मुस्लिमों को आरक्षण से तो मुश्किल और बढ़ेगी

बरेली विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने आरक्षण मांगा है लेकिन इसके अलग मायने हैं। यदि पिछड़ेवर्ग के कोटे में मांग के अनुसार कटौती की गई तो यह नई समस्या खड़ी करेगा। समाज में विभाजन बढ़ेगा जो सबकी दिक्कत बढ़ाने वाला होगा

By Ravi MishraEdited By: Publish:Fri, 21 Jan 2022 07:45 PM (IST) Updated:Fri, 21 Jan 2022 07:45 PM (IST)
मुस्लिमों को आरक्षण से तो मुश्किल और बढ़ेगी
आरक्षण की मांग करते मुस्लिम फोटो जागरण

जेएनएन, बरेली : मुस्लिमों ने विधानसभा चुनाव के दौरान मांग उठाई है कि आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिमों को सरकारी नौकरियों और सभी शैक्षिक संस्थानों में पिछड़ों के 27 प्रतिशत कोटे में से पांच फीसद भागीदारी मिले लेकिन इससे पिछड़ावर्ग से सीधा टकराव होगा।

तंजीम उलमा ए इस्लाम ने अपना एजेंडा तैयार किया है। यह 16 बिंदुओं पर है। संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन के अनुसार आज़ादी के वक्त 50 फीसद मुसलमान थे नौकरियों में, आज मात्र दो प्रतिशत रह गए हैं। इसी आधार पर वह कहते हैं कि पिछड़ावर्ग से 27 फीसद में से पांच फीसद मुसलमानों को दे दिया जाए। परंतु भारतीय संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। यही नहीं हिंदुओं में भी आरक्षण जातिगत विषमता खत्म करने के लिए दिया गया था। संविधान निर्माताओं की सोच थी कि आरक्षण से दूसरी जातियां भी समाज में समान स्तर पर आएंगी और  जाति की खाई खत्म होगी। विश्लेषक मानते हैं कि मुस्लिमों को आरक्षण का कदम एक नई खाई बढ़ा देगा।तंजीम का कहना है कि राजनीतिक दल मुस्लिम एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लिये लोक लुभावने वादों से सत्ता पाते हैं । चुनाव के बाद उन्हें भूल जाते हैं। प्रभावी जातियों को सरकार का पूर्णतया संरक्षण प्राप्त होता है, जो आगे बढ़ रही हैं। परंतु मुस्लिम वोट डालने पर यह स्वयं क्यों नहीं सोचते कि उनको सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि जो उन्हें लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं उनके खिलाफ एकजुट क्यों नहीं होते। तंजीम का यह कहना सही है कि भारत में रहने वाले 25 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यक समाज के पिछड़ेपन के कारण भारत पूर्ण विकसित नहीं हो पायेगा, सरकार भी यही कह रही है। वह इसीलिए गरीबोें के कल्याण के लिए जो योजनाएं चला रही है, उसमें मुस्लिमों को बराबर का लाभ दिया जा रहा है। मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं कि इन योजनाओें में कोई भेदभाव नहीं होता। 

शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिम सामाजिक संगठनों द्वारा स्थापित शैक्षिक, तकनीकी संस्थानों , विश्वविद्यालयों को सरकारी सुविधा प्रदान करने के साथ अनुदानित करें और मान्यता को सरल बनाया जाए । जब ऐसे संस्थान निजी क्षेत्र के हाथ में होंगे तो क्या सरकारी सहायता देने पर उसके दुरुपयोग की संभावना नहीं बढ़ेगी। हां मान्यता की प्रक्रिया में कहीं दिक्कत है तो यह सरल बननी चाहिए। परंतु अल्पसंख्यक संस्थानों को भी आधुनिक पाठ्यक्रमों पर जोर देना चाहिए।  

chat bot
आपका साथी