना आवश्यक है। इसकी जागरूकता की कमान गांव-देहात में आशाओं ने संभाल रखी है। मीरगंज ब्लॉक की करौरा गांव की आशा कार्यकर्ता जयश्री इस उद्देश्य को पूरा करने में जुटी हैं। जयश्री 2016 से अब तक 22 नसबंदी करवा चुकी हैं और कोरोना काल में भी वह घर घर जाकर गर्भनिरोधक सामग्री पहुंचा रहीं हैं।

जयश्री ने बताया कि वह एमए, एमएड हैं और उनके पति गुलाब सिंह प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे। 2016 में उन्होंने आशा कार्यकर्ता बनने का फैसला किया ताकि वह गांव के लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति सचेत कर सकें। उनके दो बच्चे हैं और कोरोना काल में उनके पति की नौकरी छूट गई लेकिन जयश्री बिना घबराए और हिम्मत हारे लोगों को जागरूक करने के कार्य में डटी रहीं। अब वह और उनके पति दोनों ही गांव वालों की सेवा में जुटे हैं।

गांव में करीब 2200 की आबादी है। जयश्री ने बताया कि 2016 से 2019-20 तक वह 22 महिलाओं की नसबंदी करा चुकी हैं। डिलीवरी के तत्काल बाद 35 महिलाओं को पीपीआइयूसीडी लगवाई। बताया कि दंपती को नसबंदी के लिए प्रेरित करना बहुत ही चुनौती भरा होता है। कोरोना काल मे कम नहीं हुए प्रयास जयश्री ने बताया कि कोरोना काल में जब नसबंदी बंद हो गईं थी तो उस दौरान घर-घर जाकर काउंसलिंग करती थीं। करीब 6 माह में गांव वालों तक 350 कंडोम के पैकेट, 12 पैकेट इजी, 15 पैकेट माला-एन और 18 पैकेट छाया गांव वालों तक पहुंचाई। साथ ही डिलीवरी के बाद पांच महिलाओं को पीपीआईयूसीडी लगवाई।

जयश्री को आशा दीदी कहतीं गांव की महिलाएं

जयश्री अब गांव की आशा दीदी हो गई हैं। कई महिलाएं ऐसे थीं जो नसबंदी कराना चाहती थीं, लेकिन उनके ससुराली वाले या खुद पति नहीं मान रहे थे। जयश्री ने उनकी काउसंलिंग की और नसबंदी कराने के लिए जागरूक किया। ऐसी ही करौरा गांव की लक्ष्मी देवी हैं। उन्होंने बताया कि शादी के बाद एक बच्चा हो गया था। दूसरा बच्चा नहीं ठहर रहा था, करीब सात साल बाद दूसरा बच्चा हुआ। इसके बाद नसबंदी कराने का निर्णय लिया, लेकिन परिवार वाले तैयार नहीं थे। जब आशा दीदी से संपर्क किया तो उन्होंने सभी को समझाया। इसके बाद नसबंदी हो सकी।

मेहनत होती हैं सफल

ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर पुनीत सक्सेना ने बताया कि जयश्री मिलनसार और समझदार आशा कार्यकर्ता हैं। कोरोना काल में जागरूक करना हो या गर्भवती और बच्चे की देखभाल का कार्य, वह हर कार्य बहुत ही समझदारी से करती हैं और गांव वाले इनका बहुत साथ देते हैं।

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